चर राशियों मे बने राजयोग
- डी.एस. परिहार
प्राचीन ज्योतिष गन्थों मे अनेकों ऐसे ग्रहयोगों तथा राजयोगों का वर्णन है जो किसी ग्रह के किसी विशेष राशि मे जाने से या किसी भावेश के किसी खास राशि मे जाने से बनते है। वह राशियांे के अपने गुणों के आधार पर शुभ या अशुभ फल देते है जैसे किसी ग्रह का अपनी उच्च स्वग्रही या मित्र राशि मे जाना या नीच या शत्रु राशि मे जाना आम तौर पर इन योगों मे चर स्थिर या द्विस्वभाव राशियों राशियों मे जाने राशि की दिशा जाति सम या विषम राशि या उच्च स्वग्रही या मित्र राशि मे जाना या नीच या शत्रु राशि के आधार का प्रयोग होता है। राशियों के आधार पर बने कुछ महत्वपर्ण योग इस प्रकार हंै।
1. यदि लग्न या लग्नेश दोनो चर राशियांे मे हो तो जातक को विदेशों से आय होता है। और उसका भागयोदय व वास विदेशों मे होता है।
2. यदि लग्न या लग्नेश दोनो स्थिर राशियांे मे हो तो जातक को अपने देश मे ही समृद्ध होगा।
3. यदि मंगल तृतीयेश और तृतीय भाव तीनों सम स्त्री राशि व स्त्री नवांश मे हो तो जातक की बहने अधिक होगी यदि ये स्त्री राशि व नपंुसक नवांश मे हो तो बहने मर जायें या अल्पायु हो।
4. यदि चतुर्थ भाव मे शुभ ग्रह हो तथा चतुर्थेश शुभ या उच्च राशि मे हो तो माता दीर्घायु होगी।
5. चतुर्थेश शत्रु या नीच राशि मे हो तो जातक की संपति बिक जायेगी।
6. यदि पंचमेश अपनी उच्च राशि मे लग्नेश से युत हो तो संतान अवश्य होगी।
7. यदि पंचम भाव मे मंगल मेष सिंह या मीन राशियों मे हो व गुरू स दृष्ट हो तो संतान अवश्य होगी मंगल कर मित्र राशियां है।
8. यदि सूर्य कालपुरूष की पंचम राशि का स्वामी व संतान कारक त्रिक भाव मे हो तो जातक बच्चा गोद ले।
9. यदि गुरू मीन राशि मे हो तो सुतान अल्प संख्या मे हो और यदि धनु राशि मे हो तो संतान दुबली-पतली होगी कुंभ अथवा कर्क राशि मे हो तो संतान हीन हो यदि अंय कोई शुभ प्रभाव ना हो।
10. यदि शुक्र या चन्द्रमा पंचमेश हो तथा स्त्री राशि (समस्या स्त्री नवांश मे हो तो जातक संतानहीन हों)।
11. यदि पंचमेश पुरूष ग्रह सूर्य मंगल या गुरू हों तथा वह विषम राशि विषम नवंाश मे हो तो पहली संतान पुत्र हो यदि पंचमेश स्त्री ग्रह शुक्र या चन्द्रमा या राहू हो तथा वह स्त्रिी नवंाश मे हो तो या पंचम भाव मे जल राशि हो तो पहली संतान पुत्री हो।
12. यदि शुक्र द्विस्वभाव राशि मे हो तथा शुक्रगत राशि स्वामी ग्रह उच्च का हो तो जातक के कई विवाह हों।
13. यदि सप्तमेश उच्च या स्थिर राशि मे हो तथा शुक्र शुभ ग्रह से दृष्ट हो तो बहु विवाह देगा।
14. यदि सप्तमेश या द्वितीयेश शुक्र के साथ युत होकर वृष या तुला राशि मे जाये या शुक्र शनि की राशि मे हो या नवांश मे शनि युुुुुत चन्द्र से दृष्ट हो तो तो जातक अप्राकृतिक ढंग से काम पूर्ति करें।
15. शुक्र मंगल की राशि मे हो या नवांश मे मंगल युुुुुत हो तो जातक अप्राकृतिक ढंग से काम पूर्ति करें।
16. यदि सप्तमेश मंगल या शनि की राशि मे व सप्तम भाव मे मंगल-शनि हो तो जीवन साथी व्यभिचारी हो।
17. यदि लग्न मे चर राशि हो तथा लग्नेश स्थिर राशि मे हो और लग्नेशगत राशि स्वामी ग्रह लग्न मे हो जैसे कर्क लग्न का स्वामी ग्रह कुंभ राशि मे हो तथा कुंभ का स्वामी ग्रह शनि लग्न मे हो तो जातक दीर्घायु हो (चर लग्न का लग्नेश स्थिर राशि मे जाये और दोनों मे राशि परिवर्तन)।
18. यदि लग्न मे स्थिर राशि हो तथा लग्नेश चर राशि मे हो और लग्नेशगत राशि स्वामी ग्रह लग्न मे हो तो जातक दीर्घायु हो जैसे कुंभ लग्न का स्वामी ग्रह कर्क राशि मे हो तथा कर्क का स्वामी ग्रह चन्द्रमा लग्न मे हो तो जातक दीर्घायु हो।
19. लग्न या अष्ठमेश चर राशि मे हो या उसमे से एक स्थिर राशि मे हो दूसरा द्विस्वभाव राशि मे हो तो जातक दीर्घायु हो।
20. लग्न या अष्ठमेश दोनो चर राशि मे हो व दूसरा द्विस्वभाव राशि मे हो तो जातक की आयु 32 साल हो।
21. लग्न या अष्ठमेश मे से एक चर राशि मे हो या उसमे से एक स्थिर राशि मे हो या दोनों दूसरा द्विस्वभाव राशि मे हो तो जातक मध्यायु हो।
22. दशमेश चर राशि के नवांश मे हो तो जातक यात्राकारी जाब मे हो स्थिर राशि मे हो तो जातक एक ही स्थान पर व्यवसाय करे। दशमेश द्विस्व राशि मे हो तो जातक जाब मे कभी-कभी यात्रा करे।
23. जातक पारिजात के अुनसार यदि शुक्र व चन्द्रमा सम राशि मे हो तथा बुध मंगल व गुरू विषम राशि मे हो और लग्न विषम राशि मे हो तो संतान अवश्य होगी।
24. यदि लग्न व चन्द्र दोनो सम राशि मे हो और उन्हें पुरूष ग्रह देखें तो जातक के पुत्र व पुत्री दोनों हों यदि बुध मंगल व गुरू सम राशि मे हो और लग्न मे भी सम राशि हो तो कन्या व एक पुत्र होंगे।
25. बंगलौर सिद्धान्ती की पुस्तक गोपाल रत्नाकर के अनुसार यदि शुक्र स्थिर राशि मे बुध से युत हो तो दो विवाह होंगे प्रथम पत्नी निःसंतान हो द्वितीय पत्नी से पुत्र हो। यदि शुक्र स्थिर राशि मे केतु से युत या दृष्ट हो तो बच्चे के जंम पर पत्नी मरे। यदि शुक्र स्थिर राशि मे गुरू से युत या दृष्ट हो तो दो विवाह होंगंे प्रथम पत्नी से दो पुत्र हो द्वितीय पत्नी से दो पुित्रयां हो।
26. केन्द्र या त्रिकोण मे राहू शुभ ग्रह युत य दृष्ट हो व राहू, मेष, वृष, कर्क सिंह, मकर वृश्चिक राशि मे हो तो बालारिष्ट योग होगा।
27. कर्क लग्न मे शुक्र लग्न मे मीन मे गुरू वृश्चिक मे शनि मारक होगा।
28. चन्द्र या शुक्र मेष-मकर, कन्या-मिथुन, सिंह मे हो व शनि से दृष्ट तो विवाह ना हो चन्छ्रमा नीच का होकर शनि से दृष्ट हो या शनि की राशि मे चन्छ्रमा सूर्य से युत हो तो अविवाह योग होगा।
29. सूर्य सम राशि मे हो व 7 वें भाव मे मंगल हो या सूर्य सम राशि मे हो व मंगल सेदृष्ट हो तो जातक नपुंसक हो या चन्द्रमा सम राशि मे हो ओर बुध विषम राशि मे हो और दोनो मंगल से दृष्ट हो या लग्न व चन्द्र दोनों विषम राशि मे हो और दोनों मंगल से दृष्ट हो तो जातक नपुंसक हो।
30. मंगल यदि बुध या शनि की राशि मे हो तो मंगल अति द्यातक फल देगा।
31. यदि द्वितीयेश या सप्तमेश स्थिर राशि या स्थिर नवंाश मे हो तो विवाह विलंब होगा।
32. पुरूष की कुंडली मे यदि सप्तमेश व शुक्र सम राशि मे हो तो पत्नी मे स्त्रियोचित गुण होंगें यदि दोनों विषम राशि मे हो तो पत्नी मे मर्दाना गुण होगें।
33. भाव कुतुहलम के अनुसार गुरू व शुक्र नीच के बुध सम राशि मे व सूर्य विषम राशि मे हो तो जातक को संतान बाधा होगी या सभी ग्रह कन्या मीन वृष व वृश्चिक राशि मे स्थित हो या धनु मिथुन सिंह या कुंभ मे हो तो सिंहासन नामक राजयोग बनता है।
34. भाव चन्द्रिका के अनुसार यदि चतुर्थेश व अष्ठमेश चर राशि या चर नवांश मे हो और उन पर द्वादेश की दृष्टि हो या द्वादेश नीच का हो तो जातक सदा भ्रमण करे।
35. चतुर्थ भाव मे चर राशि हो तथा चतुर्थेश भी चर राशि मे हो तथा लग्नेश शनि की चर राशि मकर मे जाये तो जातक सदा भ्रमण करे। या लग्न, लग्नेश सप्तम व स्पतमेश व शुक्र स्थिरराशि मे हो व चन्द्रमा चर राशि मे हो तो जातक के विवाह मे विलंब होगा।
36. राहू लग्न मे कर्क या मेष मे हो तो अरिष्ट भंग योग होता है।
स्त्री जातक के विशेष योगरू-
1. स्त्रिी जंमाक मे लग्न व चन्द्र सम राशि मे हो यदि दोनो विषम राशि मे हो तो स्त्री मे मर्दाना गुण होगें। यदि स्त्री के जमांक मे चन्द्र, बुध, शुक्र निर्बल हो शनि सम राशि मे हो और लग्न मे विषम राशि मे हो तो जातिका स्वभाव व शारीरिक बनावट मे पुरूष के समान हो।
2. यदि लग्न मे जल राशि हो (4, 8, 12) और उसमे जलीय ग्रह चन्द्र या शुक्र या शुभ ग्रह बैठै हांे तो स्त्री मोटी होगी या लग्न या लग्नेश दोनों जलीय राशि मे हो तो उपरोक्त फल प्राप्त हों। यदि लग्न प्रथ्वी तत्व की राशि वृष कन्या व मकर हो और उसमे पृथ्वी तत्व का ग्रह बुध बैठा हो तो तो स्त्री नाटी और मजबूत काठी की होगी यदि लग्न निर्जल राशि 3, 5, व 6 की हो ता जातिका कृश होगी।
सौन्दर्य-सिद्धान्त शिरोमणि के लेखक श्री मनु भाई के अनुसाररू-
यदि लग्न मे सूर्य चन्द्र बुध गुरू शुक्र की राशि हो तथा लग्न पर इन ग्रहों की युति या दृष्टि हो तो जातक या जातिका सुंदर हो या लग्न का सूर्य चन्द्र बुध गुरू शुक्र से संबध हो तथा लग्नेश मिथुन कर्क सिंह कन्या वृष तुला धनु मीन हो जो जातिका सुंदर हो।
स्त्री का रंग-यदि चन्द्रमा सिंह राश्यिा के नवांश मे हो तो रंग श्याम, कर्क का नवांश हो तो गोरा, मेष व वृश्चिक नवांश मे लाल मिश्रित गोरा, मिथुन कन्या मे श्याम धनु मीन मे पीला तुला वृष मे श्याम परन्तु आकर्षक तथा मकर कुंभ मे काला हो।
पति-पत्नी के घर की दूरी व दिशारू- यदि सप्तम भाव मे स्थिर राशि हो तो जीवन साथी का घर उसी जिले मे हो यदि चर राशि हो तो दूर स्थान पर हो
शुक्र से सप्तमेश यदि चर राशि मे मे हो तो जातक का विवाह घर से काफी दूरी स्थान पर होगा मेष राशि हो तो पूर्व तुला पच्छिम कर्क उत्तर व मकर हो तो दक्षिण दिशा मे होगा शुक्र से सप्तमेश यदि स्थिर राशि मे हो तो जातक का विवाह घर से निकट स्थान उसी गांव मोहल्ले या जिले मे होगा शुक्र से सप्तमेश यदि स्विभाव राशि मे मे हो तो जातक का विवाह घर से मध्यम दूरी या संलग्न जिले मे होगा पर होगा मे कर्क का मंगल हो य लग्न मे मेष वृश्चिक मकर या कुंभ राशि हो साथ ही लग्न मे शुक्र चन्द्र युति हो चन्द्र शुक्र पाप ग्रह से दृष्ट हों तो स्त्री चरित्रहीन हो यदि विषम राशि की लग्न हो और सूर्य मंगल व गुरू बली हो तो जातिका चरित्रहीन हो यदि नवरांश मे शुक्र व मंगल मे परस्पर राशि परिवर्तन हो तो जातिका चरित्रहीन हो।
श्री परमानंद शर्मा की पुस्तक महिलायें और ज्योतिष के अनुसार लग्न मे पापराशि गत हो व मंगल सम राशि मे हो तेा 30 वर्ष मे संतान होगी या कर्क का चन्द्रमा पाप ग्रह से युत या दृष्ट हो तो और सूर्य शनि को देखता हो तो 30 साल मे पुत्र की प्राप्ति होगी पंचम भाव मे पाप ग्रह हो या पंचमेश नीच का शुभ ग्रह रहित हो तो जातक संतानहीन हो पंचम भाव मे सिंह राशि मे मंगल व शनि हो और पंचमेश छठे भाव मे हो तो जातक संतानहीन हो यदि वृष या तुला राशि का चन्द्रमा पंचम भाव मे हो या चन्द्र व मंगल द्विस्वभाव राशि मे हो तो प्रथम संतान पुत्र होगा। शुक्र चन्द्र व मंगल तीनो द्विस्वभाव राशि मे हो तो जीवन के पूर्वाद्ध मे संतान देगें। यदि चर राशियों मे अधिक ग्रह हो तो जातक स्वतंत्र व्यवसाय करेगा।
यदि स्त्री जमंाक मे सप्तम भाव मे मंगल का नवांश उदित हो तो गुप्तांग मे रोग देगा यदि पचंम भाव मे पुरूष ग्रह विषम राशि मे हो तो पुत्र अधिक होंगें यदि पचंम भाव मे स्त्री ग्रह सम राशि मे हो तो कन्यायें अधिक होंगी।
यदि लग्न से अष्ठम भाव मे सूर्य या चन्द्रमा स्व ग्रही हो या अष्ठम मे कर्क या सिंह राशि हो उसमे सूर्य या चन्द्रमा युत हो तो जातक संतानहीन हो अष्ठम भाव मे बुध की राशि मिथुन या कन्या हो व उसमे चन्द्र व बुध की युति हो तो जातिका का कन्या हो यदि लग्न मे मंगल या शनि की राशि हो उसमे चन्द्र व शुक्र की युति हो तो स्त्री संतानहीन होगी।
यदि लग्नारूढ से अष्ठम भाव मे चर राशि हो तो जातक की मृत्यु घर से दूर स्थान पर होगी यदि अष्ठम भाव मे स्थिर राशि हो तो जातक की मृत्यु घर मे होगी यदि अष्ठम भाव मे द्विस्वभाव राशि हो तो मृत्यु घर से मध्यम दूरी पर होगी
फाॅरेन्सिक एस्ट्रोलाॅजीरू- अपराध अन्वेषषण ज्योतिष के अनुसार यदि लापता या मृतक या अपराध के शिकार व्यक्ति के जमांक या प्रश्न कुंडली का अष्ठम भाव मे या अष्ठमेश स्थिर स्थिर राशि मे हो तो जातक की हत्या घर मे या घर के निकट पड़ोस मे ही हों जमांक या प्रश्न कुंडली का अष्ठम भाव मे या अष्ठमेश चर राशि मे हो तो जातक की हत्या घर के काफी दूर स्थान पर होंगी यदि जमांक या प्रश्न कुंडली का अष्ठम भाव मे या अष्ठमेश द्विस्वभाव राशि मे हो तो जातक की हत्या मोहल्ले के बाहर या संलग्न जिले मे हो ही हों यदि अष्ठमेश स्थिर राशि वृष राशि मे हो तो जातक का का शव या घटनास्थल मकान के मध्य बिंदू से दक्षिण दिशा मे सिंह मे पूर्व दिशा मे वृश्चिक उत्तर दिशा मे व कुंभ पच्छिम दिशा मे हो यदि चर राशि मे हो तो मेष राशि मे हो तो जातक का का शव या घटनास्थल मकान के पूर्व दिशा मे दूर स्थान पर कर्क उत्तर दिशा मे व तुला पच्छिम दशा मे मकर मे दक्षिण दिशा मे हो यदि द्विस्वभाव राशि मे हो तो मिथुन राशि मे हो तो जातक का का शव या घटनास्थल मकान के पच्छिम दिशा मे मीन हो तो उत्तर दिशा मे व कन्या मे दक्षिण दिशा मे हो धनु मे पूर्व दिशा मे हो।
लाश की स्थिति-जमांक या प्रश्न कुंडली का अष्ठम भाव मे या अष्ठमेश स्थिर राशि मे हो तो गाड़ दी जाये यदि चर कर्क राशि मे हो तो पानी मे बहा दी जाये या मकर दूर स्थान पर फेंक दी जाये मेष हो तो जला दी जाये या अंग भंग कर दी जाये तुला हो तो लटका दी जाये यदि द्विस्वभाव राशि मे हो तो मिथुन राशि मे हो तो अंग-भंग करके बिखरा दी जाये
अभिचार व शत्रु बाधा-षष्ठ भाव की राशि की जाति या षष्ठेश ग्रह की जो जाति होती है। वह ही शत्रु की राशि होती है। बाधक स्थान की राशि की जाति तथा बाधकेश ग्रह की जाति ही तांत्रिक की जाति होती है। सभी जल राशियां 4,8, 12, ब्राह्मण अग्नि राशियां 1, 5, 9, क्षत्रिय सभी पृथ्वी 2, 6, 10 वैश्य तथा सभी वायु राशियां 3,7, 11 शूद्र को बताती हैं। ग्रहों मे शुुक्र व गुरू ब्राह्मण सूर्य व मंगल क्षत्रिय चन्द्रमा वैश्य बुध शूद्र शनि विदेशी जाति की होती है।
षष्ठेश जिस राशि मे जाये उस राशि की वस्तुओं के कारण तथा षष्ठेश गत राशि के स्वामी ग्रह की वस्तुओं के कारण शत्रुता के कारण शत्रु तंत्र प्रयोग करेगा षष्ठेश मंगल की राशि मे जाये तो शत्रुता का कारण भूमि हो बुध की राशि मे सोना या जेवर व्यापारिक स्पर्धा, गुरू हो तो व्यापार व प्रतिष्ठा, शुुक्र की राशि मे जेवर, वस्त्र, चांदी, पशु आदि शनि की राशि मे चांडाल नोकर, अस्त्र शस्त्र के कारण चन्द्रमा की रायिा मे बर्तन, जलीय वस्तुयें कुंआ नहर का पानी सूर्य की राशि मे कुड़ा व फल खेती आदि।
शत्रु की पहचान- प्रश्न लग्न मे ेचर राशि 1, 4, 7, 10 हो तो तंत्र करवाने वाला रिश्तेदार या दूर रहने वाला संबधी हो चर राशि की लग्न मे 11 भाव बाधक होता है जो स्थिर राशि होती है। स्थिर राशि संबधियों को बताती है लग्न मे स्थिर राशि 2, 5, 8, 11 हो तो तंत्र करवाने वाला सदा साथ रहने वाला मित्र हो स्थिर राशि की लग्न मे नवम भाव बाधक होता है जो चर राशि होती है। चर राशि मित्रों को बताती है द्विस्व भाव राशि की लग्न मे तंत्र करवाने वाला कोई अड़ोस पड़ोस वासी अज्ञात या परिचित व्य§िा हो सकता है। बाधक स्थान की राशि की दिशा तथा बाधकेश ग्रह की दिशा ही शत्रु की दिशा होती है। सभी जल राशियां 4,8, 12, ९त्रबाधक स्थान की राशि की जाति तथा बाधकेश ग्रह की जाति ही तांत्रिक की जाति होती है। सभी जल राशियां 4,8, 12, ब्राह्मण अग्नि राशियां 1, 5, 9, क्षत्रिय सभी पृथ्वी 2, 6, 10 वैश्य तथा सभी वायु राशियां 3,7, 11 शूद्र को बताती हैं। बाधक स्थान की राशि की जाति तथा बाधकेश ग्रह की जाति ही तांत्रिक की जाति होती है। सभी जल राशियां 4,8, 12, उत्तर अग्नि राशियां 1, 5, 9, पूर्व सभी पृथ्वी 2, 6, 10 दक्षिण तथा सभी वायु राशियां 3,7, 11 पच्छिम को बताती हैं। बाधकेश चर राशि हो तो तंत्र व तांत्रिक वस्तु आसानी से हट जाता है। द्विस्वभाव राशि के कोशिश करने पर हटता या नष्ट होता हीै। स्थिर राशि मे हो तो नष्ट नही होता है।
मुकदमे मे विजय के योगरू-
1. लग्न मे स्थिर राशि हो तथा चन्द्रमा चर या द्विस्वभाव राशि मे हो।
2. लग्न मे द्विस्वभाव राशि हो तथा चन्द्रमा चर राशि मे हो।
3. लग्न तथा चन्द्रमा दोनो द्विस्वभाव राशि मे हो।
स्थानान्तरण योगरू-
1. जिस ग्रह की महादशा हो उससे 12 वें कोई ग्रह चर राशि मे हो तो उस ग्रह की अंतर दशा मे जाक का स्थानान्तरण हो।
2. चर भावों (1, 4, 7, 10) या चर राशियों मे चर ग्रह सूर्य, चन्द्र बुध व शुक यात्रा टूरिंग जाब या स्थानानन्तरण देता है।
1. यदि लग्न या लग्नेश दोनों चर राशियांे मे हो तो जातक को विदेशों से आय होता है। और उसका भागयोदय व वास विदेशों मे होता है।
2. यदि लग्न या लग्नेश दोनों स्थिर राशियांे मे हो तो जातक को अपने देश मे ही समृद्ध होगा यदि पंचमेश पुरूष ग्रह सूर्य मंगल या गुरू हों तथा वह विषम राशि विषम नवंाश मे हो तो पहली संतान पुत्र हो यदि पंचमेश स्त्री ग्रह शुक्र या चन्द्रमा या राहू हों तथा वह स्त्रिी नवंाश मे हो तो या पंचम भाव मे जल राशि हो तो पहली संतान पुत्री हो यदि लग्न व चन्द्र दोनो सम राशि मे हो और उन्हें पुरूष ग्रह देखें तो जातक के पुत्र व पुत्री दोनों हों यदि बुध मंगल व गुरू सम राशि मे हो और लग्न मे भी सम राशि हो तो कन्या व एक पुत्र होगें यदि लग्न व चन्द्र दोनो सम राशि मे हो और उन्हें पुरूष ग्रह देखें तो जातक के पुत्र व पुत्री दोनों हों यदि बुध मंगल व गुरू सम राशि मे हो और लग्न मे भी सम राशि हो तो कन्या व एक पुत्र होगें।