संयुक्त राष्ट्र में सुधार का सुझाव: भारत विश्व गुरू बनने की राह पर

‘विश्व संसद’, विश्व सरकार और विश्व न्यायालय के गठन की मांग!

- डाॅ. जगदीश गाँधी

(1) पिछली सदी में बनाई गई संस्थाएं आज की इक्कीसवीं सदी की व्यवस्थाओं के अनुरूप नहीं:-

हिरोशिमा (जापान) में जी-7 के सत्र को संबोधित करते हुए प्रधानमंत्री मोदी ने आश्चर्य जताया कि जब शांति और स्थिरता से जुड़ी चुनौतियों से निपटने के लिए बना संयुक्त राष्ट्र अस्तित्व में है, तो इन पर चर्चा के लिए अलग-अलग मंचों की जरूरत क्यों पड़ती है? इसका विश्लेषण किया जाना चाहिए। यह जरूरी है कि संयुक्त राष्ट्र में सुधारों को लागू किया जाए। इस दौरान प्रधानमंत्री मोदी ने आतंकवाद की परिभाषा को लेकर भी सवाल उठाये। उन्होंने कहा, क्यों संयुक्त राष्ट्र में आतंकवाद की परिभाषा तक को स्वीकार नहीं किया गया? अगर कोई आत्ममंथन करें तो एक बात स्पष्ट हो जाती है कि पिछली सदी में बनाई गई संस्थाएं आज की इक्कीसवीं सदी की व्यवस्थाओं के अनुसार नहीं है। 

(2) रूस-यूक्रेन युद्ध, मानवता और मानवीय मूल्यों का मुद्दा:-

जी-7 सम्मेलन के बाद यूएन महासचिव एंतोनियो गुतारेस ने कहा कि संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में सुधार समय की मांग है। इस सम्मेलन के सत्र को संबोधित करते हुए प्रधानमंत्री मोदी ने कहा कि आज की दुनिया में किसी भी एक क्षेत्र का तनाव का असर समूचे विश्व पर पड़ता है। ऐसे मंे विश्व के सभी देशों को संयुक्त राष्ट्र चार्टर, अंतर्राष्ट्रीय कानून और एक-दूसरे की संप्रभुता और क्षेत्रीय अखंडता का सम्मान करना चाहिए। रूस-यूक्रेन के मध्य चल रहे युद्ध पर बोलते हुए उन्होंने कहा कि वह यूक्रेन में मौजूदा हालात को राजनीति या अर्थव्यवस्था का नहीं, बल्कि मानवता और मानवीय मूल्यों का मुद्दा मानते हैं। 

(3) 21वीं सदी की समस्या का समाधान ‘भारतीय संविधान के अनुच्छेद 51’ में:-

भारत का हमेशा से यही मानना है कि वैश्विक शांति, स्थिरता और समृद्धि हमारा साझा उद्देश्य है। ऐसे में किसी भी तनाव, किसी भी विवाद को बातचीत के जरिये शांतिपूर्वक ढंग से हल किया जाना चाहिए और यही बात हमारे भारतीय संविधान के अनुच्छेद 51 में भी कही गयी है। भारतीय संविधान का अनुच्छेद 51 कहता है कि भारत का गणराज्य एवं उस गणराज्य का प्रत्येक नागरिक (ए) सम्पूर्ण विश्व में शान्ति एवं सारे विश्व की सुरक्षा के लिए प्रयास करेगा। (बी) सारे विश्व में न्यायपूर्ण एवं सम्मानजनक सम्बन्ध स्थापित करेगा। (सी) अन्तर्राष्ट्रीय कानून के प्रति आदर बढ़ाने का प्रयास करेगा तथा (डी) सारे संसार के विभिन्न राष्ट्रों के आपसी झगड़ों को माध्यस्थम द्वारा निपटाने का प्रयत्न करेगा। 

(4)  20वीं सदी सबसे खूनी तथा हिंसा की सदी:-

संयुक्त राष्ट्र संघ के पूर्व महासचिव डा0 कोफी अन्नान ने कहा था कि ‘‘मानव इतिहास में 20वीं सदी सबसे खूनी तथा हिंसा की सदी रही है।’’ 20वीं सदी में विश्व भर में दो महायुद्धों तथा अनेक युद्धों की विनाश लीला का ये सब तण्डाव संकुचित राष्ट्रीयता के कारण हुआ है, जिसके लिए सबसे अधिक दोषी हमारी शिक्षा है। विश्व के सभी देशों के स्कूल अपने-अपने देश के बच्चों को अपने देश से प्रेम करने की शिक्षा तो देते हैं, लेकिन शिक्षा के द्वारा सारे विश्व से प्रेम करना नहीं सिखाते हैं, जबकि नोबेल शान्ति पुरस्कार से सम्मानित नेल्सन मण्डेला ने कहा है कि शिक्षा सबसे शक्तिशाली हथियार है जिससे दुनिया को बदला जा सकता है।

(5)  21वीं सदी की शिक्षा का स्वरूप 20वीं सदी की शिक्षा से भिन्न होना चाहिए। 21वीं सदी की शिक्षा उद्देश्यपूर्ण होनी चाहिए, जिससे सारी मानव जाति से प्रेम करने वाले विश्व नागरिक विकसित हांे। इस सच्चाई को स्वीकार करते हुए सिटी मोन्टेसरी स्कूल (सी.एम.एस.) अपनी स्थापना के समय से ही प्रत्येक बच्चे को बचपन से ‘वसुधैव कुटुम्बकम्’ और जय जगत् की शिक्षा देकर विश्व नागरिक के रूप में तैयार करते हुए उनका विश्वव्यापी दृष्टिकोण विकसित करता आ रहा है। प्रत्येक बालक यह सीख ग्रहण कर रहा है कि यह सम्पूर्ण विश्व हमारा परिवार है और हम सब उसके नागरिक। ऐसे में सी.एम.एस. अपने बच्चों को अपने देश की ‘वसुधैव कुटुम्बकम्’ की महान संस्कृति एवं सभ्यता के अनुरूप बिना किसी भेदभाव के विश्व की सारी मानवजाति के कल्याण के लिए काम करने के लिए उन्हें विगत 64 वर्षों से विश्व नागरिक के रूप में तैयार करता आ रहा है। 

(6) एक नई विश्व व्यवस्था के निर्माण हेतु ‘विश्व के मुख्य न्यायाधीशों का अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलन:-  

सी.एम.एस. एक ओर जहां अपनी अनूठी एवं विशिष्ट शिक्षा के माध्यम से विश्व शांति की स्थापना के लिए प्रयासरत् है, तो वहीं दूसरी ओर विगत 22 वर्षों से भारतीय संविधान के अनुच्छेद 51 पर विश्व के मुख्य न्यायाधीशों के अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलन के माध्यम से विश्व के सभी राष्ट्र प्रमुखों से एक नई विश्व व्यवस्था की मांग भी करता आ रहा है। अभी तक आयोजित 23 अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलनों में विश्व प्रसिद्ध धार्मिक गुरू दलाई लामा के साथ ही 138 देशों के 1429 मुख्य न्यायाधीश, न्यायाधीश एवं राष्ट्र प्रमुख आदि एक मंच पर इकट्ठा होकर विश्व संसद, विश्व सरकार तथा विश्व न्यायालय के गठन हेतु अपना समर्थन दे चुके हैं।   

(7)  ‘विश्व संसद’ के गठन से ही विश्व में ‘एकता’ एवं ‘शान्ति’ की स्थापना संभव है:-

दुर्भाग्यवश आज दुनिया के कई देशों के मध्य लड़ाइयां जारी हैं। इन लड़ाइयांे के कारण विश्व के देश दो भागांे में बंटते जा रहे हैं। वर्तमान में रूस-यूक्रेन युद्ध के साथ ही कई अन्य देशों के मध्य चलने वाले युद्धों को रोक पाने में असमर्थ रहने पर संयुक्त राष्ट्र में बदलाव की मांग भी जोर पकड़ती जा रही है। वर्ष 1969 में नोबल पुरस्कार विजेता महान अर्थशास्त्री जान टिनबेरजेन ने भी कहा था कि ”राष्ट्रीय सरकारें विश्व के समक्ष उपस्थित संकटों का हल अधिक समय तक हल नहीं कर पायेंगी। इन समस्याओं के समाधान के लिए विश्व सरकार आवश्यक है।’’ ऐसे में अब वह समय आ चुका है जबकि भारत को विश्व की एक नई व्यवस्था के निर्माण हेतु विश्व के सभी राष्ट्र प्रमुखों को एक मंच पर लाकर ‘विश्व संसद, विश्व सरकार और विश्व न्यायालय’ के गठन के लिए प्रयास करना चाहिए। 

 

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