उर्दू शायरी के आखिरी पैरोकार थे फिराक: मुनव्वर राना


फिराक गोरखपुरी उर्दू शायरी के आखिरी पैरोकार थे। उन्होंने अपनी शायरी से उर्दू अदब को चरम पर पहुंचा दिया था, उनके बाद उर्दू शायरी ने अपना चोला बदल सा लिया है, अब उर्दू में ऐसी शायरी नहीं होती जैसा कि फिराक जमाने में या उनसे पहले होती थी। वो पंडित जवाहर लाल नेेहरु की वजह से सिसायत में आए थे, उन्होंने कांगे्रस और देश के लिए बहुत काम किया, लेकिन अपने उसूलों से कभी समझौता नहीं किया। यह बात मशहूर शायर मुनव्वर राना ने फिराक गोरखपुरी जयंती की पूर्व संध्या पर साहित्यिक संस्था ‘गुफ्तगू’ द्वारा आयोजित वेबिनार में कही।
मशहूर कथाकार ममता कालिया ने कहा कि रघुपति सहाय ‘फिराक’ ने अपनी उर्दू जबान और शायरी से सिद्ध कर दिया कि भाषा का मजहब से कोई रिश्ता नहीं होता। उनकी शायरी, बड़े-बड़े उर्दू शायरों के साथ एक पायदान पर रखी जा सकती है जैसे इकबाल, जिगर मुरादाबादी, जोश मलीहाबादी वगैरह। अपनी अलबेली जीवन शैली, मौलिक अध्यापन पद्धति और बेबाक बयानी के लिए वे मशहूर रहे। इलाहाबादी लोगों ने उनका गुस्सा और प्यार दोनों देखा है। उनकी शायरी का बड़ा संग्रह गुल ए नगमा आज भी बेजोड़ समझा जाता है। प्रो. वसीम बरेलवी ने कहा, इससे बढ़कर किसी शायर की महानता का क्या सुबूत हो सकता है कि वह जिस अहद में जिए उसके नाम से उसका वह अहद पहचाना जाए। उर्दू शायरी में विभिन्न दौर रहे हैं उसमें से फिराक और फैज़ के नाम से भी एक दौर रहा, फिराक का अहद उनकी जिन्दगी में उनके नाम से पहचाना गया।
मशहूर फिल्म गीतकार इब्राहीम अश्क ने कहा कि फिराक गोरखपुरी उस अहद के शायर हैं जब गजल जमाल-ए-यार की जुल्फों में उलझकर रह गई थी। ऐसे वक्त में फिराक ने अहम कारनाम ये किया कि गजल को मानी और मफहूम अता कर उसको गहराई और संजीदगी के साथ आला अदब के मैयार तक पहुंचाया।
प्रो. अली अहमद फातमी ने कहा कि उर्दू शायरी में फिराक की विशिष्ट पहचान के मैं तीन कारण समझता हूं। एक तो यह, कि उन्होंने उर्दू क्लासिकल पोएट्री को खूब पढ़ा था। खासतौर से वो मीर के बहुत आशिक थे और उन्होंने मीर का लहजा और अंदाज वगैरह खूब अपनाया। दूसरा बड़ा कंट्रीब्यूशन यह था, कि वो अंग्रेजी के बड़े प्रोफेसर थे और अंग्रेजी की जो रोमांटिक पोयट्री थी, उस पर उनकी बड़ी निगाह थी। उन्होंने रोमांटिसिजम को उर्दू शायरी में खूब बरता। तीसरा, जो उनका सबसे बड़ा कंट्रीब्यूशन है, और जो उर्दू गजल में फिराक से पहले नहीं था, या था तो बहुत ही कम था। वो ये था, कि उन्होंने हिंदू और हिंदुस्तानी संस्कृति का तालमेल उर्दू गजल में स्थापित किया।
इसका बेहतरीन उदाहरण उनका यह शेर है-
‘हर लिया है किसी ने सीता को
जिंदगी जैसे राम का वनवास।’
इनके अलावा शैलेंद्र जय, प्रो. सुरेश चंद्र द्विवेदी, अनिल मानव, मनमोहन सिंह तन्हा, प्रभाशंकर शर्मा, डाॅ. नीलिमा मिश्रा, दयाशंकर प्रसाद, अर्चना जायसवाल, नीना मोहन श्रीवास्तव, शिवपूजन सिंह, नरेश महरानी, संजय सक्सेना, रेशादुल इस्लाम, इश्क सुल्तानपुरी, शिवाजी यादव आदि ने भी विचार व्यक्त किए। संयोजन गुफ्तगू के अध्यक्ष इम्तियाज अहमद गाजी ने किया।


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