मंदिर बिकता है, बोलो खरीदोगे

भगवान की पूजा के लिए दान दी गई कई जमीनों को महंतों ने बेंच डाला

कुछ मंदिरों के महंत खुद बन गये भूमाफिया, भविष्य में कारपोरेट घराने चला सकते हैं मंदिर  

तहसील के कर्मी, पुलिस के लोग, भूमाफिया व रजिस्ट्री विभाग की जुगलबंदी से चल रहा है जमीनों का खेल

- संदीप रिछारिया

जल्द ही चित्रकूटधाम के कुछ प्रसिद्व मंदिर बिकने या लीज पर दिये जाने वाले हैं। बिसातें बिछ चुकी हैं। मंदिर के ट्रस्ट में कारपोरेट जगत के लोगों को शामिल किया जा रहा है, जल्द ही कागजी कार्यवाही के बाद चित्रकूट के कुछ मंदिरों के स्वामित्व या अधिकार बदलने वाले है। वैसे इस तरह के मंदिर एक दो नही बल्कि आधा दर्जन से ज्यादा हैं। कुछ मंदिर यूपी में हैं तो कुछ एमपी। जल्द ही आपको कुछ मंदिरों के सेवादार या महंत बदले हुये मिलेगे। मंदिरों को बेंचे जाने का खेल की तैयारी पिछले दो साल से चल रही है। जल्द ही चित्रकूटधाम में आप अपनी आंखों से यह होता हुआ देखेंगे। वैसे भी चित्रकूट धाम के सर्वाधिक आस्था के मंदिर श्री कामतानाथ मुख्य द्वार प्रशासन के हाथ में जाने के बाद उसमें कारपोरेट जगत के एक व प्रमुख समाजसेवी को शामिल कर मध्य प्रदेश के सतना डीएम ने यह संकेत दिया था कि आगे के समय मंदिर भी कारपोरेट के हाथों में जा सकते हैं।

गौरतलब है कि दिव्य भूमि चित्रकूट धाम में हिंदू धर्म के वैष्णव संप्रदाय के प्राचीन सभी सात अखाडे हैं। इन अखाड़ों के मंदिर व बैठकों का निर्माण ज्यादातर पन्ना नरेश छत्रशाल व उनके वंशजों ने करवाया था। मंदिरों व अखाड़ों का निर्माण कराने के बाद राजपरिवार ने अखाड़ों व मंदिरों की व्यवस्था के लिए जमीनें भी स्थानीय जमींदारों से खरीदकर दीं। मंदिर के महंतों को उनका स्वामित्व मिला। मंदिर के महंतों में उनकी भूमिका सर्वराहाकार या केयरटेकर की रही। लेकिन भगवान के नाम की अधिकतर जमीनोें को मंदिर के महंतों ने केयरटेकर की जगह खुद के मालिक के रूप में तहसील कर्मियों की मदद से दर्ज करवा लीं। इसके बाद इस मामले पर कुछ समय बीतने दिया गया। समय बीतने के बाद और कागजों की ज्यादा पड़ताल न होने के कारण इन जमीनों को उन्होंने स्थानीय दलालों के माध्यम से बेंचना शुरू कर दिया। आज की तारीख में अगर नजर डालें तो अधिकांश जमीनें बेंची जा चुकी हैं। कर्वी नगर की बात करें तो यहां के मुख्य जमींदार जयदेव दास के अखाड़े के महंत हुआ करते थे। पुरानी बाजार से लेकर नई बाजार रेलवे क्रासिंग के अंदर का भाग इन्हीं की मिल्कियत में आता है। कर्वी नगर की पूरी जमीन जयदेव दास के अखाड़े के महंत ने अपने कारखास बाबा के माध्यम से दस रूपये के स्टांप में बेंची थी। सबसे मजेदार किस्सा तो पिछले दिनोें तब हुआ जब गांधी जी के रूकने के स्थान पी.डब्लू.डी. कार्यालय के बाहर पड़ी जमीन पर नगर पालिका ने दावा ढोंककर इसकी बाउंड्री को गिरवा दिया। इसके बाद एक पक्ष जयदेव दास के अखाड़े से पत्र लाकर कोर्ट पहुंच गया। बाउंड्री को रातों रात बनवाना पड़ा। इस कार्यवाही से प्रशासन की या कहें पूर्व डीएम अभिषेेक आनंद की काफी फजीहत हुई। चित्रकूट की बात करें तो कई अखाड़े की जमीनेें रामघाट के पास व शिवरामपुर रोड चितरा रोड के साथ ही अन्य स्थानोें पर बेंची गई हैं। अखाड़ों की जमीनों पर तो पूरी तरह से नई-नई कालोनियों का निर्माण हो चुका है।

औरंगजेब के बनवाये मंदिर पर कब्जा और बिक गई जमीनें

पहले ही गायब हो चुका है शाही फरमान वाला ताम्र पत्र

श्री चित्रकूटधाम में आकर महाराजाधिराज मत्तगयेन्द्रनाथ सरकार का प्रकोप झेलने वालेे वाला मुगलिया सल्तनत का बादशाह औरंगजेब यहां पर आकर जब मूंह की खाया तो बाबा बालकदास ककी भभूति से वह और उसकी सेना ठीक हुई। उसने यहां पर बाला जी सरकार कका बड़ा मंदिर बनवाया। चांदी का एक रूपया प्रतिदिन पूजा भोग के लिए और चालीस गांव की जमीन की उपज के साथ जमींदारी मंदिर के महंत को सौंपी। चांदी का एक रूपया देश के आजाद होने तक मिलता रहा, लेकिन आजादी के बाद प्रधानमंत्री नेहरू ने इसे बंद कर दिया। जमीनों का हाल यह रहा कि पूर्व महंतों ने गांवोें की जमीनों को खूब बेंचा। हाल यह है कि मोदी सरकार के दस साल और योगी सरकार के 8 साल बीतने के बाद भी प्रशासन ने कभी यह जानने का प्रयास नही किया कि इस मंदिर का ऐतिहासिक महत्व क्या है। औरंगजेब का दिया हुआ शाही फरमान कहां गया।

चोपड़ा मंदिर का मालिक बताया जाता है एक नेता

उत्तर प्रदेश में खोही गांव के पास श्री कामदगिरि परिक्रमा मार्ग में चोपड़ा मंदिर वास्तव में निर्वाणी अखाड़े के अन्तर्गत आता है। पूर्व में यहां पर काफी धार्मिक आयोजन हुआ करते थे। चर्चा है कि बसपा शासन काल में तत्कालीन बसपा के एक बड़े नेता ने इस मंदिर पर अपने डोरे डाले और करोड़ों रूपये में मंदिर व उसकी जमीन का सौंदा हो गया। बाद में महंत का कहीं पता नही चला। आज भी इस मंदिर पर उस नेता के ही कारिंदे निवास करते हैं।

मंदिर बिकने की शुरूआत तो 15 साल पहले हो गई थी

वरिष्ठ अधिवक्ता जीतेंद्र उपाध्याय कहते हैं कि यह नई बात नही है। राजस्व कर्मियों के साथ भूमाफियों ने यहां पर लगातार मंदिरों की जमीनों को बाहर के लोगों को बिकवाने का काम किया है। भगवान की जमीन को बेंचना कानूनी रूप से गलत है। अगर तहसील के पुराने नक्शे की जांच कर मठ मंदिरों की जमीनों की पड़ताल की जाए तो लगभग सभी मठ मंदिर वाले दोेषी मिलेगे। यह समस्या केवल यूपी में ही नहीं बल्कि एमपी में भी है। उन्होंने कहा कि वह जल्द ही डीएम से मिलकर इसकी जांच कराने की बात करेंगे।



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