स्वयं भगवान बन गया


उत्तर प्रदेश की कुशीनगर की रहने वाली एक मां ने अपने तीन महीने का बीमार बच्चे को के.जी.एम.यू. ट्रामा सेन्टर लखनऊ की चैथी मंजिल से फेंककर मारने के आरोप में गिरफ्तार हो गई। उस मां ने अपराध किया है उसे भारतीय संविधान के तहत् सजा मिलनी भी चाहिए। इसके पीछे कारण कोई भी हो सकते है उसका निर्णय न्यायालय से तय होगा। परन्तु वहाँ के एक चिकित्सक ने सफाई भी दे डाली की आर्थिक रूप से कमजोर मरीजों के लिए सरकार की कई योजनायें हैं। बच्चे व उसके परिवार की हर स्तर से मदद की जा रही थी। किन कारणों से मां शान्ति ने यह कठोर कदम उठाया? इसकी जानकारी नहीं है। सदियों से कमजोर के ऊपर सारे आरोप डालकर स्वयं को बरी कर लेना सम्पन्न लोगों का सर्वाधिकार सुरक्षित रहा है। चिकित्सक ने अपनी बात कहकर स्वयं भगवान बन गया। जैसी की आम धारणा है डाक्टर भगवान का रूप होता है। शिक्षा-चिकित्सा का व्यपार देश में खूब फलफूल रहा है। चिकित्सा का बाजारीकरण होने के कारण गरीबी और अमीरों की रेखा और गहरी होती जा रही है। सरकारी अस्पतालों का क्या हाल उसका हाल भुक्तभोगी ही बया भी नही कर सकता, अधिक शिकायत करने पर उसका वहां उपचार हो पाना भी संभव नही हो पाता। यदि सफाई देने वाला चिकित्सक अस्पताल की कमियों को भी इतनी ही निष्ठापूर्वक बताता निश्चय ही भगवान बनने का हकदार था।
 बदलते समय में पत्रकारिता के मायने भी बदलते जा रहे हैं। धृतराष्ट बने सरकारी सुविधाओ का लाभ उठा रहे लोगों को जनता की समस्या यानि समाज का अंधेरा पक्ष कम दिखाई देता है। सरकार का उजाला उसे अधिक दिखाई दे रहा है जबकि स्वास्थ्य जैसी संवेदनशील मामले कठोर पर कार्यवाही हो, सरकार करोड़ों रूपया जनहित के लिए खर्च करती है, सरकार की मंशा भी रहती है कि जनता का ईलाज कम से कम कीमत पर हो प्रधानमंत्री ने इस दिशा में पहल भी की है। प्रदेश के मुख्यमंत्री भी जनता के स्वास्थ्य के लिए काम करने के लिए सदैव तत्पर रहते है। बदलते हालातों में स्वास्थ्य जैसी अति संवेदनशील व्यवस्था के लिए सरकार को एक गोपनीय निगरानी संस्था बनानी चाहिए। जो समय-समय पर जानकारी देती रहे। और सरकार द्वारा किया जा रहा धन सही जगह और उचित पात्र तक पहुंच रहा अथवा नहीं।


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