- डी.एस. परिहार ब्रह्मा जी के मानस पुत्र ज्योतिष शास्त्र के महान प्रवर्तक महर्षि भृगु जी ने पीड़ित मानवता के उद्धार हेतु अपनी अतीन्द्रिय क्षमता और भगवान विष्णु द्वारा प्राप्त दिव्य दृष्टि से सतयुग में समुद्र मंथन के पूर्व भृगु संहिता नामक विशाल ग्रन्थ लिखा था। बनारस के भृगुशास्त्री स्व. ब्रह्म गोपाल भादुड़ी के अनुसार भृगु संहिता जन्मतः, प्रश्न विज्ञान, स्वर विज्ञान और गर्भाधान लग्न पर आधारित है। हांलाकि कई आधुनिक ज्योतिषी, ज्योतिषी उपचारों पर विश्वास नही करते हैं। किन्तु यह भी सच है। कि कर्म और पूर्व जंम पर आधारित ज्योतिष के अनेक प्राचीन ग्रन्थों मे जैसे बृहत पाराशर होरा शास्त्र, प्रश्न मार्ग, कर्म विपाक संहिता, नाड़ी ग्रन्थ, रावण संहिता व भगु संहिता आदि में पश्चाताप स्वरूप पूर्व जंम मे किये गये पापों से मुक्ति के लिये विभिन्न उपचारों, कर्मकाण्डों, मंत्रोपचारों, देवदर्शन, देवपूजन, व्रत, दान औषधि प्रयोग का वर्णन है। आज भृगु संहिता एक दुर्लभ और अप्राप्य ग्रन्थ है। मेरठ, प्रतापगढ व होशियारपुर के अलावा कही नही पाया जाता है। इस ग्रन्थ में मंगली दोष, साढे साती शनि, शनि दोष, मारकेश की दशा का वर्...