अभिशप्त फिल्म जय संतोषी माँ

सन 1975 में देश मे दो सुपरहिट फिल्में आई। एक रमेश सिप्पी, जी.पी. सिप्पी की करोंड़ो के बजट वाली मल्टीस्टार फिल्म शोले थी दूसरी थी, बेहद सस्ते बजट की छोटे कलाकारो से सजी फिल्म जय संतोषी माँ। दोनों फिल्मों ने कामयाबी का नया इतिहास लिख दिया जहां शोले को आज 40 साल बाद भी याद किया जाता है। वहीं जय संतोषी मां गुमनामी के अंधेरों मे गुम हो गई शुरू-शुरू मे फिल्म को दर्शक नही मिले बम्बई के एक थियेटर मे पहले शो मे सिर्फ 56 रूपये मिले दूसरे शो मे आठ रूपये आये तीसरे शो मे 98 रूपये आये और आखिरी शो मे सौ से कुछ ज्यादा रूपये मिले फिल्म इन्डस्ट्री मे चर्चा फैलने लगी कि फिल्म बाॅक्स आॅफिस पर ढेर हो गई है। लेकिन फिर अचानक जैसे चमत्कार हो गया हफ्ते भर बाद सिनेमाघरों पर दर्शको की भारी भीड़ टूटने लगी टिकट ब्लैक मे बिकने लगे उसके बाद जो हुआ वह बाॅक्स आॅफिस के इतिहास मे सुनहरे अक्षरों दर्ज है। केवल बम्बई मे ही 18 हफ्तों मे फिल्मे ने 25 लाख की कमाई की दिल्ली, उत्तर प्रदेश मे इसके कारोबार ने पिछली हिट बाॅबी  की कमाई को भी पीछे छोड़ दिया धीरे-धीरे कारोबारी कामयाबी के मामले मे यह फिल्म मदर इंडिया, शोले और मुगले आजम की श्रेणी मे शामिल हो गई। छोटे बजट की फिल्म से इतनी बड़ी कामयाबी की उम्मीद किसी को नही थी जय संतोषी मां 130 सिनेमाघरों मे पांच माह तक चलती रही फिल्म ने 25 करोड़ रूपये का कारोबार किया था यह फिल्म तो जैसे चमत्कार थी, इधर फिल्म पर नोट बरस रहे थे उधर इसके निर्माता कमाई के बँटवारे को लेकर झगड़ रहे थे कड़वाहट इस कदर बढी वे आपस मे अलग हो गये यहीं से उनके बुरे दिन आ गये। लेकिन आगे ना जाने इस फिल्म के साथ कौन सा शाप लग गया कि इस फिल्म से जुड़ी तमाम हस्तियां अंजानी बदकिस्मती और नाकामी का शिकार हो गयीं। फिल्म के निर्माता सतराम बोहरा  ने अकूत मुनाफे के बाद भी खुद को दीवालिया घोषित कर दिया उनकी कमाई कहां चली गई वह खुद भी कभी नही जान सके। फिल्म के वितरक केदार अग्रवाल को उनके भाइयों ने उन्हें धोखा दिया़ और उन्हें लकवा मार गया। उनके युवा पार्टनर संदीप सेठी को फिर कभी कामयाबी नही मिली, उनकी फिल्में लगाम और चुनौती़ बुरी तरह पिटी और रेखा व विनोद खन्ना को लेकर बनाई फिल्म शत्रुता 20 साल मे भी पूरी नही हुयी फिल्म के नायक आशीष कुमार को कई पौराणिक फिल्मों के प्रस्ताव मिले किन्तु उनके कैरियर मे फिर कभी बहार नही आई उनकी फिल्म महिमा काशी विश्वनाथ पिट गई और नुपुर अधर मे ही लटक गई। उन्होने कुछ समय तक कथा संतोषी मां के नाटक किये फिर सन 1977 मे तमाम पूँजी लगा कर सोलह शुक्रवार नाम की फिल्म बनाई जो साधारण ही चली फिर उनकी फिल्म गंगा सागर आई लेकिन वह जय संतोषी मां का मुकाबला नही कर पाई फिल्म के पटकथा लेखक पंडित प्रियदर्शन अचानक चल बसे संगीत निर्दैशक सी अर्जुन जो बिलकुल स्वस्थ थे, कुछ दिन बाद उनका देहान्त हो गया। फिल्म मे संतोषी मंा का रोल निभाने वाली अनीता गुहा के पति जीवनंद दत्त की भी असमय मृत्यु हो गयीं और वे एकांतवास मे चली गयीं। सत्यवती का रोल करने वाली नायिका कानन कौशल को भी लोगो ने भुला दिया जय संतोषी माँ के प्रति दर्शकों ने जैसा भक्ति भाव दिखाया वैसा किसी धार्मिक फिल्म को नसीब नही हुआ खास कर महिलाए सिनेमाघरों मे प्रवेश करने के समय सर नवाती थीं मानों किसी मंदिर मे प्रवेश कर रही हो वे बाहर अगरवत्ती जलाती थीं तथा पर्दे पर फूल और पैसे फेंकती थीं कई तो थियेटर मे ही शुक्रवार का व्रत तोड़कर प्रसाद बांटती थीं। फिल्म के प्रेरित होकर देश मे जगह-जगह संतोषी माता के मंदिर बन गये। अनीता गुहा जहां जाती थी हजारों भक्तों की भीड़ उन्हें घेर कर ने करोड़ों श्रद्धालुओं को सोलह शुक्रवार को व्रत रखने के लिये प्रेरित किया इसके बाद कोई भी धार्मिक फिल्म इतनी कामयाब नही हुयी किन्तु फिल्म से जुड़ी हस्तियों के साथ एक के बाद एक हुये हादसों की वजह क्या थी कोई नही जानता इन्डस्ट्री के कुछ लोग इसे देवी का शाप मानते है।


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