जर्मनी के एकीकरण

इतिहास के झरोखों में 19वीं सदी के पूर्वार्द्ध में जर्मनी भी इटली की तरह एक भौगोलिक अभिव्यक्ति मात्र था। जर्मनी अनेक छोटे-छोटे राज्यों में विभाजित था। इन राज्यों में एकता का अभाव था. ऑस्ट्रिया जर्मनी के एकीकरण का विरोधी था, आर्थिक और राजनीतिक दृष्टि से जर्मनी पिछड़ा और विभाजित देश था, फिर भी जर्मनी के देशभक्त जर्मनी के एकीकरण के लिए प्रयास कर रहे थे, कुछ ऐसी घटनायें घटीं जिनसे जर्मन एकता को बल मिला, जर्मनी की औद्योगिक प्रगति हुई. वाणिज्य-व्यापार का विकास हुआ. नेपोलियन प्रथम ने जर्मन राज्यों का एक संघ स्थापित कर राष्ट्रीय एकता का मार्ग प्रशस्त किया। जर्मनी के निवासी स्वयं को एक राष्ट्र के रूप में देखने लगे। सन् 1830 और 1848 की क्रांतियों के द्वारा जर्मनी के लोगों में एकता आई और वे संगठित हुए। पार्सिया के नेतृत्व में आर्थिक संघ की स्थापना से राष्ट्रीय एकता की भावना को बल मिला. इससे राजनीतिक एकीकरण को भी प्रोत्साहन मिला। औद्योगिक विकास ने राजनीतिक एकीकरण को ठोस आधार प्रदान किया. जर्मनी का पूँजीपति वर्ग आर्थिक विकास और व्यापार की प्रगति के लिए जर्मनी को एक संगठित राष्ट्र बनाना चाहता था. यह वर्ग एक शक्तिषाली केन्द्रीय शासन की स्थापना के पक्ष में था। जर्मनी के एकीकरण में रेल-लाइनों की भूमिका भी महत्त्वपूर्ण थी। रेलवे के निर्माण से प्राकृतिक बाधाएँ दूर हो गयीं, रेलमार्ग के निर्माण से राष्ट्रीय और राजनीतिक भावना के विकास में सहायता मिली. जर्मनी के लेखकों और साहित्यकारों ने भी लोगों की राष्ट्रीय भावना को उभर, अंत में बिस्मार्क के नेतृत्व में जर्मनी के एकीकरण का कार्य पूरा हुआ, इसके लिए उसे युद्ध भी करना पड़ा।
 सन् 1830 की क्रांति का प्रभाव जर्मन रियासतों पर गहरे रूप से पड़ा था. ब्रुन्सविक, हिस, हेनोवर, सेक्सोनी, बवेरिया और नुरमबर्ग के शासकों ने 1815 का संविधान लागू किया। पार्सिया और ऑस्ट्रिया को छोड़कर सभी जर्मन राज्यों में वैध शासन की स्थापना हुई, लेकिन पार्सिया ऑस्ट्रिया और रूस के प्रयासों से उदारवादी आन्दोलन को कुचल दिया गया। पुनः प्रतिक्रियावादी निरंकुश शासन की स्थापना हुई. जर्मन राज्य-परिषद् ने आन्दोलन को दबाने के लिए अनेक कठोर कानून बनाए, सभा के आयोजन और भाषण पर कठोर प्रतिबंध लगाया गया. विश्वविद्यालयों पर नियंत्रण कायम किया गया, विद्यार्थी संघ को अवैध घोषित किया गया. राष्ट्रीयता के प्रचारकों और उदार शासन की माँग करने वालों को कठोर दंड दिया जाता था, लेकिन प्रतिक्रियावादी की यह विजय क्षणिक थी. थोड़े समय के लिए राष्ट्रीयता की लहर दब गयी थी, लेकिन जर्मनी के निवासी राष्ट्रीयता से प्रभावित हो चुके थे. उनमें क्रांति की आग धीरे-धीरे सुलग रही थी. शीघ्र ही यह आग 1948 में भड़क उठी।
 सन् 1848 की क्रांति से जर्मनी के एकीकरण में परोक्ष रूप से सहायता मिली थी। सन् 1848 की क्रांति ने ऑस्ट्रिया में निरंकुश शासन का एक प्रकार से अंत कर दिया, मेटरनिख का पतन हुआ। जो जर्मनी के एकीकरण  का प्रबल शत्रु था. वियना के देशभक्तों की विजय से जर्मनी के देशभक्त प्रतोसाहित हुए. प्रश, बवेरिया, सेक्सोनी, वादेन आदि राज्यों के निवासियों ने निरंकुश शासकों के विरुद्ध विद्रोह कर दिया। शासकों को उदार संविधान लागू करने के लिए बाध्य किया गया। अनेक राज्यों में उदार संविधान भी लागू किया गया. भाषण और लेखन पर से प्रतिबंध समाप्त कर दिया गया. इस प्रकार प्रारम्भ में सभी राज्यों में क्रांतिकारियों को सफलता मिली। अतः 1848 की क्रांति ने लोगों में एकता तथा संगठन की भावना उत्पन की और राश्ट्रीयता की भावना को जागृत किया।
 बिस्मार्क ने जर्मनी के एकीकरण के लिए नयी नीति अपनाई थी। बिस्मार्क जनतंत्र का विरोधी और निरंकुष शासन का समर्थक था। वह राजतंत्र पर किसी प्रकार का संवैधानिक प्रतिबंध नहीं लगाना चाहता था, उसे संसद, संविधान और लोकतंत्र के आदर्षों से घृणा थी, उसका विश्वास था कि जर्मनी के भाग्य का निर्माण राजा ही कर सकता है. उसने क्रांतिकारियों और उदारवादियों की कटु आलोचना की. बिस्मार्क का उद्देश्य पार्सिया को शक्तिषाली राष्ट्र बनाकर उसके नेतृत्व में जर्मनी का एकीकरण करना चाहता था. उसका दूसरा उद्देश्य ऑस्ट्रिया को जर्मन परिसंघ बाहर निकालना था, क्योंकि एकीकरण के मार्ग में सबसे बड़ा बाधक ऑस्ट्रिया था, साथ ही वह जर्मनी को यूरोप में प्रमुख शक्ति बनाना चाहता था, उसने पार्सिया की सेना का संगठन कर उसे यूरोप का शक्तिशाली राष्ट्र बना दिया. उसने कूटनीतिक माध्यम से ऑस्ट्रिया को कमजोर बनाने का प्रयास किया. बिस्मार्क ऑस्ट्रिया के विरुद्ध रूस से मित्रता चाहता था।
 नेपोलियन प्रथम ने जर्मनी के 300 राज्यों को समाप्त कर डच राज्यों का एक संघ बनाया. उसने फ्रांसीसी क्रांति के सिद्धांतों से जर्मनी के लोगों को परिचित कराया, उसने अपने अधीनस्थ राज्यों में अपना कोड भी लागू किया, इससे जर्मनी के लोगों में राष्ट्रीय चेतना जगी और वे जर्मनी को एक सुसंगठित राष्ट्र के रूप में देखने लगे।
 वियना कांग्रेस के द्वारा जर्मनी को पुनः छोटे-छोटे राज्यों में विभाजित कर दिया गया था, उनका एक संघ बनाया गया जिसका अध्यक्ष ऑस्ट्रिया का सम्राट था, वियना कांग्रेस की व्यवस्था से जर्मनी के निवासियों में असंतोश उत्पन्न हुआ, क्योंकि उन्हें नागरिकता के अधिकार से वंचित रखा गया।
 जर्मनी के एकीकरण के आर्थिक तत्त्वों की भूमिका भी महत्त्वपूर्ण थी। पार्सिया के नेतृत्व में जर्मनी का आर्थिक एकीकरण हुआ। आर्थिक एकीकरण ने राजनीतिक एकीकरण के लिए मार्ग तैयार किया. आर्थिक एकीकरण ने जर्मनी के विकेंद्रीकरण में सहायक प्रादेशिक और राजवंशीय प्रभाव को कम कर दिया. जर्मनी के एकीकरण में औद्योगिक विकास से भी सहायता मिली. जर्मनी का पूँजीपति वर्ग मजबूत केन्द्रीय सरकार का समर्थक बन गया। जर्मनी के एकीकरण में रेल-लाइनों की भूमिका भी महत्त्वपूर्ण थी. इससे एकीकरण के मार्ग की प्राकृतिक बाधाएँ दूर हो गयीं. राष्ट्रीय विचारों का आदान-प्रदान सरल हो गया. औद्योगिकीकरण की आवष्यकताओं को पूरा करने के लिए जर्मनी का एकीकरण आवश्यक हो गया. सम्पूर्ण जर्मनी के लिए एक प्रकार के सिक्के तथा एक प्रकार की विधि-व्यवस्था की माँग की गयी. इस प्रकार आर्थिक जीवन में परिवर्तन से भी एकीकरण आन्दोलन को प्रोत्साहन मिला।


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