उस नदी के घाट पर ही काफ़िला रह जाएगा

प्रयागराज। साहित्यिक संस्था ‘गुफ़्तगू’ की तरफ से मंगलवार को हरवारा, धूमनगंज में लखनऊ के जिला बेसिक शिक्षा अधिकारी विजय प्रताप सिंह के सम्मान में काव्य गोष्ठी का आयोजन किया गया। जिसकी अध्यक्षता वरिष्ठ कवि शैलेंद्र कपिल ने किया, मुख्य अतिथि बीएसए विजय प्रताप सिंह थे। संचालन इम्तियाज़ अहमद ग़ाज़ी ने किया। सबसे पहले फ़रमूद इलाहाबादी ने हास्य-व्यंग्य की शायरी पेश की-‘यार बीबी को खंडर जब कह दिया तो कह दिया/बरतरफ़ ख़ौफ़ोखतर जब कह दिया तो कह दिया।’ प्रभाशंकर शर्मा की इन पंक्तियों को खूब सराहा गया-‘मेरे अल्फ़ाज़ अदब जो भी हैं, दिल से कहता हूं मेरी मां जाने/उससे अपना जो भी रिश्ता है, दर्द कम होगा, बस दुआ जाने।’ शिबली सना ने कहा-‘याद आ रहा है वह जिसे भूला बैठे/आज दिल पे फिर ग़म के बादल का मौसम है।’ डाॅ. नीलिमा मिश्रा की ग़ज़ल खूब सराही गईं-‘उल्फ़त है बेमआ-नी बिना ऐतबार के/भूले हैं सारे वादे वो अपने क़रार के।’ इम्तियाज़ अहमद ग़ाज़ी के के अशआर यूं थे-‘कुछ सलीक़ा सिखा-गईं ग़ज़लें/फ़र्ज़ अपना निभा गईं ग़ज़लें। इश्क़ो-माशूक़ तक नहीं क़ायम/पूरे गुलशन में छा गईं ग़ज़लें।’ मुख्य अतिथि विजय प्रताप सिंह ने अलग अंदाज़ की शायरी पेश की, -कहा-‘ बस नदी के पार तक ही लोग लेकर आएंगे/ उस नदी के घाट पर ही क़ाफ़िला रह जाएगा।’ कार्यक्रम की अध्यक्षता कर रहे वरिष्ठ कवि शैलेंद्र कपिल की कविता यूं थी-‘कोई सुबह अजनबी नहीं होती/कोई मुलाकात अजनबी नहीं होती/संयोग कर्मों के अनुसार उपस्थित होते, प्रयोगों, प्रयासों से ज़िन्दगी बनती/छनती और संवरती।’ अंत में अफ़सर जमाल ने सबके प्रति धन्यावद ज्ञापित किया।


 

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