दहेज दानव
अम्मी जल्दी से नाश्ता लगवाइये मुझे काॅलेज जाने की देर हो रही हैनाज ने कहा!
अच्छा मेरी प्यारी बेटी तू बस जल्दी से तैयार होजा, अम्मी ने कहा।
नाज एक अच्छे इज्जतदार और पैसे वाले खानदान की बेटी है। वह बहुत नाज-नखरे और लाड़-प्यार से पली है। लेकिन धमण्ड क्या है वह जानती तक नहीं है। वह अमीर-गरीब, छोटे-बड़े हर इन्सान से प्यार करती है यानि वह वह खूबसूरती और अच्छे इखलाक की जिन्दा तस्वीर है। नाज का एक प्यारा बड़ा भाई युसुफ है जो नाज का ही हम ख्याल है और भाई-बहन में बेहद प्यार है।
नाज जानती है मैं कितनी देर से तेरा इन्तजार कर रही हूं।
जानती हूं बाबा कि तू मेरा कितना बेसब्री से इन्तजार करती है, मैं वह भी जानती हूं कि मैं जब तक काॅलेज नहीं आ जाती तेरा दिल हलक में अटका रहता है कि मेरी नाज अब तक काॅलेज क्यों नहीं आ पाई। मैं खुदा की बेहद शुक्रगुजार हूं कि उसने मुझे तुझ जैसी प्यारी सहेली दी है। सच तू मुझसे मेरी जान से ज्यादा अजीज है। मेरी प्यारी शबी तू नहीं जानती कि मैं तुझे कितना प्यार करती हूं नाज ने बड़े अपनेपन से कहा।
शबी एक गरीब लेकिन इज्जतदार घराने की लड़की है। शबी कभी-कभी सोचती है कि मैने नाज से दोस्ती करके ठीक नहीं किया। क्योंकि पैसे वाले की और गरीब की कैसी दोस्ती। पैसे वाला सिर्फ मालिक और गरीब सिर्फ एक अदना सा नौकर। नौकर और मालिक की कैसी दोस्ती। लेकिन फिर सोचती यह सब खुदा का करिश्मा है, वह मेरी दोस्ती की लाज जरूर रखेगा।
अम्मी ये देखिये यही मेरी प्यारी सहेली शबी है। नाज ने अम्मी से कहा।
तसलीम अर्ज करती हूं अम्मी शबी ने कहा!
खुश रहो बेटी, नाज कमाल बाबा से चाय-नाश्ता लाने के लिए कह दो अम्मी ने कहा!
अम्मी ये शबी है न कभी-कभी बड़ी अजीब और पागलपन की बातें करती है कि हम गरीब है तुम अमीर हो हमारी तुम्हारी दोस्ती भला कैसे हो सकती है। अब आप ही बताइये मैं इस पागल को कैसे समझाऊं! नाज ने कहा।
अरे बेटी ये सब बातें नहीं करते हम सब एक खुदा के बंदे है, इज्जत-जिल्लत, अमीरी-गरीबी सब वह ही देता है, हम तो सिर्फ इन्सान है और हर इन्सान का दूसरे इन्सान से कुछ न कुछ रिश्ता होता है। अल्लाह का मल्हत को कोई नहीं समझ सकता, अम्मी ने शबी से कहा।
अम्मी मेरी प्यारी शबी अब हमसे दूर हो जायेगी, नाज ने कहा। क्यों बेटी क्या है अम्मी ने फौरन पूछा।
अम्मी वो बात ये है कि शबी की शादी होने वाली है। नाज ने कहा।
ये तो जमाने का वसूल है, बेटी तो पराया धन होती है एक दिन तू भी तो शबी की तरह छोड़ के चली जायेगी अम्मी ने कहा।
अच्छा मैं चलती हूं घर पर सब इन्तजार कर रहे होंगे। शबी ने उठते हुए अम्मी से कहा।
बेटी शबी किसी बात का फिक्र मत करना मेरे लिए जैसे नाज वैसे तू है, अम्मी ने बड़े प्यार से कहा।
तसलीम अम्मी!
तसलीम बेटी खुश रहो!
शबी का छोटा सा घर रंग-बिरंगे बल्बों से सजा हुआ चहल-पहल मची हुई है। नाज की तो खुशी का ठिकाना नहीं वह बनीं संवरी कभी इधर भाग रही है, कभी उधर भाग रही है। जहां एक तरफ वह बहुत खुश है तो दूसरी तरफ दिल के किसी कोने में शबी से जुदाई की कसक भी है। नाज और शबी दोनों की अम्मी दूसरे कामों मे लगी हुई हैं। तभी बैण्ड-बाजे की आवाज सुनाई देती है, नाज शबी के पास से यह कहकर भागी अरे बारात आ गई, बारात आने का शोर चारो तरफ मच गया लड़कियों का हुजूम देखने के लिए छज्जे पर जमा हो गया।
इधर शबी अकेले कमरे में बैठी है उसकी आंखों में सोच-सोच कर आंसू भर आते है कि वह आज अपनी प्यारी मां चाहने वाले बाप, और अपनी प्यारी सहेली नाज से जुदा हो जायेगी। लेकिन ये खुदा का बना हुआ उसूल है। जिसे हर मां-बाप को एक न एक दिन जरूर पूरा करना पड़ता है।
बारात आ गई! सब बैठ गये! दुल्हन को तैयार किया जाने लगा निकाह की जल्दी होने लगी। अभी ये सब तैयारियां हो रही थी कि दूल्हे के वालिद आसिफ साहब ने शबी के वालिद रफीक को बुलवाया वो बेचारे फौरन उनके पास पहुंचे। आसिफ साहब ने रफीक साहब से कहा, जरा मुझे दहेज की फेहरिस्त दिखा दीजिए। रफीक साहब ने कहा, जो मेरे पास था मैंने सब अपनी बेटी को दे दिया है, मैंने जो भी अपनी गरीबी में कमाया वह सब आपकी खिदमत में हाजिर कर दिया है।
फिर भी फेहरिस्त दिखा देने में हर्ज ही क्या है। आसिफ साहब ने कहा, रफीक साहब ने फेहरिस्त दिखाई तो आसिफ साहब के नाक-भौं सिकुंड़ गये। वह तमककर बोले यह भी कोई फेहरिस्त है न टेलिविजन है न फ्रिज। भाई साहब जो भी मुझ गरीब के पास था मैंने सब दे दिया है मेरा सरमाया मेरी चांद सी बेटी है वही मैं आपको दे रहा हूं। इंशाअल्लाह वह आपके घर को इखलाक और खिदमत से जन्नत बना देगी, रफीक साहब गिड़गिड़ाते हुए कहा, अजी हमें खिदमत करने वाली नौकरानियां बहुत मिल जायेंगी। मेेरे बेटे में कोई कमी नहीं लाख-लाख रूपये दहेज में लोग दे रहें हैं। मैंने यह सोचकर आपके यहां से रिश्ता किया था कि आखिर इकलौती बेटी है टेलिविजन-फ्रिज तो देंगे ही लेकिन साहब आपने कंजूसी की हद ही खत्म कर दी या तो टेलिविजन, फ्रिज भी दीजिए वरना ये रिश्ता नहीं हो सकेगा। आपने इस चांद से अपना घर रोशन कीजिए। आसिफ साहब ने यह सब बातें बड़े तल्ख लहजे में कही। जिन्हें सुनकर रफीक साहब का कलेजा चाक-चाक हुआ जा रहा था। वह अपनी बेहद प्यारी और जान से अजीज बेटी की बदनामी और बरबादी को बरदास्त नहीं कर पा रहे थे। उन्होंने आसिफ साहब के कदमों पर सर रखते हुए कहा, मेरी इज्जत से मत खेलिए खुदा के लिए मेरी बेटी की जिन्दगी मत बरबाद कीजिए। अब उसे कौन अपनायेगा! गरीबी और ये दाग वह किस मुंह से जमाने में जिन्दा रहेगी। नहीं, नहीं ऐसा गजब मत कीजिए मेरी बेटी को खुदकशी पे अमादा न कीजिए खुदा के लिए अपना इरादा बदल दीजिए। अपना इरादा मैं तभी बदल सकता हूं, जब फेहरिस्त बदली जाए, यानि उसमें टेलिविजन-फ्रिज भी जोड़ दिया जाए, आसिफ साहब ने घमण्ड से कहा।
नहीं-नहीं ऐसा मत करिए मेरी बेटी और हम लोग बेमौत मर जायेंगे। यकीन कीजिए मेरे पास अब कुछ नहीं बचा। मैं अपनी झोली आपके सामने फैलाकर इज्जत की भीख मांग रहा हूं, रफीक साहब ने रोते हुए कहा। मैं मजबूर हूं, चलो भाई यहां से शादी नहीं हो सकती।
आसिफ साहब के यह कहते ही बाराती उठने लगे । जिसे देखकर रफीक साहब आसिफ साहब के कदमों में गिर पड़े और गिड़गिड़ाने लगे। यह मंजर देखकर तमाम लोगों के साथ-साथ नाज की अम्मी का कलेजा चाक हुआ जा रहा था। नाज बेहोश शबी और उसकी अम्मी को सम्भाल रही थी। देखते-देखते हंसी-खुशी का माहौल मातम मे बदल गया।
लेकिन दुनियां में फरिश्तों की कमी नहीं है वह किसी न किसी सूरत में मजबूरों की मदद को आ ही जाते हैं। नाज की अम्मी भी शबी और उसके मां-बाप के लिए फरिश्ता साबित हुई क्येंकि वह खुद एक बेटी की मां थी और वह एक मां के दिल की कैफियत समझ सकती थी। उन्होंने चंद मिनट में सोंचा और आसिफ साहब के पैरों में पड़े रफीक साहब से कहा, भाईजान इन दौलत के अंधे लोगों के आगे गिड़गिड़ाने से कोई फायदा नहीं मेरी शबी विदा होगी और उसी शान से जैसा आपने सोचा था। मैं शबी को अपनी बहू बनाऊंगी वह मेरा घर रोशन करेगी हम खुश नसीब हैं कि हमें ऐसी बहू मिलेगी। शबी मेरी बहू नहीं बेटी बनकर रहेगी। यह सुनते ही नाज ने खुश होकर शबी को अपने गले से लगा दिया। रफीक साहब हैरान थे उन्हें यकीन नहीं आ रहा था कि अल्लाह इस तरह मेहरबानी करता है, उनके मुर्दा चेहरे पर जिन्दगी की रौनक लौट आई शबी की अम्मी ने लपक कर नाज की अम्मी को गले से लगा लिया और खुशी के आंसुओं से भरी आंखों को पोंछते हुए कहा, मेरी बहन मैं किस तरह से आपका शुक्रिया अदा करूं। आपने तो हमारी दुखों की झोली में खुशियां ही खुशियां भर दी! अल्लाह आपको इसका फल जरूर देगा।
नहीं मेरी अजीज बहन यह सब ऊपर वाले की मरजी है, वह न जाने कब किसको कैसे मिलवा दे दुनियां के तमाम रिश्ते वह ही बनाता है शुक्र मेरा नहीं उस खुदा का अदा कीजिए जिसने हम सब को इस तरह मिलवाया, नाज की अम्मी ने खुशी से रूंधी आवाज में कहा! और शबी उसका तो ये हाल था कि जैसे मरते-मरते जिन्दगी मिल गई हो उसने मारे खुशी के अपनी पलके बंद कर ली और उन पलकों से दो मोती जैसे खुशी के आंसू उसके गुलाबी रूखसारों पर गिर पड़े।