ज्योतिषी और दंडी स्वामी एक सत्य घटना

- डी.एस. परिहार

प. बालगोविंद मिश्रा उर्फ पंडित बाबा कन्नौज जिले की छिबरामऊ तहसील मे आजादी के पूर्व विष्णुगढ स्टेट के राज ज्योतिषी और राजवैद्य थे, वे राजा प्रताप सिंह के अति विश्वासपात्र व प्रवास में सदा उनके साथ रहने वाले थे। सन् 1937-38 मे एक बार राजा साहब अपने आठ-दस आदमियों के साथ हरिद्वार की यात्रा पर गये अपनी अस्वस्थता के कारण पंडित जी हरिद्वार ना जा सके राजा साहब काली कमली वाले बाबा की धर्मशाला मे रूके दो दिन घूमने के बाद राजा साहब की भेंट एक दंडी स्वामी से हुयी दंडी स्वामी ने राजा साहब का चेहरा देखकर एक ऐसी भविष्यवाणी कर दी कि राजा साहब साहब दूसरे ही दिन वापस चल दिये और स्टेट पहुँचकर दूसरे ही दिन सबेरे पंडित जी को दरबार मे बुला भेजा राजा साहब ने पंडित जी से कहा, आपने मेरी जन्म कुंडली देखकर ऐसी कोई बात नही बताई जो हरिद्वार में एक दंडी स्वामी ने बताई पंडित जी के पूछने पर राजा साहब ने बताया कि दंडी स्वामी ने बताया कि आप कही भी जाईये तो अपने पुत्र या पुत्री को अवश्य अपने साथ ले जाईये क्यों कि आपको अपने राज्य के बाहर मृत्यृ का योग है। और साथ ही आपकी भारी धन हानि होगी आपकी सारी दौलत भी नष्ट हो जायेगी पंडित जी यह बात सुनकर दंग रह गये उनकी कुंडली महल से मंगवाई गई पंडित जी ने पूरी जांच करने के बाद ऐसी कोई बात नही पाई जिससे दंडी स्वामी की बात का समर्थन हो राजा साहब की 45 साल की उम्र पर एक अल्प संकट अवश्य था जिसमे अभी आठ साल का समय बाकी था राजा साहब के शक्की स्वभाव के कारण पंडित जी ने उनसे इस बारे मे कुछ नही कहा और प्रत्येक प्रकार से उन्हें समझा बुझाकर चिंता मुक्त करने का प्रयास किया, पर इस पर भी राजा साहब उन भविष्यवाणियों के प्रति चिंतित रहे एक शुभ मुहूर्त निकलवा कर उन्होंने बड़े कुंवर विक्रम सिंह को युवराज घोषित कर दिया धीरे-धीरे पांच साल बीत गये अब वे धन हानि की समस्या के लिये उपाय सोचने लगे एक बार राजा साहब तीन दिन तक कोषागार मे ही रहे वे क्या करते रहे कोई जान नही सका इस तरह तीन साल और बीत गये राजा साहब दंडी स्वामी की बात भूल कर सामंाय होने लगे तभी राजा साहब के जीवन मे जंमपत्री के अनुसार 45 साल की उम्र पर एक अल्पायु योग भी आ गया उन्ही दिनों एक बार राजा साहब को उनके समधी और किसनी (जिला मैनपुरी) के जागीरदार ने अपने यहां उत्पाती तेदुंओं का शिकार करने के लिये आमंत्रित किया पंडित जी को कुछ अपशकुन लगा उन्होने दबी जबान से राजा साहब को किसनी जाने से रोकने का प्रयास भी किया पर होनी को कौन टाल सकता है। ना चाहते हुये भी पंडित जी को उनके साथ शिकार पर जाना पड़ा राजा साहब पूरे लाव-लश्कर के साथ वहाँ पहुँचे वहाँ उनका भव्य स्वागत हुआ दूसरे दिन शिकार करना तय हुआ पर दूसरा दिन कभी नही आया रात मे सोते-सोते ही राजा साहब को बड़ी घबराहट हुयी और उनके हाथ-पैर ऐंठने लगे पसीना बहने लगा पंडित जी को तुरंत बुलाया गया उन्होंने रोग की गंभीरता को देखते हुये शीघ्र ही बक्से से चन्द्रोदय निकाली जो मरणासन्न व्यक्ति मे एक घंटे केे लिये प्राणो का संचार करती हैै किंतु उनके दांत इस तरह ंिभंच गये कि औषधि का सेवन नही कराया जा सका और उसी रात उनका देहंात हो गया उनके शव को विष्णुगढ लाकर उनका अंतिम संस्कार किया गया पंडित जी अति दुःखी थे वे राजा साहब के तीस साल से भी अधिक समय के सहयोगी रहे थे। वे दो माह के लिये तीर्थयात्रा पर निकल गये इधर कुंवर विक्रमसिंह राजा बने तीर्थयात्रा से लौटकर जब पंडित जी स्टेट गये तो उन्हे एक आश्चर्यजनक घटना सुनने को मिली राजा प्रताप सिंह के खजाने मे जो सोने की अशर्फियां थी उन पर राजा साहब ने लोहे की पत्तर चढवा कर उन्हें दो बक्से मे रखवा दिया था। नये राजा ने जब बक्सांे मे लोहे के टुकड़े देखे तो उन्हें बड़ा आश्चर्य हुआ राजा के कोषागार मे भला लोहे का क्या काम उन्होंने झल्लाहट मे नौकरों से दोनों बक्से निकलवाये और लोहार बुलवा कर सब लोहा बेच दिया जब राजा माता के को लोहा बेचने का पता चला तो वे अचेत हो गई और होश आने पर कहती हाय सब सोना चला गया इसी हालत मे उनकी मृत्यु हो गई इधर लोहार ने जब लोहा तोड़ा तो उसमे से सोने की अशर्फी निकली वह रातों-रात सारा सोना लेकर निकल गया दंडी स्वामी की बात सच निकली 1947 मे पंडित जी ने बाद मे बताया के चेहरा देखकर भविष्य बताने वाला व्यक्ति दंडी स्वामी नही कोई औघड़ होगा प. बालगोविंद मिश्रा के पुत्र उमेश चन्द्र मिश्र इलाहाबाद से प्रकाशित स्वरसती पत्रिको के 1946 मे संयुक्त संपादक 1935 से 1945  थे। कादम्बिनी, तंत्र विशेषांक, नवम्बर, 1994



 

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