नाटकों का मंचन रुकना नहीं चाहिए

कोविड-19 (कोरोना वायरस) लॉकडाउन की वजह से नाटक मंचन तथा अन्य सांस्कृतिक गतिविधियां भी नहीं हो पा रही है जिसके कारण कलाकारों ने भी दूसरे रास्ते अपनाए हैं मंचन के दौरान कम से कम कलाकारों को शामिल किया जाना। शारीरिक दूरी रखकर सरकारी गाइडलाइन का अनुपालन संस्था के कलाकारों द्वारा किया जा रहा है। ऐसे में हमारे प्रयागराज में सक्रिय एवं निरंतर कार्य करने वाली वरिष्ठ रंगकर्मी निर्देशिका सुषमा शर्मा ने भी एकल नाट्य प्रस्तुति को कहती हैं समय के स्वरूप है और उन्होंने 4 एकल नाट्य प्रस्तुतियां की है आइए उनके बारे में भी जाने उन्हीं के शब्दों में मैंने चार एकल नाटकों का अभिनय किया है जो किसी भी कलाकार के लिए किसी सघन प्रशिक्षण से कम नहीं होता है सन 2001 में मेरे मन में यह विचार आया कि मैं एकल नाटकों में अभिनय करके देखो उस समय हमारे शहर में राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय की श्री गोविंद गुप्ता मौजूद थे उनके निर्देशन में मैंने पहला एकल नाटक धूप का एक टुकड़ा किया इलाहाबाद में पहली बार किसी  रंगकर्मी में एकल अभिनय मंच पर किया था लोगों की प्रशंसा ने उत्साहवर्धन किया और सीख ली हमने उसका कुछ सुधार के साथ दूसरा मंचन भी किया 2002 में 2005 में संगीत नाटक अकादमी  अनुदान योजना के अंतर्गत पंडवानी गायिका तीजन बाई पर आधारित नाटक चोला मोर माटी किया। यह नाटक तीजन बाई के अपने समाज परिवेश और खुद से संघर्ष की अद्भुत कथा है जिससे उभरकर आज वह एक अंतरराष्ट्रीय स्तर की प्रतिष्ठित कलाकार इस नाटक के 11 प्रदर्शन किए समन्वय रंगमंडल स्वर्ग रंगमंडल नांदी कार थियेटर फेस्टिवल कोलकाता ई जेडसी सीसी कोलकाता प्रांगण संस्था पटना इंदौर मध्य प्रदेश झांसी संग्रहालय झांसी इलाहाबाद संग्रहालय वडोदरा गुजरात संगीत नाटक अकादमी नई दिल्ली और साहित्य कला परिषद नई दिल्ली दो हजार अट्ठारह में इसके मंचन हुए।
तीसरा एक नाटक 2009 में डॉ प्रतिभा राय के लिखे उपन्यास द्रौपदी पर आधारित कृष्णा जो कृष्ण और द्रौपदी के सखा भाव पर आधारित है उसमें मैंने एक अलग ने किया चैथा एकल नाटक निर्देशक श्री प्रवीण शेखर के निर्देशन में अमृता प्रीतम और पाकिस्तानी शायर सारा शगुफ्ता के पत्रों पर आधारित एकल नाटक एक थी सारा में अभिनय किया।
सुषमा जी चार एकल नाटको के अतिरिक्त और भी बहुत सारी प्रस्तुतियां की है इसके साथ ही प्रयाग में संस्कृत नाटक का निर्देशन भी निरंतर कर रही हैं आज के वर्तमान समय में सुषमा जी का कहना है कि नाटकों का मंचन रुकना नहीं चाहिए कम पात्र और सोशल डिस्टेंसिंग का ध्यान रखते हुए हम मंचित कर सकते हैं तथा हम सभी कलाकार एकल नाटक की प्रस्तुति भी दे सकते हैं।


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