जिंदगी का वास्तविक अनुभव

पढ़ाई पूरी करने के बाद एक छात्र किसी बड़ी कंपनी में नौकरी पाने की चाह में इंटरव्यू देने के लिए पहुंचा छात्र ने बड़ी आसानी से पहला इंटरव्यू पास कर लिया। अब फाइनल इंटरव्यू कंपनी के डायरेक्टर को लेना था। और डायरेक्टर को ही तय करना था कि उस छात्र को नौकरी पर रखा जाए या नहीं। डायरेक्टर ने छात्र का सीवी देखा और पाया कि पढ़ाई के साथ-साथ यह छात्र ईसी में भी हमेशा अव्वल रहा।
डायरेक्टर, क्या तुम्हें  पढ़ाई के दौरान कभी छात्रवृत्ति  मिली?
छात्र, जी नहीं!
डायरेक्टर, इसका मतलब स्कूल-काॅलेज  की फीस तुम्हारे पिता अदा करते थे।
छात्र, जी हाँ, श्रीमान!
डायरेक्टर, तुम्हारे पिताजी क्या काम करते  है?
छात्र, जी वो लोगों के कपड़े धोते हैं!
यह सुनकर कंपनी के डायरेक्टर ने कहा, जरा अपने हाथ तो दिखाना।
छात्र के हाथ रेशम की तरह मुलायम और नाजुक थे।
डायरेक्टर, क्या तुमने कभी  कपड़े धोने में अपने  पिताजी की मदद की?
छात्र, जी नहीं, मेरे पिता हमेशा यही चाहते थे 
कि मैं पढ़ाई करूं और ज्यादा से ज्यादा किताबें
पढ़ूं!
हां, एक बात और, मेरे पिता बड़ी तेजी  से कपड़े धोते हैं!
डायरेक्टर, क्या मैं तुम्हें एक काम कह सकता हूं?
छात्र, जी, आदेश कीजिए!
डायरेक्टर, आज घर वापस जाने के बाद अपने पिताजी के हाथ धोना। फिर कल सुबह मुझसे आकर मिलना।
छात्र यह सुनकर प्रसन्न हो गया।
उसे लगा कि अब नौकरी मिलना तो पक्का है, तभी तो  डायरेक्टर ने कल फिर बुलाया है।
छात्र ने घर आकर खुशी-खुशी अपने पिता को ये सारी बातें बताईं और अपने हाथ दिखाने को कहा।
पिता को थोड़ी हैरानी हुई।
लेकिन फिर भी उसने बेटे की इच्छा का मान करते हुए अपने दोनों हाथ उसके हाथों में दे दिए।
छात्र ने पिता के हाथों को धीरे-धीरे धोना शुरू किया। कुछ देर में ही हाथ धोने के साथ ही उसकी आंखों से आंसू भी झर-झर बहने लगे। पिता के हाथ रेगमाल की तरह सख्त और जगह-जगह से कटे हुए थे। यहां तक कि जब भी वह  कटे के निशानों पर पानी डालता, चुभन का अहसास
पिता के चेहरे पर साफ झलक जाता था। छात्र को जिंदगी में पहली बार एहसास हुआ कि ये वही हाथ हैं जो रोज लोगों के कपड़े धो-धोकर उसके लिए अच्छे खाने, कपड़ों और स्कूल की फीस का इंतजाम करते थे। पिता के हाथ का हर छाला सबूत था उसके एकेडैमिक कैरियर की एक-एक कामयाबी का। पिता के हाथ धोने के बाद छात्र को पता ही नहीं चला कि उसने उस दिन के बचे हुए सारे कपड़े भी एक-एक कर धो डाले। उसके पिता रोकते ही रह गए, लेकिन छात्र अपनी धुन में कपड़े धोता चला गया उस रात बाप-बेटे ने काफी देर तक बातें कीं।
अगली सुबह छात्र फिर नौकरी के लिए कंपनी के डायरेक्टर के आॅफिस में था।
डायरेक्टर का सामना करते हुए छात्र की आंखें गीली थीं।
डायरेक्टर, हूं, तो फिर कैसा रहा कल घर पर?
क्या तुम अपना अनुभव मेरे साथ शेयर करना पसंद करोगे?
छात्र, जी हाँ, श्रीमान कल मैंने जिंदगी का एक वास्तविक अनुभव सीखा।
नंबर एक, मैंने सीखा कि सराहना क्या होती है
मेरे पिता न होते तो मैं पढ़ाई में इतनी आगे नहीं आ सकता था।
नंबर दो, पिता की मदद करने से मुझे पता चला कि किसी काम को करना कितना सख्त और मुश्किल होता है।
नंबर तीन, मैंने रिश्तों की अहमियत पहली बार इतनी शिद्दत के साथ महसूस की।
डायरेक्टर, यही सब है जो मैं अपने मैनेजर में देखना चाहता हूं।
मैं यह नौकरी केवल उसे देना चाहता हूं जो दूसरों की मदद की कद्र करे, ऐसा व्यक्ति जो काम किए जाने के दौरान दूसरों की तकलीफ भी महसूस करे। ऐसा शख्स जिसने सिर्फ पैसे को ही जीवन का ध्येय न बना रखा हो।
मुबारक हो, तुम इस नौकरी  के पूरे हकदार हो!
आप अपने बच्चों को बड़ा मकान दें, बढ़िया खाना दें,
बड़ा टीवी, मोबाइल, कंप्यूटर सब कुछ दें। लेकिन साथ ही  अपने बच्चों को यह अनुभव भी हासिल करने दें कि उन्हें पता चले कि घास काटते हुए कैसा लगता है? उन्हें भी अपने हाथों से ये काम करने दें।
खाने के बाद कभी बर्तनों को धोने का अनुभव भी अपने साथ घर के सब बच्चों को मिलकर करने दें। ऐसा इसलिए नहीं कि आप मेड पर पैसा खर्च नहीं कर सकते, बल्कि इसलिए कि आप अपने बच्चों से सही प्यार करते हैं। आप उन्हें समझाते हैं कि पिता कितने भी अमीर क्यों न हो, एक दिन उनके बाल सफेद होने ही हैं। सबसे अहम हैं आप के बच्चे  किसी काम को करने
की कोशिश की कद्र करना सीखें। एक दूसरे का हाथ बंटाते हुए काम करने का अपने अंदर लायें।


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