विश्व शांति के हम साधक हैं


 

- डा. जगदीश गांधी, संस्थापक

                विश्व शांति के हम साधक हैं जंग होने देंगे, युद्धविहीन विश्व का सपना भंग होने देंगे। हम जंग होने देंगे..’ इस युगानुकूल गीत द्वारा महान युग तथा भविष्य दृष्टा कवि अटल जी ने सारी मानव जाति को सन्देश दिया था कि विश्व को युद्धों से नहीं वरन् विश्व शांति के विचारों से चलाने में ही मानवता की भलाई है। इस विश्वात्मा के लिए हृदय से बरबस यह वाक्य निकलता है - जहाँ पहुँचे रवि, वहाँ पहुँचे कवि। विश्व शान्ति के महान विचार के अनुरूप अपना सारा जीवन विश्व मानवता के कल्याण के लिए समर्पित करने वाले वह अत्यन्त ही सरल, विनोदप्रिय एवं मिलनसार व्यक्ति थे। सर्वोच्च सम्मान भारत रत्न से सम्मानित श्री अटल बिहारी वाजपेयी जी एक कुशल राजनीतिज्ञ होने के साथ-साथ एक अच्छे वक्ता भी थे।

                25 दिसंबर 1924 को मध्य प्रदेश के ग्वालियर में जन्में अटल जी ने राजनीति में अपना पहला कदम 1942 में रखा था जबभारत छोड़ो आन्दोलनके दौरान उन्हें उनके बड़े भाई प्रेम जी को

23 दिन के लिए गिरफ्तार किया गया था। अटल जी के नेतृत्व क्षमता का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि वह एनडीए सरकार के पहले प्रधानमंत्री थे जिन्होंने बिना किसी समस्या के 5 साल तक प्रधानमंत्री पद का दायित्व बहुत ही कुशलता के साथ निभाया।

                उनकी प्रसिद्ध कविताओं की कुछ पंक्तियाँ इस प्रकार हैं - ‘बाधाएँ आती हैं आएँ, घिरें प्रलय की घोर घटाएँ, पावों के नीचे अंगारे, सिर पर बरसें यदि ज्वालाएँ, निज हाथों में हँसते-हँसते, आग लगाकर जलना होगा। कदम मिलाकर चलना होगा।’, हार नहीं मानूंगा, रार नहीं ठानूंगा, काल के कपाल पे लिखता मिटाता हूं गीत नया गाता हूं, मैं जी भर जिया, मैं मन से मरूं, लौटकर आऊंगा, कूच से क्यों डरूं?, ‘हे प्रभु! मुझे इतनी ऊँचाई कभी मत देना, गैरों को गले लगा सकूँ, इतनी रूखाई कभी मत देनासे उनकी अटूट संकल्प शक्ति तथा मानवीय उच्च मूल्यों का पता चलता है।

                भले ही 16 अगस्त 2018 में अटल जी इस नाशवान तथा स्थूल देह को छोड़कर विश्वात्मा बनकर परमात्मा में विलीन हो गये। लेकिन उनकी ओजस्वी वाणी तथा महान व्यक्तित्व भारतवासियों सहित विश्ववासियों को युगों-युगों तक सत्य के मार्ग पर एक अटल खोजी की तरह चलते रहो, चलते रहो की निरन्तर प्रेरणा देता रहेगा। चाहे एक विपक्षी नेता की भूमिका हो या चाहे प्रधानमंत्री की भूमिका हो दोनों ही भूमिकाओं में उन्होंने भारतीय राजनीति को परम सर्वोच्चता पर स्थापित किया। संसार में बिरले ही राजनेता ऐसी मिसाल प्रस्तुत कर पाते हैं। जीवन भर अविवाहित रहकर मानवता की सेवा ही उनका एकमात्र ध्येय तथा धर्म था।

                अटल जी पूर्व प्रधानमंत्री श्री मोरारजी देसाई की सरकार में 1977 से 1979 तक विदेश मंत्री रहे। इस दौरान वर्ष 1977 में संयुक्त राष्ट्र अधिवेशन में उन्होंने अत्यन्त ही विश्वव्यापी दृष्टिकोण से ओतप्रोत भाषण दिया था। अटल जी ही पहले विदेश मंत्री थे जिन्होंने संयुक्त राष्ट्र संघ में हिन्दी में भाषण देकर भारत को गौरवान्वित किया था। इस भाषण कुछ अंश इस प्रकार थे - अध्यक्ष महोदय, भारत की वसुधैव कुटुम्बकम् की परिकल्पना बहुत पुरानी है। हमारा इस धारणा में विश्वास रहा है कि सारा संसार एक परिवार है। ... मैं भारत की ओर से इस महासभा को आश्वासन देना चाहता हूं कि हम एक विश्व के आदर्शों की प्राप्ति और मानव कल्याण तथा उसके गौरव के लिए त्याग और बलिदान की बेला में कभी पीछे नहीं रहेंगे। अटल जी ने अपने भाषण की समाप्ति ‘‘जय जगत’’ के जयघोष से की थी। इस विश्वात्मा ने ‘‘जय जगत’’ से अपने भाषण की समाप्ति करके दुनिया को सुखद अहसास कराया कि भारत चाहता है, किसी एक देश की नहीं वरन् सारे विश्व की जीत हो। दुनिया को अटल जी के अंदर भारत की विश्वात्मा के दर्शन हुए थे।

                अटल जी के इस भाषण में भी उनके विश्व शांति का साधक होने का पता चलता हैं। संयुक्त राष्ट्र में अटल बिहारी वाजपेयी का हिंदी में दिया भाषण उस वक्त काफी लोकप्रिय हुआ था। यह पहला मौका था जब संयुक्त राष्ट्र जैसे शान्ति के सबसे बड़े अंतर्राष्ट्रीय मंच पर भारत कीविश्व गुरूकी गरिमा का बोध सारे विश्व को हुआ था। संयुक्त राष्ट्र में उस समय उपस्थित विश्व के 193 सदस्य देशों के प्रतिनिधियों को इतना पसंद आया कि उन्होंने देर तक खड़े होकर भारत की महान संस्कृति के सम्मान में जोरदार तालियां बजाकर अपनी हार्दिक प्रसन्नता प्रकट की थी। इस विहंगम तथा मनोहारी दृश्य ने महात्मा गांधी के इस विचार की सच्चाई को महसूस कराया था कि एक दिन ऐसा अवश्य आयेगा जब दिशा से भटकी मानव जाति सही मार्गदर्शन के लिए भारत की ओर रूख करेगी। 

                अटल जी सर्वाधिक नौ बार सांसद चुने गए थे। वे सबसे लम्बे समय तक सांसद रहे थे। अटल जी विश्व शांति के पुजारी के रूप में भी जाने जाते हैं। उनके द्वारा सारी दुनिया में शांति की स्थापना हेतु कई कदम उठाये गये। अत्यन्त ही सरल स्वभाव वाले अटल जी को 17 अगस्त 1994 को वर्ष के सर्वश्रेष्ठ सांसद के सम्मान से सम्मानित किया गया। उस अवसर पर अटल जी ने अपने भाषण में कहा था कि ‘‘मैं आप सबको हृदय से धन्यवाद देता हूं। मैं प्रयत्न करूगा कि इस सम्मान के लायक अपने आचरण को बनाये रख सकूं। जब कभी मेरे पैर डगमगायें तब ये सम्मान मुझे चेतावनी देता रहे कि इस रास्ते पर डांवाडोल होने की गलती नहीं कर सकते।’’ 

                अटल जी सदैव दल से ऊपर उठकर देशहित के बारे में सोचते, लिखते और बोलते थे। उनकी व्यक्तित्व इस प्रकार का था कि उनकी एक आवाज पर सभी देशवासी एक जुट होकर देशहित के लिये कार्य करने के लिये सदैव उत्साहित रहते थे। उनके भाषण किसी चुम्बक के समान होते थे, जिसको सुनने के लिये लोगों का हुजूम बरबस ही उनकी तरफ खिंचा आता था। विरोधी पक्ष भी अटल जी के धारा प्रवाह और तेजस्वी भाषण का कायल रहा है। अटल जी के भाषण, शालीनता और शब्दों की गरिमा का अद्भुत मिश्रण था।

                अटल व्यक्तित्व वाले हमारे पूर्व प्रधानमंत्री भारत रत्न अटल जी हमेशा अपने देशवासियों के साथ ही सारे विश्व के लोगों के हृदय एवं उनकी यादों में सदैव अमर रहेंगे। हमारा मानना है कि अपने जीवन द्वारा सारे विश्व में अटल जी एक कुशल राजनीतिज्ञ श्रेष्ठ वक्ता के साथ ही विश्व मानवता के सबसे बड़े पुजारी के रूप में अपनी छाप छोड़ने में सफल रहे हैं।            

                वर्तमान में विश्व की दयनीय सच्चाई यह है कि विश्व न्यायालय के तराजू के एक पलड़े में सुरक्षा के नाम पर देशों द्वारा बनाये गये हजारों की संख्या में घातक तथा मानव संहारक परमाणु बमों का भारी जखीरा रखा है तो दूसरे पलड़े में विश्व भर के ढाई अरब बच्चों को सुरक्षित भविष्य है। मानव जाति को तय करना है कि आखिर हमारे शक्तिशाली देशों के माननीय राष्ट्राध्यक्ष विश्व को किस दिशा में ले जाना चाहते हैं? क्या उन्हें मानव सम्यता की यात्रा की अगली मंजिल ठीक-ठीक पता है? इस महाप्रश्न को संसार के प्रत्येक जागरूक नागरिक को समय रहते मानवीय ढंग से बहुत सोच समझकर हल करना है! एक भारतीय तथा विश्व नागरिक होने के नाते मेरे विचार से मानव जाति की अन्तिम आशा विश्व संसद तथा उसके प्रभावशाली विश्व न्यायालय के गठन पर टिकी है। किसी महापुरूष ने कहा है कि अभी नहीं तो फिर कभी नहीं!!! जय जगत।

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