अभिचार या जादू-टोने

- डी.एस. परिहार

बाधक सिद्धान्त में जमांक की 14 प्रकार की अदृश्य बाधाओं में से एक प्रेत का शाप है दूसरी अभिचार जन्य। किसी भी प्रकार की प्रेत बाधायें हों वे दो प्रकार की होती है। पहली आगान्तुक जिसमे कोई प्रेत अचानक या किसी भूलवश किसी इन्सान को कष्ट देने लगता है। दूसरी अभिचारिक जिसमें किसी दुष्ट तांत्रिक द्वारा किये गये अभिचार या जादू-टोने या उतारे या सड़क पर पड़ी किसी उतारी हुयी तंत्र सामग्री को लांध जाने के कारण होती है।  

प्रेत बाधा के योग:- गुलिक यदि बाधक स्थान पर अशुभ राशि मे हो तो जातक पर प्रेत प्रकोप हो गुलिक यदि मंगल से युत या दृष्ट हो या मंगल की राशि या नवांश मे हो तो प्रेत बाधा हो गुलिक यदि राहू से युत या दृष्ट हो तो विष या प्रेत बाधा हो।

अभिचार के योग:- जंमपत्री के छठेभाव से खुले शत्रु तथा 12 वें भाव से गुप्त शत्रु का पता चलता है। मंगल खुले शत्रु तथा राहू-केतु गुप्त शत्रु के कारक ग्रह है तंत्र क्रिया का प्रभाव उच्चाटनकारी, विस्फोटक तथा विघटनकारी होता है मंगल व केतु तंत्र क्रिया के कारक ग्रह है। मतान्तर से राहू व गुलिक भी तंत्र क्रिया के कारक है। प्रश्नमार्ग मे 14 प्रकार की दैवी बाधाआंे का वर्णन है। इनमे से एक अभिचार भी है। शनि पुत्र गुलिक या मांदि प्रेतात्मा का कारक है। राहू केतु तंत्र व तांत्रिकों के कारक है।ै प्रश्नमार्ग और जनविश्वास के अनुसार अभिचार दो प्रकार के होते है। 

1. क्षुद्राभिचार 2. महाभिचार

क्षुद्राभिचार छोटी अवधि का कम द्यातक तथा आसानी से हट जाने वाला होता है। जो महीने दो महीने या नदी आदि पार करने पर या मामूली सा उपचार करने या स्वयं हट जाता हें इसमे नीच देवता छोटे भूत प्रेतों का प्रयोग किया है।

महाभिचार लंबी अवधि का अति घातक व अति कठिनाई संे हटता है। 

प्रश्नमार्ग के अनुसार अभिचार के सूत्र:- जंम लग्न या अरूधा लग्न यदि चरराशि (1, 4, 7, 10) मे हो तो तो 11 वां भाव उसमे बैठे ग्रह या लाभेश बाधक होते है। लग्न या अरूधा लग्न यदि स्थिर राशि (2, 5, 8, 11) मे हो तो 9 वां भाव उसमे बैठे ग्रह या नवमेश बाधक होते है। लग्न या अरूधा लग्न यदि द्विस्वभाव राशि (3, 6, 9, 12) मे हो तो 7 वां भाव उसमे बैठे ग्रह या सप्तमेश बाधक होते है। यदि षष्ठेश या बाधकेश की परस्पर युति या परस्पर दृष्टि या उनमे राशि परिवर्तन हो तो या षष्ठेश बाधक भाव मे या बाधकेश छठें भाव मे जाये तो जातक शत्रु के किये तंत्र प्रयोग का शिकार हो यदि बाधकेश शुभ ग्रह हो तो महाभिचार होगा यदि यदि बाधकेश पापी ग्रह हो तो क्षुद्राभिचार होगा । यदि द्वादेश या बाधकेश की परस्पर युति या परस्पर दृष्टि या उनमे राशि परिवर्तन हो तेा या द्वादेश बाधक भाव मे या बाधकेश 12वें भाव मे जाये तो जातक पर पर छोटा जादू टोना होगा।

1. एस्ट्रोलाॅजिकल मैगजीन के संपादक डा. बी.बी. रमन के अनुसार यदि षष्ठेश व अष्ठमेश दोनों द्वादश भाव मे युत हांे तो जातक पर क्षुद्राभिचार होगा।

2. लग्नेश व षष्ठेश के राशि अंशों को जोड़ो यदि प्राप्त राशि अंशों पर कोई ग्रह हो तो जातक पर जादू टोना होगा। 

3. यदि चन्द्र कुण्डली से त्रिक भाव मे शुभ ग्रह व केन्द्र त्रिकोण मे अशुभ ग्रह हो तो तो जातक पर जादू टोना होगा। 

4. यदि लग्नेश, नीच, अस्त या शत्रु राशिगत होकर या त्रिक मे बली षष्ठेश व राहू केतु मांदि से युति करे। 

5. षष्ठेश 4, 7, 12 भाव मे हो तथा मंगल लग्न मे बैठा हो या उसे देखे तो व्यक्ति पर अभिचार होगा। 

6. लग्नेश केन्द्र मे मंगल से युति करे।

7. षष्ठेश लग्न मे व राहू केतु मांदि से युति करे तोे व्यक्ति पर अभिचार होगा। 

8. यदि केतु 1,4,10 भाव मे हो तथा गुलिक केन्द्र मे हो तो  नीच आदमी जादू टोना करे।

9. यदि शुक्र की राशि का स्वामी 7 वें भाव मे हो तथा मंगल लग्न मे हो या लग्न को देखे तो जातक तंत्र का शिकार हो। 

10. लग्नेश निर्बल होकर छठे भाव मे शनि के साथ बैठे।

11. षष्ठेश लग्न मे तथा लग्नेश केन्द्र मे मंगल युत हो।

12. नवांश लग्न मे गुरू उस राशि मे जाये जो राशि लग्न चक्र मे 3 या 8 भाव की हो।

13. मांदि की नवांश गत राशि से 7 वी राशि मे शनि हो तो जातक की मृत्यु काले जादू से होगी 

14. चर लग्न मे लग्न पर षष्ठेश की दृष्टि हो तथा 11 वें भाव मे मंगल हो। 

15. स्थिर लग्न मे लग्न पर षष्ठेश की दृष्टि हो तथा नवम वें भाव मे मंगल हो। 

16. द्विस्वभाव लग्न मे लग्न पर षष्ठेश की दृष्टि हो तथा सप्तम वंे भाव मे मंगल हो तो तंत्र किया हो।

17. अष्ठमेश व षष्ठेश परस्पर युत या दृृष्ट है। अष्ठमेश व द्वादेश परस्पर युत या दृष्ट है। जो मानसिक रोग व प्रेत पीड़ा व क्षुद्राभिचार देता है। नीच लोगों द्वारा किया गया गंदा जादू-टोना देता है।

18 .षष्ठेश होकर मंगल बाधक भाव में जाय या लग्न को देख रहा है। तथा षष्ठेश होकर मंगल बाधक भाव में जाये या बाधकेश से युत या दृष्ट हो जो भंयकर काला जादू देता है।

19. द्विस्वभाव लग्न हो लग्न पर षष्ठेश की दृष्टि हो तथा मंगल लग्न 7 वें भाव मे जाये या लग्न को देखे।

20. षष्ठेश 4, 7, 10 भाव मे जाये तथा मंगल लग्न में बैठे या देखे तो जातक भंयकर जादू टोना का शिकार हो।

21. षष्ठेश 4, 7, 12 भाव मे जाये तथा मंगल लग्न में हो या लग्न पर मंगल की दृष्टि हो तो हो तो जातक भंयकर जादू-टोना का शिकार हो।

22. पंचम भाव का मंगल से संबध हो या मंगल के कारण संतान बाधा हो तो जातिका की कोख मंत्रों या प्रेत बाधा के कारण बंाधी जाती है। 

23. राहू या गुलिक यदि 4, 5, 7, 8 भाव मे हो तो काले जादू के कारण रोग या हानि हो काला जादू खाद्य पदार्थ मे किया जायेगा 

24. यदि लग्न चन्द्र या प्रश्न लग्न से केन्द्र मे गुलिक या मंगल हो तो शत्रु जातक पर काला जादू करे और वस्तु घर मे रखी जाये।

25. यदि गुलिक चतुर्थ भाव या चतुर्थेश के नवांश मे हो तो जातक पर घर मे ही काला जादू किया जायेगा। 

26. गुलिक वर्गोंत्तम हो तो तांत्रिक वस्तु दो स्थानों पर रखी जाये।

अभिचार कटने के ग्रह योग:-

1. यदि गुरू लग्न या त्रिकोण मे हो गुलिक गुरू युत या गुरू से दृष्ट हो।

2. बली बुध या शुक्र स्वराशि स्ववर्ग या स्वनवंाश मे हो तो गुलिक का दोष नष्ट हो 

3. केन्द्र मे शुभ ग्रह शुभ ग्रह युत या शुभ ग्रह दृष्ट हों तथा 3, 6, 11 में पाप ग्रह हो।

4. केन्द्र मे गुरू शुक्र की युति हो। 

5. नवांश मे गुरू से 11 वें बुध या शुक्र हो। 

6. नवांश मे बुध से 11 वें चन्द्र या शुक्र हो। 

7. गुलिक पर बली गुरू, बुध या शुक्र की दृष्टि हो। 

8. नवांश लग्न से बुध से 5, 9 भाव वें गुरू, बुध या शुक्र हो। 

9. चन्द्रमा से केन्द्र त्रिकोण मे बली गुरू हो। 

10. गुरू की नवांश राशि से केन्द्र मे चन्द्रमा या बुध हो। 

11. चन्द्रमा से 3, 6, 10, या 11 वें भाव मे शुभ ग्रह यदि शुभ ग्रह से युत हो।

तंत्र क्रिया कौन करेगा:- यदि षष्ठेश व अष्ठमेश दोनो द्वादश भाव मे युत हो तो रिश्तेदार संपति हेतु जादू टोना करे। षष्ठेश यदि चर राशि मे हो तो अति दूर का मित्र संबधी, अंजान आदमी तंत्र करे यदि षष्ठेश स्थिर राशि मे हो तो अति निकट का मित्र, रक्त संबधी पड़ोसी, परिवार का व्यक्ति तंत्र करे यदि षष्ठेश द्विस्वभाव राशि मे हो तो मित्र, पड़ोसी किरायेदार मकान मालिक आदमी आफिस स्कूल या पार्टनर तंत्र करे। छठे भाव मे यदि 3, 4, 5, 6, 7,9, 11, भाव का स्वामी जाये जो घर का सदस्य तंत्र करे। चतुर्थेश हो तो माता के समान बूढी महिला पंचमेश हो तो पुत्र पुत्री बहू, दामाद, मित्र भाभाी, चाची, तृतीयेश हो तो छोटा भाई बहन ससुर साढू, गर्लफ्रेन्ड, ब्वायफ्रेन्ड, पड़ोसी सप्तमेश हो तो पत्नी पति, पार्टनर, बड़ी बुआ, ताऊ नवमेश हो तो साला साली, देवर ननद, छोटा बहनोई, छोटे भाई की पत्नी, सास, लाभेश हो तो बड़ा भाई बड़ी बहन, चाचा, छोटी बुआ, बहू दामाद। 

जमीन मे गड़ी तांत्रिक व अंय  वस्तुओं का ज्ञान:- ज्योतिष के 

अनुसार:- बुघ तावीज, कौड़ी, सूर्य लाल वस्त्र, हड्डी ताम्बा, गुरू मूर्ति, सोने का सिक्का, सोने का पत्तर, शुक्र जेवर, शनि हंड़िया, भस्म, कीलें, मांस, बलि दिये पशु पक्षी के अंग, राख, डरावनी वस्तु काली वस्तुऐं, मटट्ी के पात्र, राहू कब्र, कंकाल आदि, तांत्रिक वस्तुयें आदि।

भूमिगत वस्तुयें:-

1. यदि प्रश्न कुण्डली से केन्द्र मे अशुभ ग्रह हों या 11 वें भाव मे अशुभ ग्रह हों तो जमीन मे कोई वस्तु गड़ी हो।

2. प्रश्न चक्र से केन्द्र या लाभ भाव मे त्रियंक राशियों मे स्थित ग्रह की दिशा मे वस्तु पड़ी होगी इन स्थानों मे अधोमुखी ग्रह बुध या शुक्र या अधोमुखी राशियां कर्क, वृश्चिक हो तो या स्त्री ग्रह चन्द्र शुक्र या राहू हो तो या सम राशि हो तो जमीन मे कोई वस्तु पड़ी होगी। 

3. यदि प्रश्न कुण्डली से केन्द्र या 11 वें भाव मे घातु ग्रह शनि, चन्द्र, मंगल राहू या धातु राशियों 1,4,7,10 मे ग्रह हों तो जमीन मे कोई वस्तु पड़ी होगी यदि धातु ग्रह स्व रशि, स्व नवांश, या स्व देष्काण मे हो तो जमीन मे कोई वस्तु पड़ी होगी यदि सूर्य, चन्द्र या बुध स्वग्रही हो तो तो वस्तु धातु हो और शनि व अंय ग्रहों की राशियो मे हो तो जमीन मे धातु होगी।

4. तमिल ग्रन्थ जैनेन्द्र माला के अध्याय 26 मे भूमिगत शल्य जानने की अनेक विधियों का वर्णन है। 

1. यदि प्रश्न कुण्डली के केन्द्र मे शुभ ग्रह पाप ग्रह युत या दृष्ट हो तो जमीन मे शल्य हो।

2. यदि प्रश्न कुण्डली के केन्द्र मे चन्द्रमा गुरू युत या दृष्ट हो तो जमीन मे ब्राह्मण की हड्डी या स्वर्णपत्र होगा।

3. प्रश्न ग्रन्थों मे वर्णित शल्य नक्षत्र चक्र मे जिस नक्षत्र मे गुरू हो उसे नक्षत्र के भाग मे शल्य हो। 

8. प्रश्न शलाका मे अभिजित नक्षत्रों सहित 28 नक्षत्रों को 28 स्थानों मे बैठा कर शलाका चक्र बनाया जाता है। प्रश्न चक्र निर्माण के समय का नक्षत्र शलाका के जिस भाग मे जाय उस भूमि के उसी भाग मे शल्य होगी।

हस्तरेखा व तंत्र:-

1. मस्तक रेखा पर शनि पर्वत के नीचे द्वीप हो या मस्तक रेखा जंजीरवत हो।

2. चन्द्र पर्वत पर क्रास या नक्षत्र हो।

3. गुरू, चन्द्र, सूर्य तथा अंगूठे के प्रथव पर्व पर काला तिल हो।

4. शनि पर्वत पर द्वीप हो। 

5. चन्द्र और शनि पर्वत दोनो अति उठे हुये हो।

6. वाहृय या निम्न मंगल से निकली कोई रेखा जीवन रेखा, भाग्य रेखा स्वास्थ रेखा या मस्तक रेखा को काटे।

प्रेत पीड़ा के योग:-

1. यदि प्रश्नचक्र के दशम भाव मे शनि या राहू हो तो प्रेत पीड़ा हांे।

2. गुलिक यदि त्रिक या बाधक स्थान पर अशुभ राशि मे हो तो जातक पर प्रेत प्रकोप हो

3. राहू यदि त्रिक या अशुभ स्थान पर अशुभ राशि मे हो तो जातक पर प्रेत पीड़ा हांे।

4. यदि प्रश्न चक्र मे मंगल व गुलिक या मंगल व केतु या शनि व गुलिक की युति हो तो प्रेत की मृत्यु आग से जलने या शस्त्राघात या चोट से हुयी हो। 

5. यदि प्रश्नचक्र के दशम भाव पर पाप ग्रह की युति या दृष्टि हो तो भूमि या मकान प्रेतग्रस्त हो।

ज्योतिष मे चतुर्थ भाव चतुर्थेश, मंगल व बुध जमीन के तथा शुक्र-बुध जैमिनी मत से केतु मकान के कारक ग्रह हैं। राहू-केतु, शनि-मंगल व मांदि शाप व मनहूसियत के कारक है। चैथे भाव मे शनि की मांदि, राहू या केतु से युति या चैथे भाव मे मंगल की मांदि, राहू या केतु से युति हो तो मकान या जमीन मनहूस हो चतुर्थेश का शनि-मंगल, राहू,-केतु या मांदि से युत होना मकान को मनहूस बनाता है। जंमपत्री मे मंगल:- राहू, या मंगल- शनि, या शुक्र राहू या शुक्र केतु, बुध राहू या बुध मंगल या मंगल केतु, चन्द्र राहू या चन्द्र केतु की ग्रह योग हो या ये ग्रह परस्पर दृष्टि संबध बनाये या उपरोक्त ग्रह बाधक भाव मे जाये या उसके स्वामी से संबध बनाये तो मकान या जमीन मनहूस हो ऐसे मकान लंबी बेरोजगारी तलाक, पागलपन, असाध्य बीामरी, दुर्घटना, आत्महत्या, अकाल मृत्यु, घर मे सभी सदस्यों का अविवाहित रहना या सभी का तलाक हो जाना गंभीर घाटा, भारी कर्जा, कलह, संतानहीनता निर्धनता आदि समस्यायें देते है। कभी-कभी यह दोष बड़े भंयकर होते है ऐसे मे संपत्ति बेच देने या छोड़े देने के अलावा और कोई चारा नही रहता है।

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

पक्षी आपका भाग्य बदले

जन्म कुंडली में वेश्यावृति के योग

परिवर्तन योग से करें भविष्यवाणी