चन्द्रिका देवी तीर्थ

लखनऊ से 20 किमी उत्तर मे पौराणिक कालीन तीर्थ स्थित है। स्कंद पुराण मे इस तीर्थ का मही सागर के रूप मे विशद वर्णन पाया जाता है। पौराणिक कथा के अनुसार एक बार ब्रह्मा जी की सभा मे यह विचार हो रहा था तीर्थों का राजा कौन है। तो मही सागर ने स्वयं अपनी बड़ाई करते हुये कहा कि तीर्थों मे सर्वश्रेष्ठ मैं ही हूँ ब्रह्मा जी ने कहा नि'संदेह सर्वश्रेष्ठ तुम ही हो किन्तु महापुरूष कभी स्वयं अपनी प्रशंसा नही करते है। अतः इस अपराध के कारण तुमसे यह पद छीन लिया जाता है। और तुम अपना महात्म भूल जाओगे कलयुग मे केवल अमावस्या को ही तुम्हें पूर्ण शक्तियां प्राप्त होंगी। यहाँ महर्षि नारद द्वारा अपनी स्थापित चार दिशाओं में चार मुख्य देवियां और विभिन्न दिशाओं मे नौ दुर्गाओं की स्थापना की गई थी। जिनका विषद वर्णन स्कंद पुराण के में किया गया है। जो इस प्रकार है। महामुनि नारद ने अर्जुन से कहा इस तीर्थ की रक्षा के लिये चार दिशाओं मे मैंने जिन देवियों की स्थापना की है वह सुनो पूर्व दिशा मे स्कंद स्वामी द्वारा स्थापित सिद्धाम्बिका की स्थापना हुयी है। सिद्धों द्वारा पूजित हांेने के कारण वे सिद्धाम्बिका कहलाई। दक्षिण दिशा मे तारा देवी की मैने स्थापना की इन्होंने देवताओं को तारने के लिये भगवान कच्छप का आश्रय लिया था इन्ही की शक्ति के बल पर कूर्म भगवान ने देवताओं का उद्धार किया था पश्च्छिम दिषा मे शुभस्वरूपा भास्वरा देवी स्थित है। सूर्य और नक्षत्रमंडल उन्ही से प्रकाशित होते है। उन्हें मैं ब्रह्माण्डकटाह से लाया था उत्तर दिशा मे योगनन्दिनी देवी का वास है। जो आदि पराशक्ति है। जिनसे सनकादिको ने योग प्राप्त किया था मैं इन्हें अण्डकटाह से लाया था वे योगनियों से घिरी हुयी उत्तर दिशा मे निवास करती हैं। यह चार महाशक्तियां सदा चारो दिशाओं मे वास करती हैं। तदन्तर मै नौ देवियों को लाया। पूर्व दिशा मे तीन देवियां है। जिनमे त्रिपुरा नामक उच्चकोटि की देवी को मै अराधना करके अमरेश पर्वत से लाया इन्ही शक्ति के बल पर भगवान शंकर ने त्रिपुरासुर का वध किया था दूसरी कोलम्बा देवी है जिनके बल पर भगवाल विष्णु ने वाराह रूप मे पृथ्वी को उठाया था मै इन्हें वाराहगिरि पर्वत से लाया था पूर्व दिशा मे तीसरी देवी कपालेशा है जिन्हें मैने और कार्तिकेय जी ने स्थापित किया था पश्च्छिम दिशा मे भी तीन देवियां है। पहली देवी सुवर्णाक्षरी है। द्वितीय चर्चिता है। इन्हें मैने रसातल से बुलाया था दूसरी देवी त्रैलोक्यविजया को मै सोमलोक से लाया था उत्तर दिशा मे वास करने वाली पहली देवी एकवीरा को मै ब्रह्मलोक से लाया था दूसरी देवी हरसिद्धि है। जिन्हें मै शाक्तोंत्तर से लाया था तीसरी इशान कोण मे चंडिका देवी है। जिन्होने माता पार्वती के शरीर से निकल कर चण्ड मुण्ड असुरों का विनाश किया था।


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