प्रकृति रक्षण के प्रति हम संवदेनशील रहें

प्रकृति-पर्यावरण का रक्षण व संवर्धन दैव आराधना का ही एक रूप है, क्योंकि नदियां, झील, जलाशय एवं समग्र पर्यावरण में परमात्मा की विभूति, ओज, ऊर्जा और अस्तित्व समाहित हैं। ऐसे में हम सभी का कर्तव्य है कि प्रकृति रक्षण के प्रति हम संवदेनशील रहें। परमार्थ प्रकृति का मूल स्वर है जो नदी, झील, जलाशय, वृक्ष आदि विविध रूपों में है। वह परमात्मा परमार्थ के लिए ही अभिव्यक्ति है। ईश्वर ने सब कुछ इतनी खूबसूरती से बनाया है जिसे देख कर हमारी आँखें कभी नहीं थकती और ना ही कभी हमारा मन उनसे भरता है। लेकिन हम भूल जाते हैं कि केवल प्रकृति का हमारे तरफ ही नहीं, बल्कि हमारी भी प्रकृति की तरफ उतनी ही जिम्मेदारी बनती हैं कि हम उसकी रक्षा करें। दुरूख की बात ये है कि हम मानव स्वार्थी हो गये हैं। हम 'प्रकृति' द्वारा हम पर किये गये उपकारों को भूल जाते हैं। प्रकृति जितना हमें देती है बदले में हम उसका उतना ध्यान नही रखते। हम प्रकृति के संसाधनों का पूरी तरह से दोहन तो कर लेते हैं, पर ये इस बात की चिंता नही करते कि ये संसाधन सीमित मात्रा में हैं और इनका इस तरह से उपयोग करें कि ये संसाधन सदैव उपलब्ध रहें। हम प्रकृति का स्वरूप बिगाड़ने में लगे हुए हैं। हम ये नही देखते कि हमें भी अपनी इस प्रकृति रूपी 'माँ' का ध्यान रखना है ताकि ये हमेशा हम पर अपना स्नेह बरसाती रहे। प्रकृति के प्रति हमारे भी कुछ कर्तव्य बनते हैं कि समाप्त हो रहे इन संसाधनों का उपयोग आवश्यकता अनुसार ही करें। आज ये स्थिति बन चुकी है कि जल, ईंधन जैसे पैट्रोल, डीजल आदि का उपयोग हमारे द्वारा बहुत ही ज्यादा किया जा रहा है और कुछ ही वर्षों में यह संसाधन समाप्त होने वाले हैं। अतः हमें इनके दुरूपयोग पर रोक लगाना बहुत ही आवश्यक है। तो आइये ! हम सब प्रण लें कि इन सभी संसाधनों का हम दुरूपयोग नहीं करेंगे एवं अपनी माँ स्वरूपा प्रकृति की रक्षा करेंगे। अतः जिस दिन भी हम प्रकृति का आदर करना सीख जायेंगे और जिस दिन सबका आदर और सम्मान करना सीख जायेंगे, उस दिन परमात्मा और उसकी प्रकृति आपके साथ-साथ चलने लगेगी और आपकी सहायता के लिए सब आपके अपने बन जाएंगे ...।


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