युवा, बेरोगारी और सरकारी नीति


 बेरोजगारी भारत की सबसे विषम सामाजिक समस्याओं में से एक है। साल दर साल, चुनाव दर चुनाव सरकार दर सरकार, बेरोजगारी मुद्दा भारत के जनतंत्र के लिए हमेशा ही एक ज्वलंत मुद्दा रहता है। सरकारे बेरोगारी के मुद्दे पर बनती है और गिर भी जाती हैं। मगर बेरोजगारी जस की तस रहती है।
 मनरेगा 2005 जिसके तहद भारत के गामीण क्षेत्रों में हर घर के एक व्यस्क सदस्य को प्रतिवर्ष 100 दिन का अप्राशीक्षित रोजगार देने का प्रावधान है, भारतीय सरकार की बेरोजगारी के खिलाफ एक अग्रणी नीति है। यद्यपि सैद्धांतिक तौर पर मनरेगा एक प्रशंनीय नीति है जिस अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर सराहा गया है, अंनतः जमीनी हकीकत और कागजी उत्कृष्टता के बीच की दूरी मनरेगा अभी भी पूरी नही कर पाया है। हांलाकि यह कहना गलत होगा कि यह नीति पूर्णतः असफल रही है क्योंकि निश्चय ही इसके अनेक पहलू काफी हद तक सफल रह हैं। मगर क्या मनरेगा भारतीय बेरोजगारी का सटीक जवाब शायद ही हाँ में होगा।
 मोदी सरकार ने अपने चुनावी वादों में बेरोजगारी को एक अहम् मुद्दा बनाया था व सत्ता में आने के बाद रोजगार के ढेरों नए द्वार खोलने का वादा किया था। आज लगभग 4 वर्ष बीत चुके है और अनेक सरकारी दावों के बावजूद बेरोजगारी के स्तर में कोई खास अंतर नहीं आया है। रोजगार के नए मौकों की आज भी उतनी ही कमी जबकि जनसंख्या के हिसाब से बेरोजगारों की संख्या निरन्तर बढ़ रही है।
 आर्थिक नीति की दृष्टि से बेरोजगारी का एक सटीक और आसान समाधान है उत्पादन में वृद्धि। उत्पादन के क्षेत्र का विकास मतलब ज्यादा श्रम और श्रमिकों की माँग और ज्यादा श्रम की माँग का मतलब है रोजगार के ज्यादा, सीधे और सरल मौके। उत्पादन क्षेत्र और उत्पादन क्षमता का विकास देश को अर्थव्यवस्था के स्वास्थ्य के लिए एक खुशखबरी होता है न केवल जाहिर आर्थिक मापदडों पर बल्कि रोजगार संबन्धी मौकों और हालातों के अनुसार भी। एक बढ़ता उत्पादन क्षेत्र हर प्रकार के प्रशिक्षित व अप्रशिक्षित रोजगार के मौकों से परिपूर्ण होता जिसमें हर तबके के युवाओं को मौका देने की गुंजाईश होती है।
 कहने में आसान लगता है और हम यह सोचने पर मजबूर हो जाते है कि यदि समाधान इतना ही आसान है तो क्यों सरकारे बार-बार इसे लागू करने में असफल हो जाती है। कारण साफ है! यह जितना लगता है उतना आसान है नही। उत्पादन क्षेत्र का विकास तभी संभव है जबकि इस क्षेत्र में निवेश को बढ़ावा मिले। निवेश बढ़ाने के लिए अनेक आर्थिक और बाजारी कारणों की गणना जरूरी होती है। देश की व्यापक अर्थव्यवस्था निवेश की आसानी, सरकारी नीतियों जैसे अनेक कारण निवेश की संभावना पर असर डालते हैं। यह कहना उचित होगा की यदि उत्पादन क्षेत्र का विकास करता है तो इसमें निवेश बढ़ाना होगा और यह तभी संभव है जबकि देश की व्यापक आर्थिक नीति और माहौल इस तरह के निवेश को बढ़ावा देने के लिए उपयुक्त हो। 
 वस्तुतः बेरोजगारी की समस्या के समाधान जन तुष्टिकरण और वोट बैंक की राजनीति के लिए बनाई गई शार्टकट योजनाओं और खाली आश्वासनों से संभव नहीं है। यदि इस समस्या का विस्तृत और दीर्घकालीन समाधान ढूँठना है तो सरकारी नीतियों को भी अपना नजरिया और विस्तृत करना होगा और ऐसी नीतियों को बढ़ावा देना होगा जोकि हमारे सामाजिक और आर्थिक ढ़ाँचे में आमूलचूल परिर्वतन करने में सक्षम हो। देश में बेरोजगारी को समाप्त करने का यही एक ठोस और प्रभावी उपाय है। 


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