ज्योतिष द्वारा शत्रु और शत्रुता का ज्ञान

- विशेष संवाददाता 

वैदिक ज्योतिष एवं प्राच्य विद्या शोध संस्थान लखनऊ के तत्वाधान मे 162 वीं मासिक सेमिनार का आयोजन वाराह वाणी ज्योतिष पत्रिका कार्यालय में किया गया। सेमिनार का विषय ज्योतिष द्वारा शत्रु औैर शत्रुता का ज्ञान था। सेमिनार मे डा. डी.एस. परिहार के अलावा ज्योतिष रत्न श्री उदयराज कनौजिया, आचार्य राजेश श्रीवास्तव पं. शिव शंकर त्रिवेदी, प. आनंद एस. त्रिवेदी श्री अनिल कुमार बाजपेई एडवोकेट, पं. जे.पी. शर्मा पूर्व जज एल.बी. उपाध्याय एवं लेक्चरर श्री रंजीत सिंह आदि ज्योतिषियों एवं श्रोताओं ने भाग लिया। पं. आनंद एस. त्रिवेदी ने गोष्ठी मे बताया कि कंुडली के छठे भाव से शत्रु का अध्ययन किया जाता है, षष्ठेश जिस भाव मंे जाता है उस भाव की हानि करता है, अष्ठमेश मित्र राशि मे हो तो आयु की वृद्धि करता है। श्री कनौजिया ने अपने व्यक्तव्य मे बताया कि कुंडली के छठे भाव से शत्रु का अध्ययन करते हैं यदि लग्नेश बलवान हो तो जातक के शत्रु कम होते है। यदि लग्नेश निर्बल हो तो छठे व आठवें भाव के ग्रह व बलवान मंगल जातक पर हमला करता है। गुप्त शत्रु 12 वें भाव से देखते हैैैैैैैैैैैै, किसी भी भाव से तीसरा भाव पहले भाव की वृद्धि करता है। अतः छठे  से तीसरा यानि 8 वां भाव भी शत्रु की वृद्धि करता है। तारा विद्या मे प्रत्ययरि नक्षत्र शत्रुता देता है। प्रत्ययरि, वध व विपत नक्षत्र मे चन्द्रमा के गोचर काल मे शत्रु कष्ट देता है। श्री एल.बी. उपाध्याय ने कहा, छठे भाव से शत्रु देखते हैं विवाह मे मेलापक का विचार लग्न व चन्द्र्र्र दोनों से करना चाहिये आदमी सबसे अधिक अपने पड़ोसियों से ही शत्रुता झेलता है छठे भाव मे बैठा ग्रह अपनी दशा मे या षष्ठेश की दशा मे शत्रु बाधा देगा। 

नाड़ी ज्योतिषी श्री डी.एस. परिहार ने बताया, शत्रुता एक प्राकृतिक घटना है प्रकृति के पंच तत्व भी परस्पर शत्रुता रखते है। संसार के त्रिगुण सम-रज-तम में भी परस्पर शत्रुता होती है। यह गुण कुछ और नही पदार्थो की विभिन्न गतियां है जो संसार के सभी दृश्य-अदृश्य वस्तुओं, जीवों व मानव स्वभाव मे पाई जाती है। सत पेंडुलम गति है। जो सत ग्रहों व द्वि स्वभाव राशियों का गुण है, तम स्थिर  गति है, जैसे लटटूूूूूूूूूूूूूू अपनी धुरी पर नाचता है। यह गति धन व शक्ति को जंम देती है। और तामसिक ग्रहों और स्थिर राशियों की होती है। रज गुण राजसी चर ग्रहों व चर राशियों मे पाई जाती है। सीधी दिशा मे निरंतर चलने को ही चर गति कहते हैं यह गति संसार मे अनेक चक्रों का निर्माण करती है। चंूकि ब्रह्मांड गोल है। अत यह गति तथा आदमी व पदार्थ एक चक्र पूूूूूूूूूूूरे फिर उसी जगह आ जाते है। जन्म-मृत्यु का चक्र भी ऐसा ही एक चक्र है नाड़ी ज्योतिष मे खुले शत्रुता का अध्ययन मंगल व गुप्त शत्रु का अध्ययन राहू से किया जाता है साथ ही किसी ग्रह के अपने शत्रु ग्रहों से योग व ग्रह के शत्रु राशि में जाने के आधार पर किया जाता है। तथा कुछ परस्पर शत्रु ग्रह योेेेेेेेेेेेेग निम्न है। जैसे सूर्य शनि, सूर्य बुध, सूर्य राहू, सूर्य शुक्र, चन्द्र बुध, चन्द्र शनि, चन्द्र राहू, चन्द्र शुक्र, मंगल बुध, मंगल राहू, मंगल शनि, गुरू शुक्र, गुरू राहू, बुध केतु, शनि केतु, शुक्र केतु है। कोई ग्रह अपनी शत्रु राशि मे हो तो भी शत्रु पीड़ा होती है। उपरोक्त ग्रह योग ना केवल जातक बल्कि उनके माता पिता-बाबा, भाई-बहन-पत्नी व अन्य संबधियों के रिश्तेदारे के शत्रुओं के बारेेेेेेेेेे मे भी बताते है। जैमिनी पद्धिति मे छठेेेेेेेेेे भाव की अरूधा से शत्रु बाधा देखते है। षष्ठ पद मे जितने ग्रह हो या शत्रु पद पर जितने ग्रहों की राशि दृष्टि हो जातक के उतने ही शत्रु होते है। शत्रु पद मे गये ग्रह की राशि शत्रु की लग्न होती है। अरूघा लग्न से तृतीय व षष्ठ भाव मे गये पाप ग्रह या पाप ग्रह की राशि जातक को विजय दिलाती है और शुभ ग्रह या उनकी राशि पराजय देती है। यदि दोनों पदो मे शुभ ग्रह हो या उनकी राशि हो तो समझौता होता है तथा शत्रु पद से तृतीय व षष्ठ भाव मे गये पाप ग्रह या पाप ग्रह की राशि शत्रु को विजय दिलाती है। शुभ ग्रह या उनकी  राशि हो तो पराजय देती है। परिहार जी ने पूर्व जन्म संबधी कुछ नाड़ी सूत्रों को भी उजागर किया। जिसके अनुसार गुरू का एक राशि का गोचर एक जन्म को बताता है। जंमस्थ गुरू से 12 वी राशि उसके गत जंम को बताती है। गुरू यदि किसी अंय ग्रह से राशि परिवर्तन करे तो वह ग्रह गुरू से जितनी राशि पीछे होगा जातक इस जंम मे उतने ही पुराने जंम कर्मों का फल भोगगा जैसे गुरू वृष मे तथा शुक्र मीन मे दोनों मे राशि परिवर्तन है। अत जातक इस जंम से पूर्व चैथे जंम के फलों को भोगेगा मनुष्य को कई पापों का फल कई कई जंमों के बाद मिलता है तथा कुछ जघन्य पापों का फल कई कई जन्मों तक भोगना पड़ता है। महाभारत मे भीष्म का बाणों से बिंधना कई जन्म पहले किये उनके पापों का फल था। नाड़ी कुडलियों मे जातक के पापों का कई जन्मों तक भोगने का वर्णन है। जातक को कुछ रोग शत्रुता व कष्ट कई कई जन्मों तक भोगनी पड़ती है। डा. डी.एस. परिहार ने गोष्ठी की अध्यक्षता श्री परिहार ने की गोष्ठी के अंत मे डा. परिहार मे सबको धन्यवाद दिया।


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