मानसिक रोग के ज्योतिषीय उपाय

- डी.एस. परिहार

मानसिक रोग सदियों से एक गंभीर रोग व समस्या रही है। यह साध्य और असाध्य दो प्रकार का होता है। रज और तम दो मानस दोष है। ज्योतिष के अनुसार पूर्व जंम में किये गये अति गंभीर मानसिक पापों के कारण दिमागी रोग होता है। जातक ग्रन्थों जैसे प्रश्न मार्ग, जातक तत्व आदि मे मानसिक रोगों के अनेक ग्रह योगो का वर्णन है। किन्तु अधिकंाश केसेज मे यह योग लागू नही होते है। इस संदर्भ नवीन शोध कार्य भी ना के बराबर हुआ है। आधुनिक विद्वानों मे स्व. माणिक लाल जैन और स्व. जगन्नाथ भसीन के किये गये शोध कार्य सराहनीय है। जो आज के मनुष्य की वर्तमान समस्याओं से तथा आधुनिक मेडिकल साइंस और साईक्ट्रेटी की पूर्ति करते हैं और तालमेल मिला कर चलते है। इस विषय पर विद्वान ज्योतिषी श्री पी एस शास्त्री, डा. एस एस चटर्जी और के.के. पाठक ने भी अच्छा प्रयास किया है। भारतीय अध्यात्म के अनुसार वह मानसिक दोष मे रज की प्रधानता होती है। जैसे वायु के बिना कफ और पित्त पंगु होते हैं। वैसे ही रज के बिना तम कुछ नही कर सकता है। और रज और तम मानसिक रोगों के कारण होते हैं। मन मे रहने वाला सत गुण विकार नही पैदा करता है। बुद्धि, मन और स्मरणशक्ति के विकार स्वरूप उन्माद आगन्तुक और  निज दो कारणो से होता हैं सूर्य और गुरू सात्विक ग्रह है। बुध, शुक्र राजसिक ग्रह है। मंगल, शनि राहू केतु तामसिक ग्रह है। सभी द्विस्वभाव राशियां सात्विक, चर रज और स्थिर राशियां तामसिक होती है। इस समस्या पर पाश्चात्य और भारतीय विद्वानों ने निम्न शोध किया है। रेफेल ले अपनी पुस्तक 'मेडिकल एस्ट्रोलोजी' मे बताया है कि मानसिक रोगों मे चन्द्र व बुध की अहम भूमिका होती है। यदि चन्द्र, बुध निर्बल, पापग्रस्त और दुःस्थानों मे हो मानसिक रोग की संभावना होती है।
1. यदि शनि लग्न, चन्द्र व बुध को पापग्रस्त और रात्रि का जंम हो तो उन्माद रोग होगा।
2. यदि मंगल लग्न, चन्द्र व बुध को पापग्रस्त और दिन का जंम हो तो उन्माद रोग होगा।
3. यदि मंगल या शनि, चन्द्र व बुध कर्क या कन्या और मीन राशि मे हांे और लग्न, चन्द्र व बुध उपरोक्त किसी  राशि मे पीड़ित हो तो उन्माद रोग होगा।
4. यदि सूर्य और चन्द्रमा शनि से युत व दृष्ट हो या मंगल से युत व दृष्ट हो और तुला, धनु, मीन राशि मे हो तो उन्माद रोग होगा। यदि सूर्य चन्द्रमा, या बुध पर शुभ ग्रह की युति या दृष्टि ना हो तो रोग असाध्य होगा।
कुछ अंय योग।
1. यदि बुध षष्ठ या द्वादश भाव मे शनि या मंगल से  युत या दृष्ट हो तो वाणी दोष युक्त उन्माद हो।
2. लग्न, चतुर्थ व पंचम भाव मानसिक स्वास्थ के  प्रतीक हैं। उपरोक्त भावों मे और उनके स्वामियों पर  गंभीर पाप प्रभाव मानसिक रोग देगा।
3. पापाक्रान्त शनि, बुध, राहू, नीच या शत्रु राशिगत व मंगल यदि पापग्रस्त हो या चन्द्रमा पर अति पाप प्रभाव हो तो मानसिक रोग होता है।
4. यदि लग्न या चन्द्र लग्न कुछ विशेष नक्षत्रों मे पड़े और इन नक्षत्रों पर पाप प्रभाव हो तो मानसिक रोग होगा जैसे अश्विनी का प्रथम चरण विषाद, भरणी का द्वितीय चरण हीनभावना, पुष्य का प्रथम चरण दुःष्चिन्ता, हस्त का तृतीय चरण दुःष्चिन्ता, चित्रा का प्रथम चरण अपराधिक दिमाग, शतभिषा का द्वितीय चरण क्रोधित बुद्धि का, उत्तराभाद्रपद का प्रथम, द्वितीय और चतुर्थ चरण पापग्रस्त होने पर उन्माद रोग होता है। 
संवेदनशील राशियां-
मिथुन, कन्या, मकर व वृश्चिक राशि या लग्न मे जंमे जातको मे मानसिक रोगों की संभावना अधिक होती है।
ग्रहों की नक्षत्रगत स्थिति-
सूर्य बुध के नक्षत्र में मतिभ्रम देता है। सूर्य चन्द्र नक्षत्र मे निराशावादी या उग्र बनाता है। सूर्य राहू के नक्षत्र मे मानसिक रोग देता है। केतु के नक्षत्र में चन्दमा क्रोधी व कायर बनाता हैं।
बुध के नक्षत्र मे चन्द्रमा अति कल्पनाशीन व भय का रोगी बनाता है। शनि के नक्षत्र मे चन्द्रमा भ्रम व भय का रोगी बनाता है। मंगल बुध के नक्षत्र में मानसिक विकृति व शनि के नक्षत्र मे मंगल आत्महत्या की प्रवृत्ति देता है। केतु के नक्षत्र मे बुध उन्माद या मानसिक रोग देता है। चन्द्रमा के नक्षत्र मे बुध अति कल्पनाशीन व चिन्तित बनाता है। शनि के नक्षत्र मे बुध मानसिक विकृति देता है सूर्य के नक्षत्र मे बुध नर्वस वीकनैस देता है। राहू के नक्षत्र मे बुध हीनभावना, डरपोक व मानसिक रोग देता है। शनि या चन्द्रमा के नक्षत्र मे शुक्र यौन विकृति, राहू के नक्षत्र मे शुक्र यौनोन्माद देता है। बुध के नक्षत्र मे शनि मे निराशा, कमजोर स्मृति व आत्मविश्वास की कमी देता है। चन्द के नक्षत्र मे शनि विषाद व भयभीत बनाता है। राहू केतु के नक्षत्र मे राहू व केतु मानसिक विक्षिप्त बनाता है। लग्न मस्तिष्क, तृतीय, नवम भाव मानसिक स्थिरता के है। चतुर्थ भाव मानसिक सुख के पंचम, बुद्धि व विवेक चन्द्रमा मन, मानसिक बनावट, बुघ मस्तिष्क के स्नायु का है। शनि एकाकीपन, उदाराी, राहू विभ्रम, भय, झक्कीपन, उन्माद का कारक है। शनि या राहू चन्द्रमा या बुध से युति या दृष्टि संबध बनाये तो मानसिक रोग हो। लग्न, तृतीय चतुर्थ, पंचम, षष्ठ व नवम में स्थित चन्द्रमा व बुध या किसी एक पर पाप ग्रहों का प्रभाव हो तो असाध्य दिमागी रोग होगा यदि मेष, मिथुन, कन्या, कुंभ, मकर राशियों मे या नीच चन्द्रमा तथा बुध हो और उन पर शनि, मंगल या राहू का प्रभाव हो तो मेनिया हो।
मानसिक रोग के अन्य योग-
1. मकर या कंुभ राशि मे चन्द्र या बुध हो और उन पर शनि राहू का प्रभाव हो तो मेनिया हो।
2. मेष या कुभस्थ बुध पर शनि या राहू का प्रभाव अवसाद देगा
3. चन्द्र बुध युति पर शनि या राहू का प्रभाव मानसिक रोग देता है।
4. लग्न में चन्दमा-राहू की युति हो व पंचम और नवम पाप ग्रह हों तों मानसिक रोग होगा।
5. शनि की राशि मे चन्द्र या चन्द्र-बुध युति पर शनि या राहू की युति या दृष्टि उन्माद या मानसिक विकृति देगा।
6. अष्ठम भाव पर शनि, मंगल चन्द्र की युति हो।
7. मिथुन या कन्या मे चन्द्र-राहू युति या बुध शनि युति या बुध मंगल युति हो।
8. षष्ठ स्थान पर बुध शनि की युति हो या बुध शनि युति या बुध पर दृष्टि हो भय रोग होगा।
9. चन्द्र राहू की युति त्रिक स्थान पर फोबिया देगा।
10. चन्द्र शनि युति पर मंगल की मानसिक विकृति देगा।
11. स्त्री जातक मे चन्द्रमा पर शनि, मंगल या राहू का प्रभाव दिमागी रोग देगा।
12. चन्द्रमा शनि केतु की युति उन्माद देगी।
13. कन्या या मीन लग्न मे जन्म हो तथा कन्या राशि मे शनि राहू योग हो तो उन्माद होगा
14. षष्ठ स्थान पर अस्त बुध पर पाप प्रभाव हो तो मेनिया होगा
15. बुध चन्द्र दोनों दुःस्थान पर हो तथा पापकत्र्तरी मे हो असाध्य माानसिक रोग हो। यदि केवल एक ही ग्रह पीड़ित हो तो केवल मानसिक विकृति हो जो चिकित्सा से ठीक हो जायेगा।
पाश्चात्य ज्योतिष मे चारूबेल, सेफेरियल और अंय  ज्योतिषयों ने सायन राशि चक्र मे कुछ खास अंशों को मानसिक रोगों हेतु जिम्मेदार माना है। यदि इन अशों पर जंम लग्न या अंय कोई ग्रह हो तो जातक को मानसिक रोग होगा।
मेष- 28.29, वृष-2.18, 2. 28, 13, सिंह-29, वृश्चिक-2, 13, 2.9, कुंभ-29,ं
उपचार 
मानसिक रोगों का उपचार-मानसिक रोगों का उपचार काफी कठिन, लंबा और जटिल होता है। ज्योतिष उपचारों मे मंत्र व संगीत चिकित्सा, दान, व्रत, मौन व्रत, गौसेवा, निर्बलो व असहायों की सेवा, हवन, औषधि, बागवानी, पशु पक्षी पालन, पर सेवा, सात्विक खान पान व जीवन, पर्यटन, तीर्थाटन, महान पुरूषों की संगति, ध्यान योग आदि। धार्मिक, महापुरूषों के साहित्य को पढना, समय समय पर तीर्थयात्रा और अंय यात्रायें करना, चन्द्र व बुध यदि अशुभ राशियों या भावों मे हो तो राशि स्वामी ग्रह का नियमित दान, तथा चन्द्रमा ओर राहू पर पाप दृष्टि डालने वाले ग्रह का नियमित दान, बुध या चन्द्रमा का व्रत, मौन व्रत, दोनों हाथों के अंगूठे और तर्जनी के सिरे को आपस मे मिला कर ज्ञान मुद्रा बनाये इस मुद्रा का नित्य 40 मिनट अथ्यास, 40 मिनट ध्यान लगा कर शुभ व सुन्दर आशावदी व विचारों और कल्पनाओं का चिन्तन, अपने विचारों को निर्भीकता से रखें, एकाकीपन, मांसाहार, तामसिक भोजन से बचे, कुसंगति से बचें। भयग्रस्त होने पर साहसी लोगों की संगति मे रहें हमेशा व्यस्त रहें अनिद्रा होने पर कफज भोजन जैसे दही आदि का सेवन करे तेल, मिर्च, मसालों का त्याग कुछ विशेष मंत्र जैसे माता पार्वती के मंत्र, गंगा जी के मंत्रों का पाठ, विष्णुसहस्त्रनाम, दुर्गा व शिव कवच, गजेन्द्र मोक्ष का नित्य पठन, चन्द्र, बुध,  लग्नेश के मंत्रों का पाठ करें चन्द्रमा सम राशि मे हो तो माता दुर्गा की उपासना करे। यदि चन्द्र विषम राशि मे हो तो भगवान शंकर की उपासाना करें। यदि बुध विषम राशि मे हो तो श्री राम या कृष्ण या भगवान विष्णु की उपासना करें। बुध सम राशि मे हो तो माता स्वरसती की उपासना करे। कुछ विशेष रत्नों जैसे गोमेद, जमुनिया सिट्रीन, पन्ना, पैरीडाॅट, मोती, मूनस्टोन, ब्लू टोपाज, स्फटिक, रोज़ क्वार्टज़, नीलम, पुखराज, व चाँदी धारण करने से भी लाभ होता है। इन्हें कियी योग्य ज्योतिषि की सलाह पर ही धारण करें करना वरना रोग बढ सकता है। लग्नेश व पंचमेश का रत्न धारण करें। गोमेद या लहसुनिया भूल कर भी नही पहनें। नीलम और मूंगा केवल तभी पहनें जब शनि या मंगल लग्नेश हो। हर प्रकार के नशे व गर्म एसिडिटी वाले पदाथों के सेवन से बचें लाल, भूरे, सिलेटी, काले, गोल्डन रंग का प्रयोग ना करें हल्के रंग, गंुलाबी, नीला, सफेद, क्रीम कलर, असमानी, हरे ही रंगों का प्रयोग करें। संगीत चिकित्सा के अनुसार रात्रि मे राग शुद्ध कल्याण, बागेश्वरी तथा राग दरबारी का श्रवण और प्रातःकाल शुद्ध भैरव, आसावरी और जौनपुरी राग तथा बांसुरी वादन के श्रवण से अनेक जटिल मानसिक रोग नष्ट हो जाते है।
 


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