नाड़ी ज्योतिष में केतु

केतु भारतीय ज्योतिष मे नवम और अंतिम ग्रह है। वृश्चिक राशि का स्वामी केतु मंगलवत है। नाड़ी ज्योतिष मे केतु गली, नारियल, खजूर, केले का पेड़, बिजली का खंभा, आस्तिक, लघु आकार, संस्कृत या प्राचीन भाषाओं का ज्ञान, सेवा, त्याग निःस्वार्थ, कृपण, पत्नी मरे या भाग जाये संतान का वियोग, पुण्य संचय, सात्विक, परोपकारी, न्यायप्रिय, ंिचंतक, पुराना मंदिर अध्यात्मिक चिकित्सक, विवाद सुलझाने मे कुषल, मंदिर, कठोर वाणी, लाल नेत्र, केतु अंतरिक्ष व आकाश का स्वामी, पेट, पित्त, घाव, पत्थर, कांटे, चाकू आदि से खतरा, भयानक चेहरा, तार, रस्सी, संयासी, साहसी मेहनती, बंधन दे, भारी सदमा, ग्रहत्याग, घुम्रपान, गंजेड़ी, ध्वजा, धार्मिक कटट्रता, अंधविश्वास, तीर्थयात्रा, आडम्बरपूर्ण धार्मिक उत्सव, वेदांती, मौनव्रत, तंत्रमंत्र, दुबला पतला चेहरा आदि रहस्यमय मृत्यु, लापता हो जाना, अति गर्म, इन्फ्रारेड किरणों, लेसर किरण, एक्स रे, कोढ, घाव, अग्निदाह, मृत्युकाल तथा मरणोपरान्त गति, भूत-प्रेत, तंत्र-मंत्र, गुप्त षडयंत्र, अति घृणा, सामान्य ज्ञान के के परे तथ्य, मस्तिष्क ईगो, तर्क और संकल्प शक्ति के बाहर की स्थिति, दिव्य संगीत रचनाओं का फल, धर्म, मोक्ष, ज्योतिष, अचानक मृत्यु, बुरी आत्मा, घमंड, कलात्मक, नैतिक व साहित्यक गुण, अध्यात्म, स्वाार्थीपन, पित्त विकार, विशैले जीव जन्तु, कृमियांे से उत्पन्न रोग, धर्म का वाहृय रूप, गुप्त अन्तः प्रवृत्तियां, गुप्त संगठन, हत्यायें, मित्र, बुरी आदतें, नाना, जादू-टोना, मूर्खता, अन्र्तजातीय, ज्वर, झगड़े धूर्तता, दीवालिया, कंजूसीपन, धार्मिक अध्यात्मिक स्वपन, इस्तीफा, पवित्र नियम, पूर्णिमा का संबध केतु से है। उत्तर कालामृतम मे केतु के कारकों की लंबी लिस्ट है। जो अध्यात्मिक प्रकाश का प्रतीक है। महान स्वतंत्रता या मोक्ष देता है। यह भौतिक मामलों मे शनि या मंगल के समान कार्य करके बाधायें देता है। केतु मेष, कर्क ,सिंह, वृश्चिक धनु, मीन लग्न या राशि मे शनि के समान और वृष, मिथुन, कन्या तुला, मकर व कुंभ लग्न या राशि मे मंगल के समान फल देता है राहू की स्थिति जीवन मे कार्य करने के सर्वो़त्तम क्षेत्र को बताताी है। जबकि केतु की स्थिति विशेष नियम गत जंमों के कर्मों व घटनाओं से जीवन चक्र मे सबक सीखने के को बताती है। सामांतः केतु की किसी ग्रह के साथ युति विनाशकारी और बड़े परिवर्तनकारी फल के बताती है। यदि केतु कुंडली के प्रथम अर्ध भाग प्रथम से सप्तम भाव मे स्थित हो तो जातक को भौतिक सफलता जीवन के द्वितीय भाग 35 वर्ष के बाद मिलती है। यदि केतु सप्तम से बारहवे भाग मे हो तो जातक को भौतिक सफलता जीवन के प्रथम भाग 35 वर्ष के पूर्व मिलती है। शनि, बुध, शुक्र राहू केतु क मित्र ग्रह है। तथा सूर्य व चन्द्र शत्रु ग्रह हैं। तुला व मकर दोनों की शुभ राशियां व कर्क व सिंह दोनों की शत्रु राशियां है। मिथन च कन्या दानों की मूल त्रिकोण राशियां है। मेष, धनु मीन तटस्थ राशियां हैं। मंगल व गुरू तटस्थ ग्रह हैं। तथा मंगल केतु हेतु तटस्थ ग्रह है। शुक्र केतु संबध कायर बनाता है। तथा आत्मविकास की कमी के कारण संघर्ष से बचता है। जो असफलता की ओर ले जाता है। कुछ विद्वानांें के अनुसार केतु के मित्र गुरू व मंगल है। सूर्य, चन्द्र तटस्थ व बुध, शनि शुक्र अशुभ ग्रह हैं।
1. केतु यदि 1, 4, 5, 7,9 ,10  वंे भाव के स्वामी के साथ हों तो केतु शुभ होकर योग कारक का फल दे।
2. नवंाश मे आत्मकारक ग्रह से चैथे भाव मे केतु हो तो मकान व जायदाद मिले।
3. बुध के केतु साथ मानसिक रोग व नर्वसनैस दे तथा जातक विकृत दिमाग का हो।
4. शुक्र केतु की युति कला और सभी सौन्दर्यपूवर्ण वस्तुओं का प्रेमी और विचित्र तारके से काम वासना की पूर्ति करे जैसे पाविारिक व्याभिचार, होमा या लेस्बियन सेक्स या बीस्टलिटी आदि।
5. केतु की द्वितीयेश की युति हो तो जातक स्टमेरिंगो।
6. केतु की त्रिकेश से युति या दृष्टि संबध उन ग्रहो की दशा मे उस ग्रह से संबधिति वस्तुओं से भारी संकट दे।
7. पाप दृष्ट सप्तमेश की केतु से युति व्याभिचारी बनाये। 
8. स्त्री जातक मे केतु शुभ ग्रह के साथ दो विवाह दे। तथा यदि नवमेश केतु से युत हो तो स़ी अनैतिक व्यवहार करे।
9. बुध केतु युति मे जातक के रोग रहस्यमय रोग आसानी से पकड़ मे नही आयंे।
10. केतु वृष या तुला राशि मे एक से अधिक विवाह देग कानूनी या गैर कानूनी।
11. यदि सूर्य राहू केतु को देखे तो राहू केतु की स्वदशा मे हृदय रोग, पिता से जीवन मे कष्ट मिले जातक घमंडी, अड़ियल, नीच विचारों वाला, लंबा संघर्ष, महात्वाकांक्षा, सम्मान व उददेश कुप्रभावित होगा। 
12. यदि चन्द्र राहू केतु को देखे तो राहू केतु की स्वदशा मे अति भावुक, भावनाओं का ज्वार उठना। परिस्थितियो से तालमेल ना बिठा पाना, भारी पंसद नापसंद की समस्या, भारी अशांति, आत्महत्या की प्रवृत्ति, बुरी भावनाआंे।
13. यदि मंगल राहू केतु को देखे तो राहू केतु की स्वदशा मे विनाशकारी उर्जा का प्रभाव अक्सर हिंसक या अनियंत्रित क्रोध, असामाजिक व्यवहार, मंगल के अंग पर रोग होगा, दुर्घटना, कानूनी समस्याय,ें मंगलगत भाव के कारकों के विकास व उसकी घटनाओं मे बाधा स्त्री जातक मे मुगल केतु का संबध वैवाहिक जीवन मे सुख ना मिले।
14.यदि शुक्र राहू केतु को देखे तो सुख वैभव बढे। लेकिन पहले प्रत्याशित घटनाओं द्वारा कष्ट व बाधायें आयें दिमाग मे सैक्स की उर्जा बढे। विशेषतः शराब पीने पर जिससे दूसरों को हानि हो।
15. बुध यदि राहू केतु को देखे तो विचित्र भावनायें जंम लें अति कल्पनावादी, शिक्षा मे अपेक्षा से कम प्रगति हो विद्या भूल जाये बुघगत भाव के कारकों मे सदा अशंति 
बनी रहे। त्वचा, अस्थमा व मस्तिष्क के रोग हों।
16. गुरू यदि राहू केतु को देखे तो निर्धनता व गुरू के कारक पीड़ित हो। गुरूगत भाव के कारकों मे हानि हो।
17. शनि यदि राहू केतु को देखे तो जीपन मे संघर्ष बढ कफ, दांत, क्षय, टूटी हडडी, गैस, गंजापन, उत्सर्जन अंगों मे रोग।
18. केतु चर या स्थिर राशि केन्द्र या त्रिकोण के स्वामी के साथ युत हो तो मे स्वदशा मे धन देगा।
19. केतु 9 या 10 भाव मे तथा पंचमेश या दशमेश नवम या दशम भाव मे हो स्वदशा मे वैभव जायें।
20. गुरू राहू केतु से युत गुरू दूषित हो उसके शुभ फल नष्ट हों स्त्री जातक मे अशांति व निर्धनता दे।
21. त्रिकोणगत केतु त्रिकोणेश से युुत हो तो शुभ फल दे।
1. सूर्य केतु युति पिता को पित्त के रोग, पुजारी, आत्मज्ञान, वैरागी, सर्जरी, अग्नि से हानि, पिता धार्मिक हो पिता मंदिर के निकट पैदा हो।
2. चन्द्र्र केतु युति जंम के समय माता को गंभीर ,खतरा हो जातक मानसिक रोग।
3. बुध केतु जायदाद के निकट, मंदिर हो मामा धार्मिक या संयासी को नर्वसनैस, शिक्षा मे व्यापार हानि हो केतु तुला से मीन राशि व सप्तम से 12 वें भाव का स्वामी हो।
गोल्डन रूल्स आफ केतु
1. केतु लग्न से 8 वें भाव हो तथा लग्न से 8 वंे भाव की राशि के नवांश मे हो तो स्वदशा मे चोरों से खतरा देगा (देव केरलम, खंड 1, श्लोक 485)
2. केतु मीन राशि मे अष्ठमंाश या तुला नवांश मे हो तो वैवाहिक सुख नष्ट हो। (देव केरलम, खंड 1, श्लोक 485)
3. केतु यदि लग्न पद मे हो तो भाई बहनों ये झगड़ा कराये। (भृगु नाड़ी पृ 86)
4. यदि केतु लग्न या चन्द्र या गुरू से अष्ठमेश ग्रह के राशि अंशों पर गोचर करे तो जाब मे बाधायें आयेगी। (देव केरलम, खंड 3, श्लोक 2634)
भृगु नाड़ी के केतु फल
1. लग्न या चन्द्र से 2, 6, 8, 10, भाव मे केतु का गोचर अशुभफल देगा या 3, 4, 7, 11 भाव मे केतु का गोचर शुभ फल देगा।
2. सूर्य से 2, 5, 9, 11, 12 भाव मे केतु का गोचर जातक केा कष्ट, ठगी, षडयंत्र या झूठे कलंक से हानि हो जुआ, लाटरी, सटटे से हानि, रोग निराशा, अहंकार के कारण हानि। परिश्रम का फल ना मिले।
3. चन्द्रमा से 2, 5, 9, 11, 12 भाव मे केतु का गोचर माता को रोग, भूमि खरीद मे हानि, पिता, मित्र, बंधुओं से हानि, रोग व महिलाओं से हानि, क्रोध, भय, द्वेश से हानि हो।
4. मंगल से 2, 5, 9, 11, 12 भाव मे केतु का गोचर अचानक पतन अपनी गल्तियांे से भाग्यहानि, अनचाहा टाªन्सफर, व्यापार मे हानि, नौकरी छूट जाये, किसी षडयंत्र का शिकार भूमि खरीद मे हानि, गृह कलह।
.5. बुध से 2, 5, 9, 11, 12 भाव मे केतु का गोचर चितायें, अशांति, नर्वसनैस, किसी कागज या दस्तखत द्वारा समस्या आये, परोपकार करने मे अपमान व नुकसान हो। घोखा, कलंक, काम लटक जायेंगें।
6. गुरू से 2, 5, 9, 11, 12 भाव मे केतु का गोचर धनाभाव हो खर्चा बढे सैक्स मे रूचि ना हो। रोग, कर्जे के कारण कश्ट, तीर्थयात्रा हो।
7. शुक्र से 2, 5, 9, 11, 12 भाव मे केतु का गोचर प्रेम संबध, धनहानि, वैभव, वैवाहिक सुख मे हानि, विवाह विलंब, तलाक या पत्नी से भारी मतभेद, नौकरी या व्यापार मे अनचाहा परिवर्तन।
8. शनि से 2, 5, 9, 11, 12 भाव मे केतु का गोचर प्रेम नौकरी या व्यवसाय मे घाटा व भारी कठिनाईय वायु तत्व के रोग, भयानक शत्रतुा, दुख, अनिद्रा, निराशा, रक्त या पैर के रोग या पैर की हडडी टूटे।
9. राहू से 2, 5, 9, 11, 12 भाव मे केतु का गोचर  हर काम मे असफलता, निराशा, अनेक प्रकार का दुर्भाय व कष्ट, चिंता, कपट का शिकार।
10. केतु से 2, 5, 9, 11, 12 भाव मे केतु का गोचर जातक कई भूलें करे, भारी निराषा, असफलता, अवनति व्यापार मे घाटा या काम बिगाड़ने का दोषारोपण, पद हानि या स्थान परिवर्तन, अति अहंकार से हानि।


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