करोड़ों खर्च पर अभी भी रामधाट को विकास की दरकार
यह कैसा विकास
मजाक की वस्तु हैं लेजर लाइट
मंदाकिनी गंगा आरती में मंदाकिनी की आरती का अता पता नहीं
पर्यटन विभाग द्वारा लगवाई गई अधिकतर लाइटों की रोशनी धीमी पड़ी
- संदीप रिछारियायोगी जी की मंशा है कि राजकुमार राम को परमात्मा राम बनाने वाली भूमि का समुचित विकास हो। अयोध्या आने वाला प्रत्येक श्रीराम का पुजारी चित्रकूट भी जरूर आए, ऐसी मंशा से केंद्र सरकार भी काम कर रामवन पथ गमन सड़क का निर्माण करवा रही है, पर योगी जी के अधिकारी नहीं चाहते कि ऐसा कोई काम हो कि बाहर से आने वाले लोग यह कह सकें कि वास्तव में भाजपा सरकार ने अच्छा काम करवाया है। अगर आप श्रीचित्रकूट धाम में उदाहरण देखना चाहते हैं तो रामघाट पर आईये। रामघाट अब तक पिछले सात साल में कई करोड़ खर्च हो चुके हैं पर सुविधाओं का कहीं अता पता नहीं। यहां पर आकर लोग केवल अव्यवस्थाओं का दर्शन करते हैं।
आइये चलते हैं कुछ पुराने समय में जब सूबे में मुलायम सिंह यादव की सरकार हुआ करती थी। रामघाट में एक रूपता लाने के लिए उन्होंने सभी इमारतों में भगवा कलर करयाया था,कुछ लाइटें भी लगवाई थी। उसके बाद मायावती और अखिलेश के राज में रामघाट पर छिटपुट काम हुये, लेकिन ऐसे कोई काम नही हुये कि उन्हें उल्लेखनीय कहा जाए। योगी राज में रामधाट में विकास की इबारत लिखने की इबारत शुरू हुई। ज्यादातर काम प्र्यटन विभाग को मिला। बांदा जिले के रहने वाले पर्यटन अधिकारी ने यहां पर आकर दो काम किये, पहला काम तो उन्होंने सजातीयों को विभाग मे काम देना तो दूसरा मनमानी तरीके से सरकारी पैसे को बर्बाद करना। पहले चरण में रामघाट में लाइट लगाई गई, यह लाइट अगर महाराजा मत्स्यगयेन्द्रनाथ मंदिर, भरत मंदिर और यज्ञवेदी को छोड दे ंतो अधिकतर प्राइवेट होटल और लाजों में लगा दी गई। गंभीरता का आलम यह रहा कि पुरानी स्ट्रीट लाइटों को उतारकर नया लगाकर उसका पेमेंट ले लिया गया। इसी दौरान यूपी से एमपी के छोटे से गांव नयागांव जाने के लिए राधव प्रयाग घाट की खूबसूरती को नष्ट कर लोहे का पुल बना दिया गया। इसके साथ ही लेजर शोे के नाम पर भी एक नया तमाशा शुरू किया गया। तत्कालीन डीएम शेषमणि पांडेय ने भी इस कार्य में खूब सहयोग दिया। लेजर लाइट व लोहे के पुल पर कई करोड रूप्ये फूंकने के बाद भी मंदाकिनी गंगा आरती को भी नगर पालिका परिषद से छीनकर नये रंग रूप में किया गया।
पर्यटन विभाग ने सबसे पहले यहां पर मंदिरों, मठों व प्राइवेट होटलों पर लाइट लगाने का काम किया। करोड़ों रूपये की लगाई गई लाइट का हाल यह है कि विभागीय अधिकारियों ने इन्हें बनाने से पहले खराब करने की गारंटी से काम किया। जहां बिजली की लाइटों को तारों की जाली से ठकने का काम किया, वहीं पाइपों व बोर्डों को अंडरग्राउंड न कराकर खुला लगा दिया, जिन्हें अधिकतर स्थानों पर बंदरों ने तोड़ दिया। महाराजा मत्तगयेन्द्रनाथ मंदिर में लगी एलईडी के बोर्ड व पाइपों को कई बार वहां के संचालक खुद सुधरवा चुके हैं। जबकि कई स्थानों पर लगी लाइट खराब हो चुकी है। इसके अलावा घाट पर जलने वाली लाइट की चमक भी इतनी फीकी पड़ चुकी है कि अब उससे उजाला कम ही दिखाई देता है।
दूसरा उदाहरण पर्यटन विभाग द्वारा बनवाया गया लोहे का विशाल पुल है। इस पुल को बनाने के समय अधिकारियों ने यह पाठ पढाया कि घाट पर आने का एक ही रास्ता है, भीड़ बढ़ जाती है तो उसे मध्य प्रदेश भेजा जा सकता है। वास्तव मे घाट की लम्बाई एक किलोमीटर के आसपास है। दीपावली व सोमवती अमावस्या में अधिकतम भीड़ होती है। लोग नहा कर वापस चले जाते हैं। ऐसे में जब टैंपों स्टैंड से दुूसरा रास्ता खुल सकता है तो लगभग साढे सात करोड़ खर्च करके कैसे लोहे का विशाल पुल बनाकर शासन का चित्रकूट विकास के लिए आने वाले पैसे को बर्बाद किया गया । दूसरा उदाहरण नगर पालिका परिषद का है। यहां पर पूर्व अधिशाषी अधिकारी ने अपनी हठधर्मिता से एक एलईडी स्क्रीन लखनउ की प्राइवेट कंपनी से लगवाई। जिस दिन से यह स्क्रीन लगी यह आज तक नही चली। बताया जाता है कि लगभग 18 लाख की इस एलईडी स्क्रीन को खरीदने का काम लगने के पहले ही कर दिया गया था। यानि इसका पेमेंट लगने के पहले ही पालिका क फंड से कर दिया गया था, जबकि पालिका में कंगाली का हाल यह है कि इसके कर्मचारियों को दो दो महीने बीत जाने के बाद भी पैसा नहीं मिल पा रहा है।
अगर आप चित्रकूट आए हैं तो आप शाम के समय रामघाट पर आकर मंदाकिनी गंगा की आरती देखने जरूर आएंगे, पूर्व डीएम शेषमणि पांडेय द्वारा बड़े ही अरमानों से मंदाकिनी नदी के किनारे जहां पर गोस्वामी तुलसीदास जी ने भगवान राम के दर्शन प्राप्त किए थे मंदाकिनी जी की आरती का प्रारंभ कराया। आरती का प्रारंभ तो बहुत शानदार हुआ पर इसके साउंउ की आवाज में कर्कशता के चलते लगभग एक घंटे के लिए रामघाट के निवासी व दुकानदार बंधक हो जाते हैं हाल यह है कि एक घंटे तक सामने खड़ा हुआ व्यक्ति किसी से बात नही कर सकता। अगर आप घाट पर दुकानों पर समान खरीदना चाहते हैं तो आप समान नही खरीद सकते। महाराजा मत्तगयेन्द्र नाथ सरकार की आरती में भी इससे काफी खलल पड़ता है। सबसे बड़ी बात यह है कि बाहर से आने वाला व्यक्ति जब यहां पर चारो तरफ भगवान राम की बातें सुनता है और घाट पर आकर आरती में रावण के द्वारा लिखे गए शिव तांडव श्लोकों को सुनता है तो वह आश्चर्यचकित हो जाता है। कोलकाता से आए पर्यटकों ने कहा कि ऐसा लग रहा है कि राम की नगरी में रावण की पूजा हो रही है। रावण शिव का भक्त था, इसमें कोई संदेह नहीं, पर गोस्वामी तुलसीदास जी द्वारा लिखा रूद्राष्टक यहां का मूल होना चाहिए। इसी प्रकार गंगा आरती के बारे में उन्होंने बताया कि गंगा की आरती तो हरिद्वार, काशी, ऋषिकेश व कानपुर में भी होती है। मंदाकिनी पौराणिक नदी है, इसकी आरती यहां पर न किया जाना गलत है।
मंदाकिनी की चिंता नही, विकास पर जोर
खैर पर्यटन विभाग का काम तो विकास को लेकर दिखता है, पर जिसके लिये विकास हो रहा है उस मंदाकिनी की किसी को चिंता नही है। मंदाकिनी की तलहटी से दो साल पहले हजारों बोरी निकाली गई थी। लेकिन मंदाकिनी की गंदगी को साफ कराने का काम सिंचाई विभाग कभी नही करता। यह बात और है कि विभाग के अधिकारी केवल अमावस्या पर अपना काम दो चार नावों के जरिए करते दिखाई देते हैं। हाल यह है कि समाजसेवियों को खुद ही नदी साफ कर अपने व बाहर से आने वाले भक्तों के लिए नहाने लायक पानी बनाते हैं।