मुंशी प्रेमचंद और उनके नाटक विषय पर आधारित परिचर्चा का आयोजन

शहर समता विचार मंच के तत्वावधान में साहित्य साधक मुंशी प्रेमचंद की जयंती पर मुंशी प्रेमचंद और उनके नाटक विषय पर आधारित एक परिचर्चा का आयोजन, शहर समता विचार मंच की साहित्यिक संयोजक रचना सक्सेना के संयोजन में शाम चार बजे से गुगल मीट द्वारा सफलता पूर्वक सम्पन्न हुआ। इस आयोजन का संचालन वरिष्ठ रंगकर्मी और वरिष्ठ अधिवक्ता ऋतन्धरा मिश्रा ने किया। आयोजन की अध्यक्षता सुप्रसिद्ध नाटककार कवि साहित्यकार अजीत पुष्कल ने की एवं वरिष्ठ नाटककार समीक्षक डाक्टर अनुपम आनन्द मुख्य अतिथि तथा वरिष्ठ रंगकर्मी रंग निर्देशक सुषमा शर्मा विशिष्ट अतिथि रही। वरिष्ठ रंगकर्मी अजय केसरी एवं साहित्य प्रेमी शिवमूर्ति सिंह मुख्य वक्ता थे। इस आयोजन में अध्यक्षता कर रहे अजित पुष्कल जी ने मुंशी प्रेमचंद जी की साहित्य साधना पर विचार रखते हुऐ कहा कि वैसे हिंदी साहित्य में प्रेमचंद को नाटककार के रूप में नहीं माना जाता और कथाकार और उपन्यास के संदर्भ में उनकी ख्याति है मगर यह बहुत कम लोग जानते हैं प्रेमचंद ने नाटक तो नहीं लिखे हैं पर नाटक लिखने की लालसा उनमें बहुत अंदर तक थी और वह एक कहानी में उन्होंने लिखा है कि मैं नाटक नहीं लिख सकता मगर उन्होंने राधेश्याम कथावाचक के एक नाटक पर अपने हंस में समीक्षा लिखी, इसका मतलब यह है कि उनके अंदर नाटक की समझ मौजूद थी‌। इसीलिए उनकी कहानियों में नाटकीय तत्व भरपूर मौजूद मिलता है इसका प्रमाण है नाटक वाले हिंदी में जो नाटक करते हैं अगर किसी साहित्यकार की कहानी लेनी होगी तो प्रेमचंद की कहानियां चुनते हैं। प्रेमचंद की कहानियों में पटकथा की भी क्षमता है। स्क्रीन प्ले के लिए उन्होंने बड़ी महत्वपूर्ण कहानियां लिखी है जैसे सद्गति और शतरंज के खिलाड़ी जो सत्यजीत रे ने बनाई गबन ऋषिकेश मुखर्जी ने, जो स्क्रीन में बहुत सफल रही। संक्षेप में मैं यह कहना चाहता हूं, कि उनकी कहानियों में नाटकीयता मौजूद रहती है चाहे पंच परमेश्वर, बूढ़ी काकी हो ठाकुर का कुआं हो ,घास वाली  लॉटरी या बड़े भाई साहब जैसी कहानियां‌ हों, जो रंगमंच पर आधुनिक बोध और समकालीन ता देती है, इसके अलावा भी बहुत कहानियां हैं जिनकी लोग खोज नहीं कर पाते। मुख्य अतिथि अनुपम आनंद ने मुंशी प्रेमचंद के नाटकों पर प्रकाश डालते हुऐ कहा कि छायावादी गद्य के दो नमूने हैं। प्रसाद जी का और दूसरा प्रेमचंद का।दोनों ने नाटक लिखे हैं। आधुनिक काल का प्रारम्भ भारतेंदु के नाटक नामक निबंध से होता है। प्रसाद जी ने भी रंगमंच नामक निबंध लिखा, आज प्रेमचंद के जन्मदिन पर उनके नाटकों पर चर्चा एक महत्वपूर्ण पहल है। विशिष्ट अतिथि सुषमा शर्मा ने कहा कि आज मुंशी प्रेमचंद की जयंती पर हम रंगकर्मी उन्हें उनके नाटकों के माध्यम से याद करने के लिए एकत्रित हुए हैं मुंशी प्रेमचंद ने यूं तो 3 नाटक लिखे थे संग्राम, कर्बला और प्रेम की वेदी पर यह नाटक मात्र संवाद आत्मक माने जाते हैं। यह आश्चर्य का विषय है कि मुंशी प्रेमचंद आज ही रंगकर्म की दुनिया में अपनी कहानियों के मंचन के माध्यम से लोकप्रिय हैं ना केवल कहानियां बल्कि उनके उपन्यास उनका व्यंग तक मंच पर लगातार मंचित किए जाते हैं उनकी कहानियां कफन मंत्र बड़े भाई साहब पंच परमेश्वर ईद, ईदगाह आदि का मंचन लगातार होता रहा है वही उनके उपन्यास गोदान निर्मला भी मंच पर लगातार वंचित होते रहे हैं कहानी मंचन की दृष्टि से मुंशी प्रेमचंद रंग निर्देशकों के सर्वाधिक प्रिय लेखों में आते हिंदी गद्य का एक पूरा कॉल प्रेमचंद युग के नाम से जाना जाता है।
वरिष्ठ साहित्यकार शिवमूर्ति सिंह ने मुंशी प्रेमचंद के नाटकों के परिपेक्ष्य में चर्चा करते हुऐ कहा कि प्रेमचंद अपने कथा साहित्य एवं उपन्यास के लिये जाने जाते हैं यह वस्तुतः सही भी है क्योंकि यह बहुत कम लोगों को पता है कि उन्होंने नाटक भी लिखें हैं। गीतकार गुलजार ने मुंबई में एक नाट्यसंस्था का गठन करके प्रेमचंद की कई कहानियों का नाट्य में रुपांतरण करवा कर मंचन भी करवाया है। वैसे उनकी सभी कहानियों में चाहें कफन हो, ईदगाह हो, पंचपरमेश हो, गुल्ली डंडा हो या बड़े भाईसाहब, इसमें नाटक के सभी तत्व विद्यमान है। सभी कहानियाँ संवाद शैली में लिखी हुई है। कर्बला नाटक में प्रेमचंद की नाट्य कला का पूर्ण विकास देखा जा सकता है। यदि उन्होने अपने को नाट्य लेखन की ओर केन्द्रित किया होता तो निसंदेह वे हिन्दी के बड़े नाट्यकारों में गिने जाते। कर्बला नाटक कथानक, कथोपकथन, भाषा शैली, संवाद सभी दृष्टि सेएक श्रेष्ठ नाटक है मुस्लिम पात्रों की भाषा उर्दू है हिन्दू पात्रों की भाषा संस्कृत भाषा है जो दुरुह है किन्तु भाव उसका स्पष्ट हो जाता है इस नाटक को पढ़कर प्रेमचंद के विषद अध्ययन का पता चलता है। कर्बला लिखने का मतलब  सांप के बिल में हाथ डालना है यदि कहीं भी एतिहासिक या धार्मिक चित्रण में चूक होती तो मुस्लिम संप्रदाय इसका विरोधी हो जाता। यह नाटक हिन्दू मुस्लिम एकता का प्रतीक है और प्रेमचंद का अभीष्ट भी था। कार्यक्रम के मुख्य वक्ता अजय केसरी ने भी अपने विचार रखे।उन्होंने कहा कि मुंशी प्रेमचंद के बारे में कहना सूर्य को दीपक दिखाने जैसा है।


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