प्रेतनी दुल्हन
सन् 1938 की बात है महाराष्ट्र के अहमदनगर जिले के बालकी गांव में शिवाजी राव नामक एक सम्पन्न किसान रहते थे, वे तीन बेटियों और एक बेटे के पिता थे। बेटियों की शादी हो चुकी थी गर्मी के दिन थें, घर में इकलौते 17 वर्षीय बेटे दामोदर की शादी की खुशियाँ मनाई जा रही थी। पूरे गांव में चर्चा थी कि दुल्हन बहू बड़ी सुन्दर है। बिलकुल अप्सरा जैसी बात सोलह आने सच थी। वैसी सुन्दर बहू आज तक गांव मे नही आई थी। जेठ के महीने की तपती दुपहरी मे घर की औरतें ढोलक की थाप पर विवाह के मंगल गीत गा रही थी। मर्द बैठक में बैठे इधर-उधर की बातें कर रहे थे। शिवाजी राव का मन नही लग रहा था उन्हें रह-रह कर अज्ञात अनिष्ट की आशंका सता रही थी। उनकी शंका निराधार नही थी। दरअसल बात यह थी विवाह के वक्त से ही घर में कुछ अजीब सी मनहूस घटनायें घट रही थी। जिनका कोई जवाब नही था शादी के कुछ दिन पहले शिवाजी चढावे के लिये जेवर और साड़ियां खरीद कर लाये थे शाम के वक्त जब वह उन्हें पत्नी बेटियों को दिखा रहे थे। तो ना जाने कैसे ताक मे रखा दिया लुढक गया और एक साड़ी मे आग लग गई साड़ी बदल दी गई। बात आई गई हो गयी। विवाह वाले दिन दोपहर मे बारात नौ बैलगाड़ियों में 12 कोस दूर देवीपुर गांव के लिये चली अभी बारात गांव की सीमा के बाहर भी नही पहुंची थी कि जिस बैलगाड़ी में दुल्हा बैठा था उसमें दुल्हे के ठीक सामने एक घायल कौवा आसमान से गिरा और देखते देखते मर गया बात पूरी बारात में फैल गई और चारों और काना-फूसी होने लगी। सबकी राय से बारात रोक कर गांव की देवी के स्थान पर देवी से रक्षा की जुहार लगाई गई फिर बारात आगे बढी देवी ने सुन ली और शादी साकुषल निपट गई। तीसरे दिन बहू घर आ गई। बारात आते-आते षाम हो गई थी। उसी रात घर के लोग गहरी नींद में सो रहे थे कि आधी रात के वक्त तेज कर्कश आवाज सुन कर लोगों की नींद खुल गई। कुछ पड़ोसी भी जग गये मुुहल्ले के एक बुजुर्ग ताना जी साठे बोले यह तो उल्लू की आवाज लगती है। बाहर ढूढ़ने पर सबने देखा कि षिवाजी के घर की छत पर बैठे चार पांच उल्लू कर्कश आवाज मे चीख रहे थे शादी वाले घर की छत पर बैठे मनहूस उल्लुओं को देख कर अंजाने अनिष्ट की आषंका से सबकी बोलती बंद हो गई। किसी तरह उल्लुओं को भगाया गया। शिवाजी अभी सोच में डूबे ही थे कि तभी अचानक घर मे चीख पुकार मच गई। दौड़ो जल्दी डाक्टर वैद्य को बुलाओं बहू ने जहर खा लिया गांव भर में हड़कंप मच गया आनन-फानन में वैध पुरूषोतम पंत बुलाये गये जब तक वे आते तब तक बहू के प्राण पखेरू उड़ गये घर मे रोना पीटना मच गया षिवाजी की पत्नी ने बताया कि किसी काम से वह दुपहर मे बहू के कमरे मे गई तो बहू खाट पर पड़ी तड़प रही थी। उसके मुंह से झाग निकल रहा था। उसने हाथ जोड़ते हुये बताया मां जी मै यहां शादी नही करना चाहती थी घर वालों ने बिना मेरी मर्जी से जबरन मेरी शादी की थी। मैने जहर खा लिया है। मुझे माफ कर दें, इस जीवन में आपकी सेवा नही पाई।
किसी बुजुर्ग ने षिवाजी को बताया कि आज गांव मे अंग्रेज हाकिम गांव का दौरा करने आयेंगें उन्हें पता चल गया तो बेकार मे बखेड़ा खड़ा हो जायेगा इसलिये तुम जल्दी से बहू का क्रियाकर्म कर दो। षिवाजी तैयारी कर ही रहे थे कि इतने मे खबर मिली कि फिरंगियों की गाड़ियां आ रही है। तुरन्त घर की शादी की सजावट हटा दी गई। किन्तु लाश ले जाना टेढ़ी खीर थी। कुछ आदमियों की मदद से दामोदर ने अपने कमरे की कच्ची जमीन खोद कर उसमे लाश दफना दी और ऊपर से चारपाई बिछा दी तभी अंग्रेज गाँव में आ गये घर के सामने भीड़ खड़ी देख कर एक अफसर ने पूछा तुम लोग यहां करता है। कुछ नही साहब एक बुजुर्ग ने गिड़गिड़ा कर कहा इस घर का जवान लड़का बीमार है उसे ही देखने आये थे कहाँ है। चलो हमे दिखाओ दामोदर ने बाहर हो रही बातचीत सुन ली थी वह अपने कमरे मे चादर ओढ़कर लेट गया अंग्रेज उसे देख कर सन्तुष्ट होकर चले गये इसके एक हफ्ते बाद एक रात दामोदर को नींद नही आ रही थी। अचानक उसे बड़ी घबराहट हुयी दिल की धड़कन बेहताशा बढ़ गई शरीर पसीने मे नहा गया फिर कमरे मे ठंडी हवा का तेज एक झोंका आया ताक मे रखा दिया बुझ बया। दामोदर ने किसी तरह पुनः दिया जलाया तभी उसे लगा कि कोई उसके बगल मे कोई खड़ा है उसने बांई ओर देखा तो उसके होश उड़ गये। उसकी मृत पत्नी दुल्हन के वेश मे खड़ी जलती हुयी आँखो से उसे घूर रही थी देखते ही देखते उसका चेहरा भयानक रूप से डरावना हो गया। वह समझ गया कि वह प्रेत है तभी पत्नी नाक के बल मिनमिनाती आवाज मे बोली तेरे कारण मेरी मौत हुयी मैने जहर खा लिया दामोदर बोला सावित्री मुझे माफ कर दो मेरी कोई गलती नही है। प्रेतनी चीखते हुये बोली तूने मेरा अंतिम संस्कार ना करके मुझे दफना दिया, तभी दिया बुझ गया तभी दामोदर दर्द से तड़पने लगा उसके खून की उल्टी हुयी उसकी चीख सुनकर षिवाजी पत्नी समेत आ गये दामोदर ने उखड़ती सांसों के साथ आपबीती बताई और देखते ही देखते उसकी सांसे रूक गई। बेटे की भयानक मौत देख कर सखूबाई बेहोश हो गयी षिवाजी गुमसुम हो गये। उनकी दुनिया उजड़ गई थी किसी तरह उन्होंने उसका अंतिम संस्कार किया फिर भगवान की मर्जी मान कर ग्रह ग्रहस्थी मे लग गये इसके करीब दो महीने बाद की बात है शिवाजी राव एक दिन सबेरे घर के आंगन मे बने कुयें से पानी खींच रहे थे सखूबाई छत पर कपड़े फैला रही थी तभी उसके कानों मे शिवाजी की चीख सुनाई दी वे पागलों की तरह चिल्ला रहे थे दामोदर की माँ देखो बहू खड़ी है सखूबाई ने कुऐं पर देखा तो उसे कुछ भी नही दिखा तभी शिवाजी का सन्तुलन बिगड़ा और वे कलश सहित कुयें मे गिर पड़े उन्हें गिरता देख कर सख्ूाबाई बचाओं बचाओ का शोर मचाती हुयी नीचे भागी उसकी चीख पुकार सुन कर सारा गाँव आ गया इसके पहले गांव वाले कुछ कर पाते रस्सी में उलझी शिवाजी की लाश पानी में उतरानेे लगी। सारा गाँव सन्न रह गया फिर सखूबाई से सारा किस्सा सुन कर गांव वालों को यकीन हो गया कि यह सब प्रेतनी बहू की प्रेत लीला है सखूबाई जिंदा लाष बन कर रह गई थी, नाजाने किसकी नजर लग गई थी उसके घर पर। एक जाडे़ की रात सखूबाई सोने के लिये लेटी ही थी कि उसे महसूस हुआ कि उसके पैरों के पास कोई खड़ा है। लालटेन की धुंधली रोशनी मे उस तरफ गौर से देखने पर वह मारे डर के बुरी तरह कंापने लगी। सामने दुल्हन के लाल जोड़ मे बहू खड़ी थी। अचानक बहू की आंखों की जगह दो गहरे गढढे नजर आने लगे तभी सखूबाई की नजर बहू के पैरों पर पड़ी उसके पैर उल्टे थे और वह जमीन से एक फुट उपर हवा मे खड़ी थी सखूबाई भय के मारे भूत-भूत चिल्लाती हुयी दरवाजे की ओर भागी तभी वह दरवाजे पर लटकी लालटेन टकरा कर लुढक गई लालटेन गिर कर टूट गई उससे तेल बहने लगा इसके पहले सखूबाई उठ पाती उसके कपड़ों मे आग लग गई। उसके भूत बहू-बहू भूत चीखने की आवाज सुन कर पड़ोसी आ गये उनके आग बचाने के सारे जतन बेकार हो गये उनके सामने ही वह राख का ढेर बन गई शिवाजी का घर खंडहर बन गया अगली बरसात मे उसकी छत ढह गई इसके कुछ दिन बाद गांव का एक युवक उस खंडहर के सामने से गुजर रहा था कि उसे खंडहर के सामने एक अति सुंदर दुल्हन दिखाई दी जो उसे इशारे से अपने पास बुला रही थी अचानक वह हवा मे उछला और गिर कर मर गया इस घटना के बाद कभी-कभी गांव वालों को खंडहर के बाहर या छत पर दुल्हन का प्रेत नजर आने लगा उसे देखने वाला शख्स या तो मर जाता या पागल हो जाता था लोगों ने उधर से आना-जाना ही छोड़ दिया एक षाम ताना जी ने अपनी 13 साल की बेटी जमुना को बनिया की दुकान से बीड़ी माचिस लाने भेजा उछलती कूदती जमुना खंडहर रास्ते से चली गई अभी वह खंडहर से कुछ दूर तिराहे पर ही थी कि उसकी नजर खंडहर के पास खड़ी गहनों से लदी खूबसूरत दुल्हन पर पड़ी जो इषारे से जमुना को बुला रही थी जमुना उसकी ओर बढी ही थी कि उसके कानो में घुघरूओं की आवाज सुनाई दी जमुना ने उधर देखा तो सामने से उसके चाचा बैलगाड़ी हांकते चले आ रहे थे आवाज बैल के गले मे बंधे घंुघरूओं से रही थी चाचा ने भी जमुना और प्रेतनी बहू को देख लिया था अनिष्ट की आंशका से वह तेजी से बैलगाड़ी हकाते हुुये आये और जमुना को गाड़ी में डाल कर घर आ गये तब तक जमुना बेहोश हो चुकि थी जमुना की हालत देख कर ताना जी तुरन्त उसे गांव के गुनिया वासुदेव के पास ले गये जमुना को देखते ही उसने कह दिया अरे इसे तो प्रेतनी ने जकड़ रखा है। जब तक कमरे मे दफ्न दामोदर की पत्नी की लाश का विधिवत क्रियाकर्म नही किया जायेगा वह भटकती प्रेतनी सारे गांव वालों की जान की दुश्मन बनी रहेगी। उन्होंने जमुना पर कुछ मंत्र फूंके और तवीज बनाकर पहनाई जमुना को होष आ गया फिर उसने ताना जी को मंत्र फूंका एक अण्डा देकर कहा कि इसे रात मे सरसों के तेल मे बनी पूड़ी पर रख कर आज आधी रात मे प्रेतनी के खंडहर मे फेंक देना और पीडे़ मुड़ कर नही देखना तानाजी सारी सामग्री लेकर गये और उसे फेंक कर चल दिये तभी पीछे से किसी ने आवाज दी कहां जाते हो तानाजी, तानाजी बिना पीछे मुड़े भय से कांपते हुये भाग कर घर आ गये सुबह तक जमुना चंगी हो चुकी थी। वासुदेव गुनियें की सलाह पर अमावस के दिन मे सारे गाँव वाले वासुदेव के साथ अंतिम संस्कार की सामग्री लेकर खंडहर पहुंचे। तभी हवा का एक बड़ा सा बवंडर मकान के चारों ओर षोर करता हुआ घूमने लगा उसे देख कर सब घबरा गये वासुदेव ने अपने थैले से राई निकाल कर मंत्र पढ़ कर उसे बवंडर पर फेंका हवा का बगूला शान्त हो गया फिर उन्होंने खंडहर के चारों ओर राई फेंक कर मकान को बांध दिया फिर सब दामोदार के कमरे मे पहुंचे वासुदेव के बताई जगह पर खुदाई षुरू हुयी कुछ ही देर मे दुल्हन का षव बरामद हुआ जिससे भीषण बदबू आ रही थी गुनिया की देख-रेख मे पूरे मंत्रो से शव का दाह संस्कार किया गया अगले दिन अगले दिन विधिपूर्वक उसकी अस्थियां नदी मे प्रवाहित कर दी गई। तब से दुल्हन का प्रेत फिर कभी गांव मे नही दिखा।
यह रहस्य-रोमांच कहानी का स्थान व पात्र पूर्णतः कालपनिक है।