काका, आमी भात खाबा

1 सितम्बर 1039 को प्रातः 4 बज कर 45 मिनट पर हिटलर की सेनाओं के पोलैण्ड मे प्रवेश करते ही जर्मनी ने द्वितीय विश्व युद्ध का प्रारंभ कर दिया भारत मे अंग्रेजों के परम शत्रु नेताजी सुभाष चन्द्र बोस जनवरी 1941 मे छिप छिपाते अफगानिस्तान हेतु हुये जर्मनी पहुँचे फिर वहाँ से जापान। उन्होने भारतवासियो से अपील की कि किसी भी कीमत पर अंग्रेजों का साथ ना दे इधर सात दिसम्बर 1941 को प्रातः 7 बज कर 4 मिनट पर हवाई द्वीप समूह के पर्ल हार्बर पर अपने 353 जीरो लड़ाकू जहाजों द्वारा आक्रमण करते ही जापान अमरीकन के खिलाफ इस विश्वयुद्ध मे कूद पड़ा फिलीपीन्स, सुमात्रा, जावा इंडोनेशिया बोर्नियो, थाईलैण्ड, सिंगापुर बर्मा को चुटकियों मे मसलत हुये जापानी सेनायें भारत सीमा पर आ डटी। कांग्रेस ने 9 अगस्त 1942 को भारत छोेड़ो का प्रस्ताव पास करके अंग्रेजों से देश छोड़ने का आग्रह किया अंग्रजों ने राष्ट्रीय नेताओं को जेल का दरवाजा दिखाया हजारों लाखों लोगांे को गोलियों से भून डाला इतना होने पर भी भारतीय जनता चैन से ना बैठी और अंग्रेजों का तख्ता पलटने मे लगी रही। अंग्रेजों के लिये यह बड़ी विकट घड़ी थी उन्होंने सारे सीमा क्षेत्र विशेष कर बंगाल मे गुप्तचरी का जाल बिछाया 1943 मे अंग्रेजों की इस गुप्तचर संस्था फोर्स वन थ्री सिक्स का मै भी कर्मचारी था उधर पूर्वी सीमा पर जापानियों से भंयकर युद्ध हो रहा था ईधर अंग्रेज सुभाष बाबू का बदला पूरे बंगाल प्रान्त से लेने की योजना कार्यान्वित करने मे मशगूल थे इन्ही दिनों अगस्त माह मे एक आवश्यक काम से मुझे शिमुराली स्थित ब्रिटिश कैम्प आने का आदेश मिला दूसरे दिन प्रातः 7 बजे स्यालदाह स्टेशन से प्रथम श्रेणी का टिकट लेकर पैसेन्जर गाड़ी से मैं रवाना हुआ और ठीक आठ बजे शिमुराली पहुँचा यहाँ कोई कुली ना था मंै खुद अपना सूटकेस और होल्डाल लेकर प्लेटफार्म के बाहर आया यहाँ भी कोई सवारी नही थी उस छोटे से स्टेशन के छोटे कद के बंगाली स्टेशन मास्टर ने टूटी-फूटी हिन्दी मे कहा शाब बाजार मे चार शेर का चावल मिलता है। शाब लोग शेर का मोल लेता है। शब अपना अपना चावल मोल बेच रहा है। पोयशा बना रहा है अब ना कुली मीलेगा ना घोड़ागाड़ी। मैं खुद ही अपना सूटकेस और होल्डाल उठा कर दो मील लंबे रास्ते पर चल दिया तीन घंटे बाद कैम्प पहुँचा कैम्प पहुचने पर अपने पठान अर्दली अलाबख्श से पता चला कि कर्नल गोडार्ड रोज ही उस ईलाके से हजारों रूपये के चावल खरीद कर थ्री टर्नर मे लदवा कर कलकत्ता भिजवाता है। क्यों साब, मालूम नही मैं बार-बार सोचता रहा ऐसा क्यों किया जा रहा है। बाजार मे चार सेर के भाव से मिलने वाला चावल दो सेर के भाव से क्यों खरीदा जा रहा है। उत्तर पूर्वी बंगाल मे हुगली नदी के किनारे शिमुराली एक छोटा से गांव है । द्वितीय विश्वयुद्ध के दौरान उसका महत्व काफी बढ गया था फोर्सवन थ्री सिक्स ने यही बनानारिज मे सी टेªनिंग सेंटर खोला था फौजी जासूसों को पानी मे काम आने वाली सभी विषयों की टेªनिंग यहाँ दी जाती थी यही पोर्ट ट्रस्ट कमिशनर के पुराने बंगले मे कई देशों के सभी जासूस रहते थे मैं दूसरे दिन शिमुराली के एक प्रतिष्ठित किसान सज्जन मुनाई दादा के यहाँ गया उनसे बातचीत का विषय केवल चावल था मिलने वो बोले मैंने तो अपना शब चावल बेच दिया खूब पोयशा कमाया मुनाई दादा ने बीड़ी का कश खंीचते हुये कहा लेकिन दादा अब घर मे खाने के लिये चावल कहाँ से लाओगे क्यों बााजार मे मीलता जो है। कहते-कहते मुनाई दादा की भवांे मे सलवटें पड़ी और वह कुछ सोचने से लगे क्या बात है। दादा किस सोच मे पड़ गये कुछ नई अइसे ही सोचने लगा था कि बाजार मे जीतना चावल पहले आता था उतना अब नाहीं मैं समझ गया घृणा मिश्रित विजय से मैंने कहा, क्या समझ गया यही कि कुुछ दिनों बाद तुम्हारे हाथ मे सिर्फ कागज के नोट रह जायेंगें और चावल गायब अइसा कैइसे होगा ऐसा ही होगा तारपोरे (फिर) भुखमरी कहते हुये मैंने कमरा छोड़ दिया सरकारी काम से यदा कदा ही शिमुराली जाना होता था शिमुराली मे थोड़ी बहुत हिन्दी जाननेवाले यही मुनाई दादा थे वे खाते पीते जमींदार परिवार के युवक थे विद्यासागर इण्टर काले कलकत्ता मे वो मैट्रिक के विद्यार्थी थे मेट्रिक मे फेल हो जाने के कारण इनकी शादी कर दी गई थी वह चार लड़कियों और एक लडके के पिता थे सबसे बड़ी लड़की नौ साल और सबसे छोटा लड़का तीन साल का था उनकी पत्नी रेवा बड़ी सुशील थी मै अक्सर उनके बच्चों के साथ खेलने उनके घर चला जाता था और उन बच्चों मे अपनी बच्ची को याद कर लिया करता थी जो लखनऊ मे रहती थी रेवा भाभी मुझे बिना संदेश रसगुल्ले चाय पिलाये बिना जाने नही देती थी मेरा इस प्रकार गुस्से मे घर छोड़ कर चला आना रेवा भाभी को बहुत अखरा दूसरे दिन कलकत्ता जाना था जाने का रास्ता मुनाई दादा के घर के ठीक सामने से था मैंने देखा रेवा भाभी दरवाजे पर अपने लड़के को गोद मे लिये खड़ी है। देखते ही बोली कुमार बाबू काल तुम बिना पान खाये कइशे चाला गया अपनी भाभी से गुश्शा हो गया क्या नही भाभी दादा की अकल पर जरूर तरस आता है।
आखिर उन्होंने सब चावल क्यों बेच दिया अब जब बाजार मे किसी कीमत पर न मिलेगा तो बच्चे क्या नोट खायेंगंे अइशा कइशे शब लोग बेचा है ऐसा ही होगा तब अभी मै जल्दी मे हूँ कलकत्ते से लौट कर बताऊँगा ठीक दोपहरी मे गाड़ी स्यालदाह पहुँची सटेशन पर भीड़ देख कर मैं हैरान रह गया चारों और गंदी धोती मे लिपटी हुयी बंगाली अधनंगी महिलाये उनके नंगे बच्चे ओर शरीर पर केवल अंगोछा लपेटे उनके मर्द और बड़े बच्चे बदन पर बस पसलियां ही नजर आ रही थी और नजर आ रहे थे उनके फूले हुये पेट हडिडयों उन ढाँचो के अधिक देर तक देख ना सका फैारन कुली से सामान उठाने को कहा दो रूपया होगा साब दो रूपया हाँ साब क्या करेगा चावल मिलता नई तीन रूपये सेर हैं अच्छा देगा जल्दी करो बाहर आया पाँच रूपये मे रासबिहारी एवेन्यू के लिये टैक्सी की फोर्स वन थ्री सिक्स का हेडक्वाटर रासबिहारी ऐवेन्यू की 207ए, की दुमंजिली कोठी मे था कर्नल स्टीयर इसके ईन्चार्ज थे मैं दो महीने बाद आया था बड़ी बड़ी तब्दीलियां नजर आयी नये नये शेड बन गये थे जिनमे उपर से नीचे तक चुनी हुयी थी चावल की बोरियां। लगभग एक महीने बाद कलकत्ते मे राशनिंग लागू कर दी गई केवल राजकर्मचारियों के लिये वैसे बाजार मे भी चावल मिलता था तीन रूपये सेर ऐसा लगता था जैस अंग्रेज पूरे बंगाल से सुभाष बाबू से बदला लेने की तैयारी मे हो मैं शाम को लेक की तरफ निकल पड़ा पार्क सरकस से बालीगंज ट्राम डिपो तक ट्राम से आया ट्राम से उतरा भर था कि एक अधनंगी बुढिया हाथ फैला कर बोली बाबा एकटा पोयशा, मेरे पोइशा नेई बोलने पर तुरंत लड़खड़ा कर सड़क पर औधें मुँह गिरी मँुह से थोड़ा खून निकला और मर गई मैं भारी मन से बालीगंज चैराहे से जैसे ही लेक की तरफ आया औरतों का करीब आधा मील लंबा क्यू नजर आया सभी एक दूसरे से सटी जमीन पर बैठी थीं कुछ का कहना था कि वो दो दिन से बैठी हैं किंतु चावल नसीब नही हुआ थोड़ी देर के लिये भी क्यू छोड़ने का मतलब था सबसे पीछे जगह पाना, तभी एक साफ-सुथरे कपड़े पहने एक बंगाली बाबू मोशाय क्यू के बहुत पीछे से दो बंगाली युवतियो को अपने साथ लाये और उसी कयू मे उन्हे अगला स्थान दिया एक सज्जन के आपत्ति करने पर बोला तुमी की जानो एई मेयटा खूब सुंदर होईचे तुम कया जानो ये लड़कियां बहुत सुंदर है। बाद मे पता चला कि यह दुकान के मालिक थे और चावल उसी को मिलता था जिस पर इनकी कृपा हो चावल देने का नियम यह था कि एक औरत को केवल एक सेर ही चावल मिलता था और एक दिन मे तीन बोरियां खोली जाती थी इस प्रकार एक दिन मे लगभग 3,00 महिलाओं को चावल दिया जाता था जब कि क्यू मे उनकी संख्या तीन हजार से कम ना थी शेष दूसरे तीसरे चैथे दिन का इंतजार करती उसी क्यू मे। इस बात का ख्याल रख गया था कि कलकत्ता मे कम से कम मौतें हों बाकी बंगाल से कोई मतलब नही था नतीजा यह हुआ कि सैकड़ों हजारों लोग गांव मे भूख से तड़प-तड़प कर मरने लगे मैने आधी रात को सदर गोदाम के संतरी को धोखा देकर सैकड़ों बिस्कुट के टिन जीप मे लादे और आधी रात को बालीगंज मे महिलाओं की क्यू मे फेंक दिये दूसरे दिन सुबह बालीगंज मे बिस्कुट के सैकड़ों खाली डिब्बे सड़क पर बिखरे नजर आये जिन पर लिखा था फाॅर यूज इन आम्र्ड फोर्सेस ओनली दिन ढलते शिमुराली पहुँचा दिन ढलते मुनाई दादा के धर की कुण्डी खटखटाई रेवा भाभी ने दरवाजा खोला मुझे देखते ही दहाड़ मार कर रोने लगी तोमार दादा तो नही रहे आज तीन दिनों से भात नही पका भाभी मैं चावल लेने जाता हूँ मेरा इंतजार करना कह कर मै कलकत्ता चला गया रासबिहारी ऐवन्यू पहुँच कर गोदाम से दस बोरी चावल निकलवाया और उन्हें थ्री टनर पर लदवा की स्वयं ही गाड़ी ड्राईव करके शिमुरौली पहुँचा पाँच बोरियां रेवा भाभी के घर उतारी और पाँच गाड़ी मे ही रहने दी गांव के दूसरे लोगों को देने के लिये जल्दी मे यह भी भूल गया कि कोई और गाड़ी मेरा पीछा कर रही है। मुशकिल से यह काम खत्म ही कर पाया था कि कर्नल स्टीयर ने पीछे से मेरेे कंघे पर हाथ रखे हुये कहा योर गेम इज ओवर नाउ वी हैव काट यू रेड हैण्डेड मैने अपना भरा हुआ 38 बोर सर्विस रिवाल्वर उन्हे थमा दिया अगली गाड़ी मे मैं बैठाया गया चावल की दसों बोरिया फिर से लादी गयीं रेवा भाभी दरवाजे पर रो रही थीं उनकी गोद मे छोटी बच्ची थी जैसे ही हमारी गाड़ी कलकत्ते की ओर मुड़ी उस बच्ची ने चिल्ला कर कहा आमार खूब खीदे पेईचे काका आमी भात खाबो। साभार-सत्यकथा मनोहर कहानियां स्वाधीनता अंक, काका आमी भात खाबो लेखक- धर्मेन्द्र गौड़। स्व गौड़ द्वितीय विश्वयुद्ध के दौरान ब्रिटिश गुप्तचर संस्था फोर्स वन थ्री सिक्स के जासूस थे और 1943 के  बंगाल के अकाल के समय गौड़ बंगाल मे ही तैनात थे यह रचना उनके तत्कालीन आँखों देखे विवरण पर आधारित हैं बंगाल के उस उस अकाल मे बंगाल असम मे करीब 30 लाख जाने गई थी बिटिश सरकार ने बंगाल का अधिकांश चावल उँचे दामों मे खरीद कर युद्धरत ब्रिटिश सेना के लिये रिजर्व कर लिया था और सरकार ही महीने 25, हजार टन चावल लंका भेजती थी लाॅर्ड लिनलिथगो के अवकाश ग्रहण करने के बाद अक्टूबर 1943 मे भारत के नये वायसराय व गर्वनर जनरल अर्ल आर्चिवाल्ड वेवल बने उन्हें फोर्स थ्री वन सिक्स द्वारा चावल खरीद की जानकारी नही थी उन्होने प्रधानमंत्री चर्चिल को बंगालवासियों को बार बार चावल भिजवाने के लिये तार भेजे परन्तु चर्चिल ने निमर्मतापर्वूक ठुकरा दिया था क्योंकि काँग्रेस और सुभाष चन्द्र बोस आदि अनेक भारतीय नेता अंग्रेजांे के विरूद्ध स्वतंत्रता संग्राम कर रहे थे बल्कि उन्होने वेवल को आदेश दिया के वे ही महीने 25 हजार टन चावल लंका भेजे।- लेखक धर्मेंन्द्र गौड़, पुस्तक, फोर्स वन थ्री सिक्स और मै अंग्रेजो का जासूस था। 


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