कालरात्रि

दीपावली मात्र एक पर्व अथवा त्योहार नहीं, अपितु पर्वपूंज है। कार्तिक कृष्ण एकादशी अर्थात रमा एकादशी से प्रारम्भ हो कर गोवत्स एकादशी धन्वंतरि त्रयोदशी, नरक चर्तुदशी एवं हनुमान जयन्ती, कमला जयन्ती एवं दीपावली, अन्नकूट गोवर्धन विश्वकर्मा प्रतिपदा और भ्रातृ अथवा यम द्वितीया तक पूरे सात दिन तक, यत्र तत्र सर्वत्र दीपमालिका का प्रकाश दृष्टिगोचर होता है। यह श्रेष्ठ पर्वपूंज भारतीय संस्कृति का अत्यन्त महत्वपूर्ण प्रसंग है।
 प्रचलित मान्यताओं के अनुसार इस महापर्व पर रघुवंशी भगवान श्री राम की रावण पर विजय के बाद अयोध्या आगमन पर नागरिकों ने दीपावली को आलोक पर्व के रूप में मनाया। तभी से यह दीप महोत्सव राष्ट्र के विजय पर्व के रूप में मनाया जाता है।
 एक पौराणिक कथा में यह प्रसंग आता है कि एक बार भगवान श्री कृष्ण के साथ महारानी रूक्मिणी बैकुंठ में पधारी रूक्मिणी जी माता लक्ष्मी को देखकर भाव विभोर हो उठी। उन्होने लक्ष्मी जी से आग्रह किया कि हे देवी! अपना रहस्य प्रकट करे लक्ष्मी जी अति प्रसन्न हो आग्रह स्वीकार कर कहना प्रारम्भ किया ‘‘मैं सभी देवियों की शक्तियों की मूल महालक्ष्मी है सारा विश्व मुझमें है स्थूल सूक्ष्म, दृश्य, अदृश्य, व्यक्त, अव्यक्त सभी मेरे रूप है भक्तों पर अनुग्रह करने के लिए परम दिव्य, चिन्मय, संगुण रूप से सदा विराजमान रहती हूँ। मैं स्वर्ग में स्वर्ग लक्ष्मी राजाओं की राजलक्ष्मी, घरों में गृहलक्ष्मी, वाणिक जनों के यहाँ वाणिज्य लक्ष्मी तथा युद्ध में विजेताओं के पास विजय लक्ष्मी के रूप में विचरण करती हूँ समस्त शुभ लक्ष्मी के कारण मेरा नाम लक्ष्मी है।
लक्ष्मी जी से इस रहस्य को जानकर अति प्रसन्न रूक्मिणी ने कहा, ‘‘देवी! दीपावली से आपका घनिष्ठ सम्बन्ध है कृपा करके दीपावली की रात्रि के रहस्य से हमें अवगत कराएं लक्ष्मी जी ने कहा,
 ‘‘ दीपावली की रात्रि विशिष्ट रात्रि है इसे कालरात्रि के नाम से जाना जाता है। यदि प्रातः काल चर्तुदशी  हो एवं रात्रि को अमवस्या हो तो इसका महत्व बढ़ जाता है। इस रात्रि में लोक-लोकान्तर से धरती पर दिव्य आत्माओं का आवागमन होता है। यक्ष गंधर्व आदि मनुष्य शरीर धारण करके मत्र्य लोक में इस रात्रि को विचरण करते है। मैं स्वयं इस रात्रि को विभिन्न रूपों में विद्यमान रहती हूँ।  


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