सच-झूठ के आइने में पितृ दोष

पुराने समय मे लोग विधिवत 10 वां और तेरहवीं करते थे और खुद भोजन बना कर मृतक संबधी सारी रस्में निभाकर पितृ कर्म करते थे तो पितृ नाराज होकर शाप देते थे और आजकल ढाई दिन मे तेरहवीं हो रही है। क्योंकि कि बहू को नौकरी पर जाना है तो पितृ प्रसन्न है। इससे अलावा जो व्यक्ति धर्म के विरूद्ध आचरण करता है या बुजुर्गों का अपमानित करता है 

- विशेष संवाददाता

वैदिक ज्योतिष एवं प्राच्य विद्या शोध संस्थान, लखनऊ के तत्वाधान मे 163 वीं मासिक सेमिनार का आयोजन वाराह वाणी ज्योतिष पत्रिका कार्यालय में किया गया। सेमिनार का विषय पितृ दोष था। पं. आनंद एस. त्रिवेदी ने गोष्ठी मे बताया कि कंुडली के पंचम भाव तथा गुरू से पितृों का अध्ययन किया जाता है। यदि गुरू व पंचम भाव पाप पीड़ित हो तो तो जातक को पितृदोष लगता है। ज्योतिष रत्न आचार्य राजेश श्रीवास्तव ने बताया कि अगर कुंडली में राहु नौवें स्थान पर स्थित हो, तो यह पितृ दोष बनाता है। लग्न भाव और पांचवें भाव में सूर्य मंगल और शनि हो तो पितृदोष बनाते हैं, अष्टम भाव में गुरू और राहु एक साथ आकर बैठ जाते हैं तो पितृ दोष होता है। जब कुंडली में राहु केंद्र या त्रिकोण में स्थित हो तो पितृदोष बनता है सूर्य, चंद्रमा और लग्नेश का राहु से संबध होत तो पितृदोष बनता है, सूर्य-राहु से युति होना चाहिए और उस पर शनि की दृष्टि होनी चाहिए। या अगर शनि सूर्य के साथ हो या राहु उसे देख रहा हो दूसरा योग अगर पंचम और नवम में उपरोक्त ग्रह योग हो तो पितृ दोष होता है। अगर चन्द्रमा भी शनि राहु से युक्त पीड़ित हो तो जातक को माता नही नानी का दोष लगता है जज श्री एल.बी. उपाध्याय ने कहा, ज्योतिष ग्रन्थों मे पितृ दोष का वर्णन ना के बराबर है। केवल संतान संदर्भ मे ही विभिन्न शापों का उल्लेख मिलता है, एक सूत्र आता है। 

पितृ शापः सुत क्षयः।। 

जमांक मे यदि सूर्य पीड़ित हो तो तो पितृ दोष लगता है। पितृ दोष पीढी दर पीढी चलता है। पूर्वजों के कुछ पापों को जातक को भी भुगतना पड़ता है। इससे मुक्ति के लिये पिता द्वारा हड़पी हुयी जमीन उसे लौटा दें। पिता का लिया हुआ कर्जा लौटा दें पंचम भाव तप है। और नवम भाव सूर्य का धर्म स्थान है। यदि तप भंग हो गया है तो पीड़ा देगा यदि धर्म नष्ट हो गया है तो दुर्भाग्य देगा सूर्य राहू पितृ दोष बनाता है। पितृ दोष के कारण वृक्ष सूख जाता है और गाय बांझ हो जाती है। इससे मुक्ति हेतु गया मे भागवात सुनें नारद संहिता के अनुसार जो बच्चा अपने माता-पिता या भाई के नक्षत्र मे पैदा होता है। उसके माता-पिता या भाई मर जाते है। नाड़ी ज्योतिषी श्री डी.एस. परिहार ने बताया पितृ दोष बाजारू ज्योतिषियों व पंडितों द्वारा निर्मित एक काल्पनिक दोष है, जिसका उदृदेश्य केवल धन उगाही है। आजकल विगत 10-12 साल से पितृ दोष का खूब ढोल बज रहा है काल सर्प की ही भाँति संस्कृत के किसी भी ज्योतिष ग्रन्थों जैसे वृहत पाराशर होरा शास्त्र, वृहत जातक होरासार फलदीपिका मानसागरी जातक भरणम, जातक पारिजात यवन जातक वृहत संहिता जातक तत्व, सारावली जैमिनी सूत्रम गर्ग होरा आदि ग्रन्थों मे पितृ दोष का कोई वर्णन नही है। जो लोग अपने पूर्वजों का अनादर और उन्हें कष्ट देते हैं, इससे दुखी दिवंगत आत्माएं उन्हें शाप देती हैं, इस शाप को ही पितृदोष कहा जाता है अब सवाल है। एक बच्चा जिसके बाबा की मृत्यु उसके जन्म के कई वर्ष पूर्व हो चुकी है। वो कैसे अपने बाबा को कष्ट या उनका अपमान कर सकता है। कई बार पूर्वजों के किये पाप का फल उनके वंशजों को भोगना पड़ता है। यह वंशज की कुंडली में पितृ दोष के रूप में आता है वहीं वंशज अगर पूर्वजों के प्रति अपनी जिम्मेदारियों को पूरा नहीं करते हैं, अपने पितरों का विधिवत अंतिम संस्कार श्राद्ध या तर्पण नहीं करते हैं तो इससे भी पितृ दोष होता है तो पितर नाराज होते हैं और अपने परिवार के सदस्यों का श्राप दे देते हैं। पुराने समय मे लोग विधिवत 10 वां और तेरहवीं करते थे और खुद भोजन बना कर मृतक संबधी सारी रस्में निभाकर पितृ कर्म करते थे तो पितृ नाराज होकर शाप देते थे और आजकल ढाई दिन मे तेरहवीं हो रही है। क्योंकि कि बहू को नौकरी पर जाना है तो पितृ प्रसन्न है। इससे अलावा जो व्यक्ति धर्म के विरूद्ध आचरण करता है या बुजुर्गों का अपमानित करता है। पीपल, नीम और बरगद के पेड़ को काटता है या किसी सांप को मारता है तो उसे पितृदोष का सामना करना पड़ता है एक विद्वान कहते है। जब कोई व्यक्ति अपने से बड़ों क अनादर करता है या फिर हत्या कर देता है तो उसे पितृदोष लगता है, कर्म फल सिद्धान्त के अनुसार मनुष्य को अपने किये गये शुभ-अशुभ फलों को जन्मों-जन्मांतरों तक भोगना पड़ता है। ना कि चाचा-नाना-दादी के कर्र्माे को। पंडितों ने संसार की समस्याओं को पितृ दोष से जोड़ दिया है। जिससे कुंडली के अन्य अशुभ ग्रह योगांे का कोई महत्व नही रह गया है। देवकेरल मे नवम भाव पिता का पंचम भाव व गुरू बाबा का, नवम से चतुर्थ दादी का द्वादश भाव नाना का सप्तम भाव सप्तम भाव चतुर्थ से चतुर्थ नानी का कहा गया है। भृृगु नाड़ी मे राहू बाबा राहू से सप्तम भाव से दादी व केतु नाना व केतु से सप्तम भाव से नानी को देखते हँै। राजा सगर के 60,000 पुत्रों कोे गंगा जी ने ही शांत किया था, जिससे राजा सगर के पुत्रों को मुक्ति मिली थी। गंगा स्नान, गया व अन्य तीर्थो मे श्राद्ध तर्पण करने भागवत श्रवण से शांत होता है। ढोंगी पंडित पितृ दोष नाम पर कई साल पहले मृतक का जिसकी दसवां तेरहवी हो चुकी  है का पुनः श्राद्ध करवाते है, जो धर्म विरूद्ध है। एक आत्मा का पुनः श्राद्ध या मृतक कर्म नही हो सकता है। सेमिनार में डा. डी.एस. परिहार के अलावा ज्योतिष रत्न आचार्य राजेश श्रीवास्तव पं. शिव शंकर त्रिवेदी, प. आनंद एस. त्रिवेदी श्री अनिल कुमार बाजपेई एडवोकेट, प. जे.पी. शर्मा पूर्व जज एल.बी. उपाध्याय एवं लेक्चरर श्री रंजीत सिंह आदि ज्योतिषियों एवं श्रोताओं ने भाग लिया डा. डी.एस. परिहार ने गोष्ठी की अध्यक्षता श्री परिहार ने की गोष्ठी के अंत मे डा परिहार मे सबको धन्यवाद ज्ञापित किया।




 

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