रमोला की गजलों में है वैज्ञानिक दृष्टिकोण: कपिल

रमोला रूथ लाल की गजलों को पढ़ने के बाद स्पष्ट रूप से कहा जा सकता है कि उसकी साफगोई और मनोवैज्ञानिक दृष्टिकोण इस समाज के लिए बेहद खास है। यह उनकी शायरी विशेषता है। उनकी गजलों को पढ़ते समय लगता है कि जिन्दगी से दोबारा साक्षात्कार हो रहा है। यह बात भुवनेश्वर के वरिष्ठ साहित्यकार शैलेंद्र कपिल ने गुफ्तगू द्वारा आयोजन ऑनलाइन साहित्यिक परिचर्चा में रमोला रुथ लाल के गजल संग्रह ‘यह दर्द ही तो बस अपना है’ पर विचार व्यक्त करते कहा। सम्पदा मिश्रा ने कहा कि रमोला रूथ लाल ‘आरजू’ की गजलों में जहाँ मानवीय संवेदनायें हैं। वही देश काल की परिस्थितियों का, घटनाक्रमों का वर्णन है। वे बहुत ही जिंदादिल और सरल व्यक्तित्व की धनी है।उनको प्रकृति से भी बहुत ज्यादा प्रेम है। मनमोहन सिंह ‘तन्हा’ ने कहा कि रमोला रूथलाल की रचनाओं में विषय का गांभीर्य बड़ी सहजता से दृष्टिगोचर होता है, भाव प्रधान काव्य मे जहां मधुरता हैं। वही शिल्प भी लाजवाब है, आपकी हर रचना साहित्य के मानकों के अनुरूप अपनी पूरी गरिमा में मौजूद है। साहित्य संसार में आपका एक सम्मानजनक स्थान स्थापित हो चुका है। नरेश महरानी के मुताबिक रमोला रुथलाल की रचनाएं शिल्प पुंज है। भाव प्रधान, गाम्भीर्य और सहजता के भावों का संगम स्पष्ट रूप से परिलक्षित होता है। इनकी रचनाएं आपके गरिमा पूर्ण ब्यक्तिव को सम्मान जनक स्थान प्रदान करवातीं है। ऋतंधरा मिश्रा ने कहा कि रमोला जी एक गंभीर प्रतिष्ठित शायरा हैं। कुछ प्रोग्रामों में मुझे उन्हें सुनने का सौभाग्य प्राप्त हुआ। गजल के शेर से हर शख्सियत को अपने शब्दों की अदायगी से कहना और सामने वाला उसी भाव भंगिमा में ग्रहण कर ले यह बड़ी बात है। इश्क सुल्तानपुरी के मुताबिक रमोला रूथ लाल ‘आरजू’ की रचनाओं में आम आदमी के अंदर उठने वाले गुबार, उसकी आकांक्षाएं, कुछ पाने की तड़प और कुछ खोने का गम समेटे हुए एक खूबसूरत कल्पना का संसार बसा हुआ दिखाई देता है । उनकी रचनाओं में सादगी और प्रेम के प्रति समर्पण होने के साथ-साथ जीवन दर्शन की बहुत सरल और सुलभ व्याख्या प्रस्तुत होती है। उन्हें मानव-जीवन के संघर्षों की विस्तृत समझ है जिसकी वजह से उनकी रचनाओं में आकर्षण और सरल भाव प्रकटीकरण विद्यमान है। जो अच्छी रचनाओं का सर्वमान्य गुण है। वरिष्ठ शायर सागर होशियारपुरी ने उनकी कुछ गजलों के बह्र पर सवाल भी खड़ा किया। इनके अलावा तामेश्वर शुक्ल ‘तारक’, जमादार धीरज, सुमन ढींगरा दुग्गल, अतिया नूर, रचना सक्सेना, शगुफ्ता रहमान, डॉ ममता सरूनाथ, अर्चना जायसवाल, संजय सक्सेना, प्रभाशंकर शर्मा, डॉ. शैलेष गुप्त ‘वीर’ और डाॅ. नीलिमा मिश्रा ने भी विचार व्यक्त किए। संयोजन गुफ्तगू के अध्यक्ष
इम्तियाज अहमद गाजी ने किया। रविवार को डाॅ. नीलिमा मिश्रा की गजलों पर परिचर्चा होगी।


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