देवगढ़ की वो रात

यह घटना सन् 1961 में मेरे ही साथ घटी थी मैं राजवीर सिंह भदौरिया, उन दिनों मैं ललितपुर जिले के देवगढ़ थाने में स्टेशन अफसर के रूप में पोस्टेड था, मुझे काम संभाले हुये करीब साल भर हुआ था यह कम आबादी वाला जंगलों से घिरा ईलाका था यहाँ दूर-दूर तक पुराने महलों व मंदिरों केग्नावेश फैले हुये थे जंमाष्टमी का दिन था सबेरे से रह-रहकर बारिस हो रही थी हमें खबर मिली थी, कि आज रात एक पुराना फरार मुजरिम मलखान चँदौली गांव में अपनी किसी रिश्तेदारी में आने वाला है। खबर पक्की थी, हमने पुलिस टीम के साथ गांव मे दबिश दी लेकिन ना जाने उसे कैसे हमारे आने की खबर मिल गई और हमारे वहाँ पहुंचने से पहले ही वह चंपत हो गया लौटते समय तेज बारिस शुरू हो गई थाने तक आते हुये हम लोग पूरी तरह भीग चुके थे, जब हम थाना पहुंचे तो रात के साढे बारह बज रहे थे बाकी स्टाफ घर चला गया मेरी और एक संतरी राजाराम की नाईट डयूटी थी लालटेन के रोशनी मे मैं कुछ जरूरी कागज देख रहा था मैने शाम को ही पत्नी सुमन को बता दिया था आज रात शायद मैं घर ना आ सकूँ वह खाने पर मेरा इंतजार ना करे काम खत्म करने के बाद मैंने संतरी को चाय बना लाने का आदेश दिया चाय रखकर वह जब दुबारा लौटा उसके चेहरे पर अजीब सी घबराहट के भाव थे मैंने उससे पूछा क्या हुआ! वह बोला साहब बाहर तूफान आने वाला है आप कहें तो खिड़की दरवाजे बंद कर दूँ, उसकी बात खत्म होने से पहले ही वाकई तूफान आ गया तेज हवा के साथ पानी की बौछार अंदर आने लगी थीं मैं और राजाराम के साथ दौड़़कर सारें खिड़की दरवाजे बंद करने लगे लालटेन बुझ गई थी अंदर काफी पानी भर गया था तूफान करीब घंटा भर चला फिर आंधी पानी बंद हो गई हम खिड़की दरवाजे खोल कर बाहर आये तेज बारिस के चलते चारों ओर पानी ही पानी भर गया था, गहरा अंधेरा छाया हुआ था कभी-कभी चमकती बिजली में कुछ पलों के लिये बाहर का कुछ नजारा नजर आ जाता था हवा अभी भी तेज चल रही थी हम बरामदे मे खड़े बाहर का नजारा देख रहे थे तभी मैं अचानक चैंक गया सामने बरसाती पानी मे छप-छप करती कोई छाया तेजी से हमारी ओर आ रही थी फिर वो राजाराम के पास आकर खड़ी हो गई वह एक 24-25 साल की संुदर विवाहित युवती थी, उसके कपड़े पूरी तरह भीगकर उसके जिस्म से चिपक गये थे जाहिर था कि वह बरसते पानी में घर से निकली थी करीब-करीब हांफते हुये संतरी से बोली भइया मैं बड़ी मुसीबत मे हूँ मेहरबानी करके मुझे थानेदार साहब से मिलवा दीजिये बात पूरी करते-करते वह मेरे पास आ गई और भय से कांपते स्वर मे बोली मुझे बचा लीजिये इन्सपैक्टर साहब वरना वह मेरी जान ले लेगा मेरी इज्जत भी खराब कर देगा सारा मामला मेरी समझ मे आ गया यह इस समय किसी धंधे वाले के चंगुल से छूट कर भागी है। मैंने उसकी हिम्मत की दाद दी वरना इस घनघोर अंधेरी तूफानी रात मे किसी औरत का घर निकलना नामुमकिन था मैंने उसे गौर से देखा वह गजब की खूबसूरत लड़की थी गोरी चट्टी, तीखे नाक-नक्श, एकदम सांचे में तराशा बदन मुझे उसकी दुर्दशा पर बड़ा गुस्सा आया मैंने उससे पूछा कौन हो तुम? कहां से आई हो? तो उसने कहा मेरा नाम रेशमा है, खमपुरा वहां मेरी सुसराल है। उसकी बात से मुझे बड़ी हैरानी हुयी क्योंकि काफी सोचने पर भी मुझे याद नही आया कि मेरे इलाके मे खमपुरा नाम की जगह कहां पड़ती है मंैने ताज्जुब से पूछा यह खमपुरा पड़ता कहां है यहां से तीन-मील दूर खम नदी के किनारे इतनी दूर देर रात तुम अकेली चली आई तुम्हारा आदमी कहाँ है। क्या करता है उसका नाम बनवारी है। एकदम निकम्मा है। साहब दिन-रात नशा करता है। मैं कई घरों मे काम करती हूँ वह मेरी सारी कमाई छीन लेता है खूब मार-पीट करता है। वह पैसा लेकर मुझसे गलत काम करवाना चाहता था आज वह एक ग्राहक ले आया मैं राजी नहीं हुयी तो उसने मुझे बहुत मार-पीटा तभी आंधी तूफान आ गया जिसका फायदा उठाकर अंधेरे में मैं वहां से भाग निकली मुझे बचा लीजिये साहब मंै रात मे घर नही जाऊंगी आप चलिये मेरे साथ और मेरे मर्द और ग्राहक को पकड़ लीजिये मैं आपके पांव पड़ती हूँ। मैंने कहा कि मेरा इस समय जाना मुमकिन नही है। मैं इस समय चैकी मे अकेला हूँ, मौसम भी बहुत खराब है। चारों ओर पानी भरा है। आंधी मे अगर कोई पेड़ गिर गया तो हम सब मारे जायेंगें सुबह जरूर तुम्हारे मर्द को पकड़ कर हवालात मे डाल दूंगा नही साहब अभी चलिये वरना वह भाग जायेंगें अभी चलना मुमकिन नही है। वह शुष्क स्वर मे बोली ठीक है साहब मंै अकेली वापस जाती हूँ, फिर पीछे जो होगा देखा जायेगा मैंने कहा हरगिज नहीं मैं तुम्हें इस अंधेरी तूफानी रात मे कहीं नही लाने दंूगा तुम आज रात मेरे घर मे मेरी बीबी बच्चों के साथ रह लो वहां तुम्हें कोई तकलीफ नहीं होगी मैंने उसे राजाराम के साथ पीछे बने स्टाफ क्वाटर में भिजवा दिया अगली सुबह जब मैं घर पहुँचा तो सुमन से पूछा रात भेजी लड़की कैसी है। तो सुमन ने कहा रात मैंने उसे बदलने के लिये साड़ी दी थी और चाय पिलाकर अंदर वाले कमरे मे सुला दिया था ठीक है अब जल्दी से चाय बना लाओं और उसे भी दे दो कुछ समय बाद सुमन कुछ परेशान सी चाय लेकर आई बोली बड़ी अजीब लड़की है। वह तो कमरे मंे है ही नहीं मैंने उसे कपड़े बदलने के लिये जो साड़ी दी थी वह भी वैसी ही पड़ी है। लगता है। जैसे वह रात कमरे मे सोई ही नहीं। मैं उसे अंदर वाले कमरे मे छोड़कर हटी लेकिन वह चलती बनी लेकिन वह गई कैसे घर तो रात मे अंदर से बंद था कल रात मैंने उसके घर आने के बाद खुद ताला लगाया था सुबह आपके आने के पर ही खोला है फिर वह गई कैसे मैंने हँसते हुये कहा शायद तुम ताला लगाना भूल गई होगी नही मुझे ताला लगाना अच्छी तरह याद है! अगले दिन राजाराम ने रात की बात सारे स्टाफ को बता दी सब लोग तरह-तरह की कानाफूसी करने लगे तीसरे दिन मैंने दरोगा सी.एल. शर्मा को उस रात का सारा वाकया बताकर कहा चलो आज इस मामले की तफतीश कर लें फिर उसकी रिर्पोट दर्ज कर ली जाय वह बोले पर सर हमारे ईलाके में तो खमपुरा नाम की कोई जगह है ही नही, यह बात मेरे दिमाग मे भी आई थी पर उसने बताया था खमपुरा यहाँ से तीन चार मील दक्षिण मे खम नदी के किनारे पर है हां सर वहां खम नदी जरूर है, चलिये वहाँ चल कर पूँछ लेंगें मैं इन्सपैक्टर शर्मा और तीन सिपाही अगली सुबह चले आज मौसम साफ था करीब दो मील चलने पर हम एक घने जंगल मे पहुंचे यहां जमीन काफी पथरीली व उबड़-खाबड़ थी जंगल पार करके हम एक मैदान पर पहुँचे कुछ आगे चलने पर हमे खम नदी दिखाई दी जो वास्तव में एक बरसाती नाला था एक सिपाही ने कहा साहब इसमे तो केवल बरसात मे ही पानी रहता है बाकी साल नदी सूखी रहती है वहां नदी के बाँये हाथ पर काफी दूर एक बस्ती दिखाई पड़ रही थी वहां पहुचने पर पता चला कि इस गांव का नाम जुगौली है। यह 60-70 घरों का छोटा सा गांव था वहंां पहुंच कर हमने खमपुरा के बारे मे पूछा तो वहां खमपुरा के बारे मे कोई कुछ नही बता सका सबने कहा यहां आस-पास इस नाम का कोई गांव नही है शिवपाल बाबा नामक के एक बेहद बूढे आदमी से जब गांव वालों ने पूछा तो उसने कांपती आवाज में बताया कि खमपुरा नाम की कोई बस्ती नहीं है। हां नदी के किनारे एक पुराना शमशान जरूर था उसी को लोग खमपुरा कहते थे, लेकिन 40-50 सालों से नदी सूखी पड़ी है और वह जगह भूतिया है इसलिये अब कोई वहाँ मुरदे नही जलाने जाता है। शमशान का नाम सुनकर सिपाहियों की हालत पतली हो गई उनके चेहरे पर घबराहट साफ झलकने लगी थी लेकिन तीन-चार दिन पहले जंमाष्टमी की बरसाती रात मे खमपुरा की एक बहू रात दो बजे रिर्पोट लिखाने आई थी उसका पति बनवारी उसको मारपीट कर धंधा करवाना चाहता था बनवारी का नाम सुनकर बूूढा भय से कांपने लगा उसकी पगड़ी जमीन पर गिर गई देह से पसीना बहने लगा फिर हांफते हुये उसने पूछा कही उस लड़की ने अपना नाम रेशमा तो नही बताया था हाँ रेशमा ही बताया था, रेशमा का नाम सुनकर बूढा बेहोश हो गया लोगों ने उसके चेहरे पर पानी के छींटे मारे कुछ देर बाद वह होश मे आया लेकिन उसका डर कम नही हुआ किसी ने उसे गर्म दूध पीने को दिया काफी देर बाद वह सामान्य हुआ तो मैंने उससे पूछा क्या तुम रेशमा को जानते हो उसने मुझे हैरानी से देखते हुये पूछा क्या वह उस रात वाकई आपसे मिली थी हाँ भाई हां बिलकुल साहब आपको जरूर कोई धोखा हुआ होगा! रेशमा आपके पास कैसे आ सकती है। मैंने उससे कहा पहेलियां मत बुझाओं ये बताओ ये माजरा क्या है। उसने बुझी आवाज मे कहा साहब रेशमा को मरे तो करीब सत्तर साल हो गये है। बूढे की बात सुन्नकर हम सब सन्न रह गये मेरा दिमाग तो जैसे सुन्न हो गया मुझे चक्कर से आने लगे मेरी हालत देखकर एक आदमी लोटे मे पानी ले आया मैंने कुछ पिया पानी के कुछ छींटे चेहरे पर मारे सामान्य होने पर मैने पुनः शिवपाल बाबा से बातचीत शुरू की उसने कहा हुजुर आप बड़ी किस्मत वाले है। जो उस रात उसके साथ नही गये बरना आप जिंदा नही बचते। क्या कह रहे हैं आप! बाबा बिलकुल सच कह रहा हूँ बेटा, यह बात तब कि है जब हमारे देश मे अंग्रेजों की हुकुमत थी रेशमा देवगढ़ के कुलीन व सम्पन्न ब्राह्मण राम अवतार चैबे की बेटी थी उसके बाप के पास सैकडों बीघा जमीन थी ना जाने कैसे उसका देवगढ़ के ही एक युवक बनवारी लाल शर्मा से ईश्क हो गया जो देवगढ़ मे मेट्रिक की पढाई कर रहा था बनवारी का बाप हेड पोस्ट मास्टर था दोनों की माली हालत मे जमीन आसमान का अंतर था कहते है इश्क और मुश्क छिपाये नही छुपते! बात जब चैबेजी के कानों तक पहुंची तो उन्होनंे ने सारा आसमान सर पर उठा लिया रेशमा के घर से बाहर निकलने और किसी से भी बात करने पर पांबदी लगा दी हेड मास्टर साहिब ने भी अपने बेटे को खूब जमाने की ऊँच-नीच समझायी लेकिन प्रेम तो अंधा होता है। साहब वे दोनांे भी अंधा हो चुके थे, साथ जीने मरनें की कसमे खाने वाले वो प्रेमीयुगल तन से ना सही पर मन से कभी के एक हो चुके थे उन्होंने जमाने की रूढियो और जाति-पांति की जंजीरें तोड़ने का फैसला कर लिया एक रात रेशमा समाज की सारी दीवारें तोड़कर दबे पांव बनवारी के साथ घर से भाग निकली और भाग कर उन्होंने शादी कर ली जब यह बात उन दोनांे के घर वालों तक पहुंची तो उन्होंने अपना सर पीट लिया उन लोगों ने उन्हें मरा मानकर सदा के लिये प्रेमीयुगल से नाता तोड़ लिया वे दोनों भाग कर इस गांव मे आ गये और इस गांव के मुखिया जी दया खाकर ने उन्हें थोड़ी जमीन दे दी जिसमे वह झोपड़ी डालकर रहने लगे रेशमा गजब की सुंदर थी गांव के हम सब बच्चे उसे गोरी चाची कहते थे कुछ दिन तक सब ठीक चलता रहा फिर बनवारी गलत रास्ते पर चल पड़ा कोई काम धाम नही करता दिन भर शराब गांजे के नशे मे डूबा रहता था वह उसे धंधा करवाने को उकसाने लगा रेशमा जब विरोध करती तो वह उसे जानवरों की तरह मारता था, एक दिन उसने नीचता की सारी सीमायें तोड़ दीं। यह भादौ आठों की रात थी सबेरे से रूक-रूककर पानी बरस रहा था, बनवारी एक ग्राहक ले आया और रेशमा से उसे खुश करने को कहने लगा! रेशमा के मना करने पर उसने रेशमा को बहुत मारा, तभी बाहर तूफान आ गया लालटेन तेज हवा से बुझ गई रेशमा अंधेरे का फायदा उठाकर नदी की ओर भाग निकली बनवारी और उसके दोस्त उसका पीछा कर रहे थे पर औरत जात कितना भाग पाती आखिर थक कर हार गई गुस्से और नशे मे धुत बनवारी ने रेशमा का गला घोंट कर मार डाला और खुद जंगल मे भाग गया अगले दिन रेशमा की लाश मिली जिसे पुलिस ने खमपारा मंे जलवा दिया बनवारी का कुछ पता नहीं चला, लेकिन एक दिन वह वापस आ गया वह पूरा पागल हो चुका था कभी-कभी अचानक चिल्लाने लगता बचाओ-बचाओ रेशमा आ गई है, वह मेरा गला दबा रही हैं एक दिन इसी पागलपन में खून की उल्टी करते हुये मर गया। कुछ दिन बाद बनवारी के वो दोस्त भी रहस्यमय ढंग से मर गया लोगों का कहना था कि मरने के बाद रेशमा प्रेतनी बन गई है। अक्सर तूफानी रातों मे जंगल, या वीराने में भटकती हुयी किसी नवजवान से मिलती है। और अपनी इज्जत बचाने के बहाने उसे खमपुरा ले जाकर गायब हो जाती है। अगले दिन उस नवजवान की लाश ही मिलती है। कुछ ऐसे खुशकिस्मत नवजवान भी थे जो उसके झांसे मंे नही आये और बच गये धीरे-धीरे यह बात फैल गई और लोगों ने रात बिरात-घर से निकलना ही छोड़ दिया । आज भी कभी-कभी कोई अभागा परदेशी उसके जाल मे फंसकर अपनी जान गवां देता है। धीरे-धीरे लोग खमपुरा को भूल गये खमपुरा एक भूली बिसरी दास्तान बनकर रह गया। कहते है कि आज भी रेशमा अक्सर तूफानी रातों मे ऐसे नवजवान की तलाश मे निकलती है। जो उसकी इज्जत बचा सके। आप बड़े खुशनसीब है साहब। जो उस रात उसके साथ नही गये वरना आप भी जिंदा नही बचते खौफ और दहशत की अविश्वसनीय कहानी लेकर मैं थाने लौट आया पत्नी को जब मैंने पूरा किस्सा बताया तो मारे डर के उसकी हालत भी खराब हो गई उन्ही दिनों मेरा तबादला महोबा हो गया फिर मुझे दुबारा ललितपुर जाने का मौका नही मिला। खमपुरा के जंगलों मे रेशमा की आत्मा आज भी भटकती है, या नही यह तो मुझे नही पता पर अक्सर बरसात की तूफानी रातों मे भीगी हुयी रेशमा की याद अभी मेरे दिल दिमाग को अंदर तक डरा देती है।
यह रहस्य-रोमांच कहानी पूर्णतः कालपनिक है!


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