नाड़ी गोचरीय सूत्र

विवाह समय निर्धारण के नाड़ी गोचरीय सूत्रो पर लिखा गया यह हिन्दी में लिखा गया संभवतः प्रथम लेख है। भारतीय ज्योतिष चतुः पुरूषार्थ धर्म, अर्थ, काम मोक्ष के सिद्धान्त पर आधारित है। यह चारों पुरूषार्थ जंमपत्री के तीन तीन भावों के आधीन आतक है इसके साथ ही यह कुछ ग्रह विशेष तथा राशियों के भी कारक होते हैं। 

1. धर्म- यह जमंाक के 1, 5, 9 भावों अग्नि राशियों तथा गुरू और सूर्य से संबधित होता है।
2. अर्थ-  इसका संबध 2.6. 12 भावों, पृथ्वी तत्व की राशियों व तथा शनि, गुरू, बुध, तथा  सूर्य ग्रहों से होता है।
3. काम- यह 3, 7, 1, भावांे, शुक्र, मंगल ग्रहों और वायु तत्व की राशियों के अन्र्तगत आता है।
4. मोक्ष- इसका संबध 4, 8, 12 भावों, जल राशियों तथा केतु, गुरू ग्रहों से होता है।
 नाड़ी ज्योतिष मे पुरूष जातक मे शुक्र पत्नी का कारक है और स्त्री जातक मे मंगल मतांतर से गुरू विवाह का कारक ग्रह है। विवाह समय निर्धारण मे भगु संहिता, रावण संहिता व नाड़ी ग्रन्थों के सूत्र आश्चर्यजनक रूप से सत्य सिद्ध होते है। लगभग 20 वर्षो से अनेक नाड़ी ग्रन्थों के अध्ययन और उनके सूत्रों के अध्ययन के बाद मुझे कुछ गुप्त व रहस्यमय सूत्र प्राप्त हुये हैं जो अनुभव मे 90 प्रतिशत सत्य सिद्ध हुये है। जिनमे से कुछ सूत्र मैं पाठको के समक्ष रख रहाँ हूँ।
1. भगु नाड़ी के सूत्र-
 स्व. आर. जी. राव द्वारा संपादित भृगु नंदी नाड़ी के अनुसार पुरूष जातक मे शुक्र गत राशि से त्रिकोण राशि मे या उससे 7 वे राशि पर गुरू का या शुक्र गत राशि स्वामी से त्रिकोण मे गुरू का गोचर विवाह देगा और स्त्री जातक मे मंगल गत राशि से त्रिकोण राशि मे या उससे 7 वीं राशि पर गुरू का या मंगल गत राशि स्वामी से त्रिकोण मे गुरू का गोचर विवाह देगा कही कही उसने स्त्री जातक मे मंगलगत राशि स्वामी या उससे 7 वीं राशि पर शुक का गोचर स्त्री की विवाह का वर्ष बतायेगा और पुरूष जातक मे शुक्रगत राशि या उससे 7 वीं राशि पर शुक का गोचर स्त्री की विवाह का वर्ष बतायेगा भृगु नाड़ी की कुछ कुण्डिलयों के अनुसार शुक्र गुरू के समान एक राशि मे एक वर्ष की गति से चलता है। शुक्र के गोचर की गणना जंमस्थ शुक्र से प्रारंभ होती है। यही विधि उसमे सूर्य पिता हेतु, चन्द्रमा माता हेतु तथा मंगल भाई हेतु प्रयोग की गई है। इसी विधि का  प्रयोग देवकेरलम मे भी किया गया है जिसका वर्णन इसी लेख मे आगे किया गया है।
2. पी. वी आर. रायडू ने अपने टाइम्स आॅफ एस्ट्रोलाॅली मे छपे एक लेख मे भी एक नाड़ी सूत्र का वर्णन किया है। किन्तु उन्होने यह नही बताया है कि उन्होने इसे किस नाड़ी से लिया है। उनके नाड़ी पर लिखे अधिकांश लेख उनके गुरू की मीन नाड़ी वर आधारित होते है। उस सूत्र के अनुसार नवांश चक्र मे नवांश लग्न से त्रिकोण मे गुरू का गोचर या नवांश लग्नेश से त्रिकोण मे विवाह देता यह सूत्र 60 प्रतिशत तक सही पाया जाता है। मै इसे अक्सर अन्य वैवाहिक सूत्रों की पुष्टि हेतु प्रयोग करता हूँ।
3. देवकेरलम श्लोक संख्या-2620।। 
1. द्वितीयेश, लाभेश और दशमेश के राशि अश्ंाों को जोड़ो प्राप्त राशि अंशो पर गुरू का गोचर या दृष्टि विवाह देगा
2. ।। श्लोक संख्या-2622।। द्वितीयेश, चतुर्थेश और लाभेश के राशि अश्ंाों को जोड़ो प्राप्त राशि अंशो पर शनि का गोचर विवाह, भूमि, वाहन देगा।
3. श्लोक संख्या-2628।। चन्द्र या शुक्र से सप्तमेश या द्वितीयेश के राशि अश्ंाों को जोड़ो प्राप्त राशि अंशो पर शुक्र का गोचर विवाह दे।
3. ।। श्लोक संख्या-2642।। शुक्र, चन्द्र व लग्न से सप्तमेश के राशि अंश जोड़ो प्राप्त राशि अंशो पर शुक्र का गोचर विवाह दे। (शुक्र गुरू के समान एक राशि मे एक वर्ष की गति से चलता है। शुक्र के गोचर की गणना जंमस्थ शुक्र से  प्रारंभ होती है।)
4. जयमुनि कृत ध्रृव नाड़ी के अनुसार ‘‘शुक्रत्रिकोणगे
जीवे विवाहे लभते नरः’ शुक्र के उपर या उससे त्रिकोण मे गुरू का गोचर विााह देता है।
5. राहू एंड केतु इन भृगु एस्ट्रोलोजी और भृगु नाड़ी
प्रिन्सिपल के लेखक डा. एन. श्रीनिवास शास़्त्री के अनुसार गोचर मे राहू जब शुक्र को स्पर्श करेगा तो  जातक का विवाह होगा तथा गुरू द्वितीय और तृतीय पर्याय मे गुरू जब शुक्र से निकलेगा तो पुरूष जातक का विवाह होगा और स्त्री जातक मे गुरू द्वितीय और तृतीय पर्याय मे गुरू जब मंगल से निकलेगा तो स्त्री जातक का विवाह होगा।
6. भृगु नाड़ी शोधकर्ता डा. एन. ए. नेगनंधी के अनुसार पुरूष जातक मे शुक्र से सप्तमेश से गुरू का गोचर या उससे त्रिकोण मे गोचर विवाह योग देगा और स्त्री जातक मे मंगल से सप्तमेश से गुरू का गोचर या उससे त्रिकोण मे गोचर विवाह योग देगा।


 


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