नीलम जिसने बादशाहों को रंक बनाया

भारतीय मध्यकालीन इतिहास पन्नों में दर्ज है, एक मनहूस नीलम की दास्तान, जिसकी कहानी इस तरह है, सन् 1526 में पानीपत के मैदान में फरगाना के मुगल सुल्तान जहरूद्दीन बाबर ने देश के सुल्तान इब्राहीम खान लोदी को बुरी तरह शिकस्त दी जंग मे सुल्तान लोदी शहीद हो गये सुल्तान की माँ ने बाबर की पेशकदमी की और उन्हें बहुत से रत्नों की एक थैली उसे भेंट दी फिर थैली से एक नायाब नीलम निकाल कर उसे बाबर के हाथों मंे रखतेे हुये कहा, यह नायाब नीलम कभी हिन्दू सम्राट विक्रमादित्य के राजमुकट की शोभा था। कहा जाता है कि यह नगीना जिसके पास रहता है, दौलत, शोहरत और ताकत उसके पास रहती है, मेरे सुल्तान बेटे ने उसे अंधविश्वास मानकर इसे ठुकरा दिया था जिसका नतीजा सबके सामने है। बाबर ने उसे कबूल किया किन्तु वह नीलम सिवाय शंहशाह अकबर को छोड़ बाकी बादशाहों के लिये मनहूस साबित हुआ गद्दी पाने के दो साल के भीतर बाबर चल बसा हुमांयू शेरशाह से हारकर दर-दर भटका। और सीढ़ियो से गिरकर अकाल मौत मरा। शाहजहां अपने ही बेटे द्वारा कैद हुआ औरंगजेब के अत्याचारों के कारण मुगल सल्तनत का सूरज डूबने लगा नादिरशाह और अब्दाली ने लूटकर मुगल खजाना खाली कर दिया, कंगाल  बादशाहों ने अपने कुछ बेशकीमती रत्न और खानदानी जेवर बेचे जिन्हें अवध के नवाब ने खरीद लिया खरीदते ही उनके दुर्दिन आ गये बक्सर की जंग में हार के साथ ही अंग्रेजों ने बादशाह से दीवानी छीन ली बादशाह के साथ नवाब भी अंग्रेजों के शिकंजे मे आ गये वक्सर की हार के बाद अंग्रेजो ने उनसे इलाहाबाद छीन लिया और अवध में अंग्रेजी सेना रख दी गई अवध का खजाना खाली होने लगा आखिरी नवाब वाजिद अली शाह को कैद करके नवाबी जब्त कर ली गई उनकी बेगम और उनके हिन्दू मुस्लिम सामंतो ने 1857 मे फिरंगियों के खिलाफ तलवार उठाई जिसमे बदकिस्मती से उनकी हार हुयी बेगम हजरत महल अवध का खजाना और वह मनहूस नीलम लेकर नेपाल की तराई मे भाग गयीं नेपाल के राणा ने उन्हें शरण देने से मनाकर दिया किन्तु नेपाल के सेनापति जंग बहादुर राणा ने उनसे भारी घूस लेकर उन्हें नेपाल मे गुप्त रूप से रहने की इजाजत दे दी घूस मे वह मनहूस नीलम भी शामिल था अगले दिन शिकार खेलते हुये सेनापति की घोड़े समेत पहाड़ी से गिरकर मौत हो गई इसके कुछ दिन बाद सेनापति के बेटे की भी मौत हो गई सेनापति के परिवार के कई सदस्य अकाल मौत की भेंट चढ़ गये उनके पोते ने उस नीलम को कई ज्योतिषियों को दिखाया उन्होंने बताया कि यह नीलम मनहूस है। आप इसे किसी योग्य पंडित या गंगा मइया को दान दे दें। पोते ने सन् 1895 मे उसे काशी के प्रसिद्ध तांत्रिक ताराशंकर चटर्जी को दान दे दिया लेकिन उनके घर पहुँते ही उनका इकलौता बेटा पागल हो गया बेटे ने पागलपन मे कहा क्यों इस मनहूस नीलम को घर लाये हो जाओं तुंरत इसे गंगा मइया को भेंट चढ़ा आओं वे उल्टे पैर भागे और गंगा मइया को प्रणाम करके उसे श्रद्धापूर्वक गंगा जी मे अर्पित कर दिया इस तरह उस मनहूस नीलम की कथा का अंत हुआ।


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