सत्य का वास्तविक स्वरूप है सत्संग
जैसे ही अन्तःकरण में ब्रह्म जिज्ञासा की तीव्रता जागृत होती है संपूर्ण सृष्टि में माधुर्य-सौंदर्य, एकत्व, परिपूर्णता आदि दिव्य-अनुभव स्थिर होने लगते हैं! ईश्वर का विचार शान्ति, आनन्द एवं सरसता प्रदाता है! संसार के सारे कार्य करते हुए स्वयं को जानना अत्यंत आवश्यक है। ष्अथातो ब्रह्म जिज्ञासा ...ष् बादरायण का ष्ब्रह्मसूत्रष् इस अत्यंत सुंदर और अर्थगर्भी वाक्य से प्रारंभ होता है। आओ, अब हम परम सत्य की जिज्ञासा करें। यह एक आवाहन है, प्रस्थान है, दिशा है और गति भी। धर्म का अर्थ है, आस्था। और, दर्शन का अर्थ है, जिज्ञासा। विवेकवान को ही शास्त्र 'जागा हुआ' कहते हैं। जागर्ति को वा ...? अर्थात् जागा हुआ कौन है? इसका उत्तर देते हुए आद्यशंकर कहते हैं, 'सदसद् विवेकी! यानी, जो सत्य-असत्य का विवेक कर सकता है, वही जागा हुआ है। नहीं तो, 'मोह निशा सब सोवन हारा ...'। अनन्त संभावनाओं से समाहित मनुष्य जीवन की नियति है, ब्रह्म। अथातो ब्रह्म जिज्ञासा! स्वयं में परम सत्ता को अनुभूत करने की दिव्य सामर्थ्य जागरण में सहायक है, सत्संग। अतः सत्संग ही सर्वथा श्रेयस्कर-हितकर है ! शास्त्रों में सत्स