नैसर्गिक दशा के चमत्कार
वृहत पाराशर होराशास्त्र के दशाध्याय में पाराशर जी ने 42 प्रकार की दशाओं का वर्णन किया है।
‘‘द्विचत्वारिंशदभेदाः स्युः कथयामि तवाग्रता।’’
पाराशर जी बोले मैं अनेक प्रकार की दशाओं के भेद को कह रहा हँू।
‘‘अथाता सम्प्रवक्ष्यामि दशाभेदानेननेकशः।’’
आगे वह पिंड दशा, अंश दशा, नैसर्गिक दशा तथा अष्ट दशा के बारे मे बताते हैं।
‘‘तता पैण्ड्यदशा ज्ञेया तथांशक दशा द्विज।
नैसर्गिक दशा विप्र अष्टवर्ग दशा स्मृता।।
हाँलाकि पाराशर जी ने नैसर्गिक दशा बारे में विस्तार से नही बताया है किन्तु बाद के अन्य लेखकों ने इस पर अच्छा प्रकाश डाला है। विशोंत्तरी आदि कई अंय दशाओं के समान ही इसके जंमदाता भी महर्षि भृगु ही थे। इस तकनीक का भृगु संहिता खूब प्रयोग किया गया है। यह एक सरल, प्राचीन और विश्वव्यापी तकनीक है। जिसका ज्योतिष शास्त्र, हस्तरेखा विज्ञान और शारीरिक शास्त्र में प्रयोग किया जाता है। इसमें मनुष्य की परमायु को ग्रहों के अनुसार सात से नौ खण्डो में बाँटा जाता है। जंमपत्री मे जो ग्रह पाप प्रभाव मे हो या हस्तरेखा में जो पर्वत व रेखा व शरीर का जो अंग अशुभ चिन्हों से युत हो तो उस ग्रह के आयु खण्डों में जातक को अनेक प्रकार के अशुभफल और दुर्भाग्य भोगना पड़ता है। इसके विपरीत जमांक मे जो ग्रह या उससे संबधित भाव या हस्तरेखा मे जो पर्वत या रेखा या शरीर का जो अंग शुभ,बली व शुभ चिन्हों से युत हो तो उस ग्रह के आयु खण्डों में जातक को अनेक प्रकार के सौभाग्य, सुख, संतान, नौकरी, धन लाभ, संपत्ति, वाहन, स्त्री आदि की प्राप्ति होगी।
19 वीं सदी के प्रसिद्ध ब्रिटिश ज्योतिषी सेफेरियल ने अपनी पुस्तक ‘दि कबाला आफ नम्बर’ के अध्याय ‘एक्सप्रैशन आफ थाट’ में सेवन ‘एज़ आफ लाइफ’ का वर्णन किया है। जिसे उन्होंने शेक्सपियर के नाटक ‘एज़ यू लाइक इट’ से लिया है। इसमें मनुष्य के जीवन के विभिन्न खण्डों को विभिन्न ग्रहों के अनुसार बाँटा है। जो निम्न है।
आयु पक्ष विशेषता ग्रह
1-4 बचपन विभिन्नता चन्द्र
4-12 शिक्षा ज्ञान बुध
12-22 मित्रता प्रेम शुक्र
22-41 आकाक्षां सूर्य
41-56 एकाग्रता मंगल
56-68 पूर्णता प्रौढता गुरू
68-98 पतन देहक्षय शनि
भारतीय ज्योतिषियों ने इससे मिलते जुलते जीवन चक्र कुछ भिन्नता के साथ प्रस्तुत किये हैं। भृगु संहिता शोधकर्ता श्री तेजेन बोस ने अपनी पुस्तक भृगुशास्त्र अमूल्य निधि में श्री भृगु नैसर्गिक दशा का निम्न वर्णन किया है।
ग्रह दशा आयु में ग्रह दशा आयु में
चन्द्र 1-4 राहू 43-46
मंगल 5-6 चन्द्र 47-48
बुध 9-13 सूर्य,चन्द्र 49-52
शुक्र 14-16 मंगल 53-56
गुरू 17-22 गुरू 57-60
सूर्य 23-24 सूर्य 61-64
शुक्र 25-28 बुध- 65-68
मंगल 29-32 शनि 69-72
बुध 33-36 राहू 73-78
शनि 37-42 केतु 79-84
शंकर बालकृष्ण दीक्षित की पुस्तक भारतीय ज्योतिष के हिन्दी अनुवाद की प्रस्तावना में शिवनाथ झारखंडी ने तथा अनेक जातक ग्रन्थों में जातक के भाग्योदय हेतु एक विशेष सारणी पायी जाती है। यदि नवामेश गुरू हो 16 वर्ष में, सूर्य हो तो 22 वर्ष मे भाग्योदय होता है आदि। झारखंडी के अनुसार यदि उपरोक्त वर्ष शुभ और अशुभ दोनो फल दे सकता है उनका ग्रह शुभ या पापग्रस्त हो।
ग्रह वर्ष
गुरू 16
सूर्य 22
चन्द्र 24
मंगल 28
शु़क्र 25
बुध 32
शनि 36
राहू 42
केतु 48
प. रूपचन्द्र जोशी जो सन 1898 मे ग्राम फरवाला, पंजाब के जलंधर जिलंे मे पैदा हुये थे और 84 वर्ष की आयु में उनका निधन हुआ था ने ज्योतिष के एक अनोखी पद्धति के जंमदाता थे उन्होने इस पद्धति पर 5 छोटी पुस्तके लिखी थी। जिनको मिला कर उनके शिष्य पं गिरधारी लाल शर्मा जी ने 1934 में एक अलग ग्रन्थ की रचना की जो लाल किताब कहलाई। लाल किताब में निम्न वर्ष समूहो ग्रह की स्थितियों के अनुसार सौभाग्य या दुर्भाग्य देने वाला बताया गया है।
ग्रह वर्ष
गुरू 16-21 व 51-56
सूर्य 22,23 व 57,58
चन्द्र 24 व 59
मंगल 28-33 व 63-68
शु़क्र 25-27 व 60-62
बुध 34-35 व 69-70
शनि 36-41 व 1-6
राहू 42-47 व 7-12
केतु 48-50 व 13-15
नैसर्गिक दशा मनुष्य के जीवन को ग्रहों के अनुसार अनेक खंडों में विभाजित करती है। यदि ग्रह जंमाक में शुभ व बली तो उस आयु विशेष में जातक का भाग्योदय होता है। यदि ग्रह निर्बल, नीच, अस्त या त्रिक मे या पापयुत या दृष्ट हो तो उस आयु खंड मे कष्ट और दुर्भाग्य प्राप्त होता है।