भटकती आत्मा

कालपी के नवाब हसीमुददीन खाँ की बेटी मलिका किश्वर जहाँ लखनऊ के बादशाह मुहम्मद अली शाह के शहजादे अमजद अली शाह की बेगम बन कर आई थीं। गोमती नदी के तट पर बना बेहद खूबसूरत महल छतर मंजिल उनका रिहाइशी महल था। छतर मंजिल बड़ी खुशगवार जगह थी। चारों ओर फैली हरियाली, नदी के मनमोहक नजारे, आस पास बनी जन्नत जैसी बेइन्तहा खूबसूरत इमारतें और महल मनमोह लेते थे। पूरब में करीब ही गोमती के किनारे बसा मोती महल, उससे कुछ दूर आगे खुर्शीद मंजिल (वर्तमान लामाटीनियर गर्लस कालेज) था उससे आगे एक घना जंगल था जिसे बीच से एक कच्चा गलियारा पूरब को जाता था दांये हाथ पर नवाब सआदत अली का मकबरा था और पश्च्छिम मे कुछ दूर पर एक उंचे टीले पर विालायती ढंग की खूबसूरत रेजीडेंसी बनी हुयी थी। उत्तर में नदी के उस पार बादशाह बाग (वर्तमान विष्वविद्यालय) जिसमे नवाब साहब के आराम के लिये कुछ इमारतें बनी हुयी थी। छतर मंजिल के सामने दायीं ओर कोठी दर्शन विलास थी। छतर मंजिल के पूर्वी छोर पर नवाब साहब और पश्छिमी छोर पर उपरी मंजिल पर बेगम साहिबा और निचली मंजिल पर नवाब साहब की मां बेगम जनाबे आलिया रहती थीं। महल मे कुल मिला कर साठ बड़े और हवादार कमरे और जनाने और मर्दाने महल मे दो-दो हाल दस्तरखान और नवाब और उनकी बेगम के सोने के लिये थे। महल के बीच में बड़ा सा दालान था जिसमे संगमरमर का बेहद खूबसूरत फव्वारा लगा हुआ था जनानी ड्योढी के बाहर और सदर दरवाजे पर पिस्तौलबंद और करौली बंद तातारी औरतों का पहरा रहता था। बेगम साहिबा के पास पन्द्रह कमरे थे जिनमे बारह कमरे में बेगम साहिबा की जरूरत का सामान और किनारे के तीन कमरों में उनकी खास कनीजे रहती थी। कनीजों के कमरे मे डोर से बंधी घंटिया लटकी रहती थी डोर का दूसरा सिरा बेग साहिबा के कमरे रहता था बेगम साहिबा को जब जरूरत होती थी वे डोर खीच कर कनीजों को बुला लेती थी। बेगम को ब्याह कर आये अभी दो ही महीने हुये थे। कि उनको महल मे अजीब सी आवाजो, आहटों का आभास होने लगा था, अगले महीने बेगम के वालिद और उनकी वालिदा कालपी से मिलने आये। नवाब साहब ने उन्हें लालबाग की चैलख्खी कोठी मे ठहराया गया। अभी उनको आये हुये सप्ताह भी नही बीता था कि जाडे़ की एक रात अचानक बेगम साहिबा की नींद खुल गई। शमादान मे शमा जल रही थी बेगम साहब को अहसास हुआ कि उनके पलंग के दांयीं ओर कोई खडा़ है उन्होंने उस ओर देखा तो वहाँ पर बेशकीमती सफेद रंग के कपड़े 20-22 साल की युवती खड़ी दिखी उसका चेहरा दूसरी ओर था उसके काले घने खुले बाल कमर तक लहरा रहे थे उसके बदन से गुलाब के इत्र की भीनी सी खुषबू आ रही थी उन्हें यह देखकर हैरत हुयी कि कमरे के दरवाजे बंद थे तो यह अंदर आई कैसे बेगम ने हिम्मत करके पूछा कौन हो तुम, वह खमोश रही बेगम साहिबा ने दुबारा पूछा, वह खामोश ही रही बेगम साहिबा को गुस्सा आ गया उन्होंने सिरहाने तिपाई पर रखा गिलास उस पर फेंक कर मारा यह देख कर उनकी आंखें हैरत और दहशत से फटी रह गइ्र्र कि गिलास उसे ना लग कर उसके जिस्म से आर-पार हो गया अचानक हवा का एक तेज झोंका आया दरवाजे भड़ाक से खुल गये शमा बुझ गई। बेगम चीख कर बेहोश हो गई उनकी चीख सुनकर कनीजें दौड़ती हुयी आयीं उन्हें होश मे लाया गया उनकी बात सुन की सारे महल की छानबीन की गई परन्तु उस लड़की का कुछ पता नही चला। सुबह एक मनहूस खबर आई कि बेगम के माता-पिता जो चैलख्खी कोठी में ठहरे थे दोनों अचानक सोते सोते ही मौत की आगोश मे चले गये बेगम पर गाज गिरी सारा महल शोक मे डूब गया। कोई भी उनकी मौत का कारण नही बता सका शाही हकीम का ख्याल था कि उनकी मौत दहशत के कारण हुयी थी, पूरे शाही सम्मान से उनको दफनाया गया। इसके कुछ दिन बाद एक रात बेगम साहिबा को कही दूर से कई लोगों के गाने बजाने की आवाजें आती सुनाई दी उन्होंने अपनी खास कनीज एलू जान को बुलाकर उसका पता लगाने को कहा महल मे इतनी रात मे कौन गा बाजा रहा है। उसने लौटकर बताया कि ये आवाजें महल से नही कही बाहर से आ रही हैं। बेगम बेचैन होकर एलू जाॅन के साथ महल की छत पर पहुंची अमावस होने के कारण छत पर घना अंधेरा था एलू जाॅन हाथ मे लैम्प लिये रास्ता दिखाती हुयी आगे आगे चल रही थी। बेगम ने चारों और गौर से देखा तो गोमती नदी के उस पार बादशाह बाग (वर्तमान लखऩऊ विष्वविद्यालय) में रोशनी दिखी वहीं से गाने बजाने की आवाजें आ रही थीं।
अगली दोपहर जब नवाब साहब दस्तरखान पर आये तो बेगम साहिबा ने उनसे रात के बादशाह बाग के गाने बजाने के बारे मे पूछा तो नवाब साहब को बड़ी हैरानी हुयी क्योंकि उनकी जानकारी मे बीती रात बादशाह बाग में ऐसा कोई जलसा नही था अगले दिन उन्होने बादशाह बाग के मुलाजिम को तलब करके उस रात के जलसे के बारे मे पूछा तो उसने हैरानी से कहा हुजूर बेगम साहिबा को जरूर कोइ्र्र गलतफहमी हुयी है। वहाँ हर रात मैं खुद रहता हूँ वहां तो कई रोज से किसी ने पैर नही रखा हैं। उसकी बात का यकीन ना करके नवाब साहब ने खुद पूरे बाग का मुआयना किया किन्तु उन्हें जलसे का कोई निशान नही मिला ऐसा लगता था कि जैसे महीनों से वहाँ किसी के पैर नही पड़े हैं। इस घटना के तीन-चार माह बाद एक रात बेगम साहिबा के नींद नही आ रही थी अचानक उनके कानों में किसी औरत के रोने की हल्की-हल्की आवाज सुनायी दी आवाज इतनी धीमी थी कि उसकी दिशा का अदांजा लगाना मुशकिल था उन्होंने अपनी कनीजों को तलब कर आवाज का पता लगाने को कहा पर कुछ ना मिला अब बेगम साहब को अकेले में अजीबो-गरीब अहसास होने लगे कभी अकेले मे उन्हें बड़ी धबराहट होती कभी किसी के हंसने या फुसफुसाने या रोने की या किसी के लंबी-लंबी सांस लेने का अहसास होता था किन्तु कोई नजर नही आता था। एक बार बेगम साहिबा एक शादी मे शरीक होने दिलकुशा कोठी गई वापसी मे काफी रात हो गई वे अपने शाही काफिले के साथ पूरब के जंगल (वर्तमान हजरतगंज) के रास्ते वापस आ रही थीं। कि अचानक उनकी बग्घी का पहिया टूट गया बेगम सहिब बग्घी छोड़कर कुछ सिपाही व मशालची पालकी लेकर छतर मंजिल को चलीं कुछ दूर जाने पर बेगम साहिबा को दूर सड़क पर सफेद बेषकीमती कपडे पहने एक युवती नजर आई जिसके काले घने खुले बाल कमर तक लहरा रहे थे बेगम साहिबा को उसकी केवल पीठ ही दिख रही थी ऐसा लग रहा था कि जैसे वह चल नही रही थी बल्कि हवा मे उड़ रही थी। फिजा में गुलाब की खुशबू फैल गई बेगम साहिबा चीख पड़ी वही है, देखो वही है, सबने देखा किन्तु कनीजों व कहारों को कुछ नही दिखा, अचानक वह गायब हो गई बेगम साहिबा चीख की बेहोश हो गयीं। आनन-फानन मे उन्हें महल पहुंचाया गया जहाँ उन्हें होश तो आ गया किन्तु दिल से डर नही गया। हकीम साहब ने फरमाया कि हूजूर मुझे तो यह कोई उपरी चक्कर लगता है। बेगम साहिबा पर जरूर किसी प्रेतनी का साया है। तुरन्त पुरानी मस्जिद के मौलाना को खबर दी गई उन्होंने पानी दम भर कर बेगम साहिबा के पिलाया और बांधने को तावीज दी उनकी दुआयें रंग लाई दो दिन मे बेगम साहिबा बिलकुल ठीक हो गयीं। इसके कुछ माह बाद एक पूनम की रात बेगम साहिबा छत पर खाना खाकर अकेली टहल रही थीं। चारों ओर खिली चांदनी फैली हुयी थी नजारा बेहद दिलकश था। पूरब मे मोती महल चाँदनी रात मे मोती की तरह चमक रहा था पीछे खूबसूरत रेजीडेंसी खमोशी से खड़ी थी चांदनी रात मे गोमती नदी का पानी चांदी की तरह चमक रहा था। मंद-मंद ठंडी हवा के झोंके तन-मन को सूकून और ताजगी प्रदान कर रहे थे। वे इन नजारों मे खोई हुयी थीं कि तभी उन्हें किसी के रोने की आवाज सुनाई दी। कोई औरत बेहद दर्द भरी आवाज मे रो रही थी। अचानक उन्हें नदी वाले बुर्ज पर बैठी एक औरत दिखाई दी जिसने बेशकीमती सफेद रंग के कपड़े पहने थे। उसके घने काले खुले बाल कमर तक लहरा रहे थे। वह छतरी पर घुटनो मे सिर छुपाये रो रही थी। बेगम ने पास जाकर बड़ी हिम्मत जुटाकर पूछा कौन हो तुम यहां कैसे आई क्या गम है, तुम्हे उस औरत ने सिर घुमा कर बेगम साहिबा की ओर देखा वह 20-22 साल की बेहद खूबसूरत युवती थी निसके गाल और ठुड्डी पर तिल थे। उसके गले पर एक ताजा घाव था जिससे खून बह रहा था। तभी वह औरत खिलखिला कर बेहद डरावनीं ढंग से हंसी और मुड़कर बुर्ज से गोमती नदी मे कूद गई बचाओ-बचाओं कोई उस औरत को बचाओ बेगम की आवाज सुनकर सब छत पर पहुंचे तो बेगम बेहोश पड़ी थी उन्हें होश मे लाया गया वह थरथर कांपते हुये बड़बड़ा रही थीं। औरत कूद गई उसे बचाओ उनके हुक्म से रात मे ही नदी मे तैराको, मल्लाहों ने खूब तलाश किया किन्तु ना कोई लाश मिली ना किसी के कूदने के निशान उसी बुर्ज के नीचे इलाहीबख्ष नाम के एक पहरेदार कोठरी थी जो अपनी डियूटी से लौट कर सोने की तैयारी की रहा था उसने भी ना किसी को गिरते देखा ना किसी कि गिरने की आवाज सुनी थी। अगले दिन दरबार मे किसी ने राय दी कि चैक के बड़ी काली जी के मंदिर के पुजारी बड़े पहुंचे हुये तांत्रिक हैं, उनसे ही बेगम साहिबा का इलाज करवाना मुनासिब होगा। नवाब साहब का बुलावा पाकर वे महल मे आये और जनानी डयोढी मे जमीन गोबर से षुद्ध करके उस पर गाय के घी का आटे का दिया जलाकर किसी मंत्र का जाप करने लगे कुछ देर बाद जाप खतम करके उन्होंने बताया कि बेगम साहिबा पर महल की एक 20 साल पुरानी प्रेतनी का साया है। करीब 20-25 साल पहले पुराने नवाब साहब ने अंगूरी नाम की बेहद खूबसूरत तवायफ निकाह करके उसे बेगम नरगिस महल का खिताब दिया था उस तवायफ के रज्जाक नामक एक मुलाजिम से अवैध संबध हो गये थे जब नवाब साहब को इसका पता चला तो वे आगबबूला हो गये नवाब साहब ने रज्जाक का सर कलम करवा दिया और अंगूरी को इसी महल मे कहीं जिदा दीवार मे चुनवा दिया उसी की भटकती रूह बेगम साहिबा को तंग कर रही है। उन्होंने बेगम साहिबा से शाही बगीचे से कुछ गुलाब के फूल बिना गिने लाने को कहा पंडित जी ने उन फूलों को सवा सेर काले तिल की ढेरी पर रखा और फिर उन्होंने किसी मंत्र का जाप करके फूलों पर तीन फूंके मारी तभी एक करिश्मा हुआ जिसे देखकर सभी दंग रह गये। फूल फर्श से एक बालिश उपर हवा मे उड़ने लगे और ड्योढी, बरामदा, गलियारा, बगीचा पार करके महल के पीछे बनी एक दीवार पर जाकर जमीन पर गिर गये फिर पंडित जी की निगरानी पर वह दीवार तोड़ी गई। तो उसमे से बेशकीमती सफेद पोशाक और जेवर पहने एक औरत का कंकाल निकला पंडित जी की सलाह पर उसे पूरे इस्लामी तरीके से उसे दफनाया गया चालीसवां और कुरानखानी हुयी तब से छतर मंजिल में फिर कोई रूह नही दिखाई दी बेगम साहिबा कुछ दिनों बिलकुल सामान्य हो गयी और अगले साल उन्होंने एक बेटे को जन्म दिया दिया।
यह रहस्य-रोमांच कहानी पूर्णतः काल्पनिक है!


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