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अपने दोहों से दिल में उतर जाते हैं डाॅ. वीर: सागर

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डाॅ. शैलेष गुप्त ‘वीर’ ने दिल में उतर जाने वाले दोहे लिखे हैं, उन्होंने निर्भिक होकर सबकुछ लिखा है। राजनीति की उथल-पुथल देखकर वह कहते हैं-‘कल तक बैठे साथ थे, आज हुए उस ओर/कितनी मैली हो गई राजनीति की डोर।’ देश की चिंता करते हुए कहते हैं- भीतर हैं घुसपैठिए, सीमाएं हैं बंद/जिंदा हैं जाफर यहां, जिंदा हैं जयचंद।’ इनकी भाषा आमफहम है और शिल्प की कसौटी पर खरे उतरते हैं, वे सही मायने में देश के आधुनिक दोहाकार हैं। समय की बागडोर थामकर चलते हैं और सारी विडंबनाओं पर अपनी बात साफगोई से कहते हैं। यह बात गुफ्तगू द्वारा आयोजित आॅनलाइन साहित्यिक परिचर्चा में वरिष्ठ शायर सागर होशियारपुरी ने डाॅ. शैलेष गुप्त ’वीर’ के दोहों पर प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए कही। डाॅ. इसरार अहमद ने कहा कि डॉ. शैलेश गुप्त वीर के दोहे गागर में सागर की कहावत को चरितार्थ करते हैं। सरल भाषा में जीवन के प्रत्येक पहलू को लेखनी बंद कर अपनी विद्वता का लोहा मनवाने को मजबूर किया है। जिस प्रकार महान कथाकार एवं उपन्यासकार मुंशी प्रेमचंद जी ने हमेशा सच्चाई को ही लेखनी से उजागर किया है ठीक उसी प्रकार आपके दोहो से भी सच्चाई स्पष्ट झलकती है।

अजित पुष्कल मृदुभाषी और साधारण व्यक्तित्व के धनी हैं

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सस्वत सामाजिक साहित्यिक सांस्कृतिक संस्था द्वारा आयोजित ऑनलाइन रंग संवाद में सुप्रसिद्ध नाटककार कवि साहित्यकार उत्तर प्रदेश संगीत नाटक अकैडमी से सम्मानित श्री अजीत पुष्कल जी के जन्म दिवस पर विशेष चर्चा उनके नाटकों के बारे में प्रयागराज के रंग कर्मियों के बीच हुई जिसमें वरिष्ठ रंगकर्मी अजय मुखर्जी ने कहा कि अजित पुष्कल मृदुभाषी और साधारण व्यक्तित्व के धनी हैं सर के नाटकों एवं कविताओं में भी उनका देश की मिट्टी से जुड़ा हो दिखाई देता है आधारशिला के सचिव श्री अजय केसरी ने कहा की पुष्कल सर ने नाटकों में एक अनंत गहराई छुपी हुई है रंग निर्देशिका सुषमा शर्मा ने कहा कि भारतेंदु चरित्र उनके नाटकों पर काम करते समय मैंने विषय की दृष्टि से लोक नाटकों की रोचकता उनके हर नाटकों में देखने को मिलती है वरिष्ठ रंगकर्मी मीना उराव ने कहा कि पुष्कल सर ने अच्छी-अच्छी ज्ञानवर्धक किताबें लिखी है और समाज की परिस्थितियों से वाकिफ कराया है वरिष्ठ रंगकर्मी ऋतंधरा मिश्रा ने अजित पुष्कल की नाटकों में अभिनय किया है तथा अपने संस्था से कथा शकार नाटक का निर्देशन भी किया है जो दर्शकों द्वारा काफी सराही गई और अंत में अजीत प

सजग, समर्थ और संवेदनशील रचनाकार उर्वशी: डा. सरोज सिंह

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महिला काव्य मंच प्रयागराज ईकाई के तत्वावधान मे अध्यक्ष श्रीमती रचना सक्सेना जी के द्वारा आयोजित की जा रही आनलाइन समीक्षात्मक परिचर्चा महिला काव्य मंच पूर्वी उत्तर प्रदेश की अध्यक्षा मंजू पाण्डेय की अध्यक्षता और रचना सक्सेना एवं ऋतन्धरा मिश्रा के संयोजन में, एक सशक्त कवयित्री उर्वशी उपाध्याय जी की कविताओं पर केन्द्रित रहीं अतः मंच की अनेक वरिष्ठ कवित्रियों के मध्य उर्वशी उपाध्याय जी की रचनाऐं चर्चा में बनी रही जिस पर डा. सरोज सिंह, आ. प्रेमा राय जी, आ. मीरा सिन्हा जी, आ. कविता उपाध्याय जी, आ. जया मोहन जी, आ. उमा सहाय जी एवं देवयानी जी ने अपने विचार प्रकट किये। डा. सरोज सिंह जी के अनुसार कवयित्री उर्वशी उपाध्याय प्रेरणा जी बहुत ही सजग, समर्थ और संवेदनशील रचनाकार है उनकी रचनाओं में समसामयिक विसंगतियों का अंकन सफल रुप  में किया गया है। हर रचनाकार को हमेशा अपने सामाजिक सरोकार को रचना में अभिव्यक्त करना एक चुनौती भी है उर्वशी जी ने अपनी कविता मैनें देखा है में सामाजिक सरोकारों का निर्वाह किया है वरिष्ठ कवयित्री आ. प्रेमा राय जी के अनुसार उर्वशी उपाध्याय जी नें व्यक्तिगत एवं सामाजिक विषयों पर

कपिल की कविताओं में प्राकृतिक सौंदर्य की सजीवता: अर्चना

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प्रयागराज। शैलेंद्र कपिल की कविताओं में प्राकृतिक दृश्य का चित्रण कविताओं को सजीवता से भर देता है। विविधताओं से भरी रचनाओं में प्रकृति के प्रति लगाव और निकटता की स्पष्ट झलक दिखती है। जीवन में दिन प्रतिदिन होने वाली बातों को प्रकृति के साथ मेल आपकी कविता में नया रंग भरती है। भविष्य में होने वाले नव परिवर्तन की आकांक्षा को भी प्रकृति के साथ संयोजन कर आकर्षित ढंग से प्रस्तुत किया है। यह बात गुफ्तगू द्वारा आयोजित आॅनलाइन साहित्यिक परिचर्चा में कवयित्री अर्चना जायसवाल ने शैलेंद्र कपिल की कविताओं पर प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए कही। कवयित्री ऋतंधरा मिश्रा ने कहा कि शैलेंद्र कपिल की कविताओं में प्राकृतिक सौंदर्य, प्रेम, बालपन और भी कई आयाम जगह-जगह दिखाई पड़ते हैं। इन्होंने अपनी कविताओं को सुंदर भाव में रचा है, देश प्रेम की भावना से ओतप्रोत मां भारती के प्रति समर्पित इतिहास के पन्नों को बड़ी ही खूबसूरती से करने की कोशिश की है। देश प्रेम तथा मानवता को भी जागृत करने का प्रयास किया है। ऐसी ही कविताओं की आज देश और समाज को जरूरत है। वरिष्ठ गीतकार जमादार धीरज ने कहा कि शैलेन्द्र कपिल की कविताओं में मान

समाज की बेहरत तर्जुमानी करते हैं डाॅ. तूफान: गाजी

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पुलिस अफसर होते हुए भी डाॅ. राकेश मिश्र ‘तूफान’ के अंदर मानवता, कोमलता, संवेदनशीलता और गंभीरता कूट-कूट कर भरी हुई है। यही वजह है कि अपने सख्त ड्यूटी से थोड़ी फुर्सत मिलते ही कलम उठा लेते हैं और अपने दर्द और चिंता शायरी के जरिए कागज उतारना शुरू कर देते हैं, जो शायरी का रूप ले लेती है। इनकी खासियत यह है कि इन्होंने गजल के अरूज और बह्र सीखकर शायरी शुरू की है, जो कई मायने में अन्य लोगों से बेहतर और प्रशंसनीय है। इनके अशआर समाज और पुलिस विभाग को रेखांकित करते हुए एक तरह से दोनों की तर्जुमानी करते हुए कहते हैं-  सियासी हो गए हो तुम लगे करने सलीके से, इधर आवाम की बातें, उधर सरकार की बातें।  बिना किसी संकोच के कहा जा सकता है कि इनकी शायरी आज के समाज और परिवेश में एक तरह से मिसाल हैं। यह बात इम्तियाज अहमद गाजी ने गुफ्तगू की ओर से आयोजित आॅनलाइन परिचर्चा में गाजियाबाद में तैनात डीएसपी डाॅ. राकेश मिश्र ‘तूफान’ की शायरी पर विचार व्यक्त करते हुए कही। शैलेंद्र जय ने कहा कि डॉ. तूफान की गजलें जदीद और इश्किया शायरी का नायाब और खूबसूरत संगम है। समाज के चलन और ढर्रे की ऐसी और इतनी साफगोई से नक्काशी कि जद

पूरे हिन्दुस्तान से रुबरु कराती गजलें: डाॅ. ममता

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प्रयागराज। सुमन ढींगरा दुग्गल की रचनाओं में प्रेम, भाईचारा, संवेदनाएं सभी कुछ हैं। इनकी गजलें में उर्दू, फारसी और हिन्दी का इतना बढ़िया समावेश है कि एक तरह से पूरे हिन्दुस्तान से रुबरु कराती हैं। इनकी भाषा इतनी सरल और सहज है कि सभी के दिल को छू जाए। उनकी शायरी में जो एहसास है वो एक अनुभवी कलम ही लिख सकती है। यह बात नोएडा की मशहूर कवयित्री डाॅ. ममता सरूनाथ ने गुफ्तगू द्वारा आयोजित आॅनलाइन परिचचर्चा में सुमन ढींगरा दुग्गल की गजलों पर प्रतिक्रिया व्यक्त करते कहीं। नरेश महरानी ने कहा कि सुमन ढींगरा दुग्गल आप साहित्य कला की सभी विधाओं का प्रयोग करते हुए शायरी करती हैं, और उसमें सफल भी दिखती हैं। रचनाओं में विविधताओं का संगम करते हुए नायाब गजलें लिखती हैं। इनके कथ्य में भाई चारा प्रेम, सामाजिकता और मोहब्बत का भरपूर समावेश है। जमादार धीरज ने कहा कि सुमन ढींगरा दुग्गल हिन्दी उर्दू मिश्रित भाषा में बहुत संजीदा और बेहतरीन गजलें कहती हैं। अदृश्य की ताकत की तरफ संकेत करते बरसात के मौसम मंे  धरती के सौन्दर्य का मनोरम चित्र इस शेर में देखिए-‘गुलों के रंग आखिर कौन भरता है बहारों में/चुनर बरसात मे धरती

प्रैक्टिकल मौजू पर शायरी करते हैं बुद्धिसेन: डाॅ. समर

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जिस तरह चांद और तारों की रोशनी किसी की मोहताज नहीं, उसी तरह शायर बुद्धिसेन शर्मा किसी भी परिचय के मोहताज नहीं, इनकी शायरी में तमाम खूबसुरत पहलू आपको साफ तौर पर नजर आयेंगे। उनकी शायरी बिल्कुल आज के हालात को छूकर गुजरती है। वे प्रैक्टिकल मौजू पर शायरी करते हैं। उनका अंदाज-बयान खूबसूरत हैं, जिसकी वजह से सुनने और पढ़ने वाले पर फौरन असर छोडने में कामयाब हो जाते हैं। यह बात कुशीनगर के मशहूर शायर डाॅ. इम्तियाज समर ने गुफ्तगू द्वारा आयोजित आॅनलाइन साहित्यिक परिचर्चा में बुद्धिसेन शर्मा की शायरी पर विचार व्यक्त करते हुए कही। वरिष्ठ शायर सागर होशियारपुरी ने कहा कि बुद्धिसेन शर्मा गंगा जमुनी भाषा में शायरी करते हैं और उर्दू के अल्फाज में इजाफत के इस्तेमाल से परहेज करते हैं ताकि भाषा जटिल न हो। उनकी शायरी में दर्द के एहसास और मोहब्ब्त की खुश्बू आती है, वहीं इंसान के किरदार में गिरावट और दोस्ती में बेवफाई की जिक्र दिखता है। प्रकृति और अन्य विषयों पर अशआर करते हैं जो सुनने वालों के दिलों में उतर जाता है। इश्क सुल्तानपुरी के मुताबिक वर्तमान में साहित्य की हर विधा के मर्मज्ञ और सार्थक गजलों के कारीगर ब

हिन्दुस्तानी गजल के संसार को रौशन करेंगी अतिया: इश्क

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प्रयागराज। अतिया नूर जोश और जज्बे के साथ इल्मो-अदब की बेहतरीन रवायत को आगे बढ़ाते हुए, शायरी के उस्तादों की मानिंद शायरी कर रही हैं। इन्होंने आमफहम जबान का बेहतर इस्तेमाल किया है। हिंदी और उर्दू में एकत्व स्थापित करके हिंदुस्तानी जबान में व्याकरण सम्मत शायरी की है। अपने परिपक्व लेखन से आपने भविष्य में बड़े रचनाकार होने का विश्वास दिलाया है। आपकी शायरी आने वाले दिनों में हिंदुस्तानी गजल के संसार को रौशन करेगी। यह बात इश्क सुल्तानपुरी ने गुफ्तगू द्वारा आयोजित आॅनलाइन परिचर्चा में अतिया नूर के गजल संग्रह ‘पत्थर के फूल’ पर प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए कही। कुशीनगर के शायर डाॅ. इम्तियाज समर ने कहा कि अतिया नूर की शायरी की उनकी दिल की तर्जुमान है। वो दिल में उतरती है, खलिश पैदा करती हैं और सोचने पर मजबूर करती है। शऊर को झंझोड़ती है और अहसास को छूकर गुजरती हैं। इनकी फिक्री तौर पर उन सच्चाइयों और तजुर्बों से असरात कुबूल करती है जहां जिन्दगी सांस लेती है।  मासूम रजा राशदी ने कहा कि अहदे हाजिर की शायरात में जो तगज्जुल, जो नगमगी, जो संजीदगी और जो निस्वानियत मोहतरमा अतिया नूर साहिबा की शायरी में पाई ज

सच्चा मित्र

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शक्कर अधिक प्रयोग किया जा सकता है, लेकिन नमक सीमित ही प्रयोग किया जा सकता है, इसलिए मित्र सोच-समझकर बनाना चाहिए। ऐसा माना जाता है कि एक मित्र बहुत भग्यशाली को मिलता है, जबकि डेढ़ मित्र बनता ही नहीं। मित्र का स्थान सर्वोच्च होता क्योंकि सच्चे मित्र को गरीबी-अमीरी से कोई मतलब नहीं होता, जैसे कृष्ण-सुदामा।

अपनी शायरी से दिल में उतर जाते हैं गाजी: शबाना आजमी

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इम्तियाज गाजी की शायरी में उनकी मिट्टी की महक आती है और इसलिए वो लोगों के दिल में उतर जाते हैं। उनकी शायरी में बेबाकी और सच्चाई कूट-कूटकर भरी है। आज ऐसी ही शायरी की जरूरत है। यह बात मशहूर फिल्म अभिनेत्री शबाना आजमी ने गुफ्तगू की ओर आयोजि ऑनलाइन परिचर्चा में इम्तियाज अहमद गाजी की शायरी पर प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए कही। मशहूर साहित्यकार ममता कालिया ने कहा कि इम्तियाज गाजी के पास कुछ यादगार नज्में और गजलें हैं। वे वक्त की तल्खियों को परे सरका कर, अमन और सुकून की, संग साथ और मुहब्बत की बात करते हैं-‘इस जहां में सभी मुसाफिर हैंध्सौ बरस का सामान है फिर भी।‘ या ‘आज साहिल पे इतनी खुशबू है/कोई चेहरे को मल रहा है क्या।’ जैसे अशआर जेहन में देर तक बने रहते हैं। गाजी यह महसूस करते हैं कि-‘तुम जिसे जिन्दगी नहीं कहते/हम उसे मौत भी नहीं कहते।’ इम्तियाज एक मुश्किल समय का न सिर्फ सामना करते हैं वरन उसे आसान बनाने के लिए लिखते हैं। समाज की पड़ताल करते हैं मगर सियासत के ज्यादा नजदीक नहीं जाते। मशहूर गीतकार यश मालवीय के मुताबिक इम्तियाज अहमद गाजी न केवल एक सतर्क, सजग एवं जागरूक एडिटर हैं, वरन हिंदुस्तानी

दयाशंकर प्रसाद की कविताओं को पढ़ते-पढ़ते विलियम वौड्सवर्थ की याद ताजा हो जाती है -मासूम रजा राशदी

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दयाशंकर प्रसाद की कविताओं को पढ़ते-पढ़ते कब पाठक प्रकृति की गोद में चला जाता है ये पता ही नहीं चलता, ये जब लिखते हैं तो ऐसा लगता है कि कलम ने कूंची का और कागज ने कैनवस का रूप धारण कर लिया हो और रंगों के रूप में पूरा इन्द्रधनुष कैनवस पर उतर आया हो। दयाशंकर प्रसाद जी की कविताओं को पढ़ते-पढ़ते विलियम वौड्सवर्थ की याद ताजा हो जाती है। यह बात मासूम रज़ा राशदी ने गुफ़्तगू की ओर से आयोजित आॅनलाइन परिचर्चा में दयाशंकर प्रसाद के काव्य संग्रह ‘भोर की बेला’ पर विचार व्यक्त करते हुए कहीं।  अर्चना जायसवाल ने कहा कि दयाशंकर प्रसाद की कविताओं में प्रकृति प्रेम एवं रचनाओं में नवीनता का समावेश है। सुंदर एवं सरल भाषा मे रचित हैं। भोर की बेला सांझ की बेला, बादल चले गये ,कुछ तुम बदलो कुछ हम बदले, बचपन के दिन, मेरे गांव मे नदियां बहती थी आदि शीर्षक की कविताएं बेहद पठनीय और मार्मिक हैं। इनकी कविताएं मन मोहने वाली, सजीवता का एहसास कराती हैं।  जमादार धीरज ने कहा कि दयाशंकर प्रसाद प्राकृतिक या कोई भी दृश्य देखते हैं तो अपने ढंग से कविता का सृजन कर देते हैं, पर पाठक का विषय कुछ अधिक की अपेक्षा करता है जहां सामान्यतः

सम्पदा की कविताओं में देश प्रेम की बयार: मीरा सिन्हा

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महिला काव्य मंच प्रयागराज इकाई के तत्वावधान में आयोजित आनलाइन समीक्षात्मक परिचर्चा के नगर की वरिष्ठ महिला रचनाकारों ने भाग लिया। इस कार्यक्रम में प्रयागराज की सुपरिचित कवियत्री ’सम्पदा मिश्रा’ के काव्य संग्रह 1.बस जीत हमारी हो। 2.देश तुम्हें पुकार रहा में मौजूद कविताओं के विभिन्न पहलुओं पर कवयित्रियों के मध्य चर्चा की गई। वरिष्ठ रचनाकार मीरा सिन्हा बताया कि किसी रचनाकार के जीवन का संघर्ष उसके काव्य में कहीं न कहीं दिखता है। सम्पदा की कविताएं इसे जीवन के हर पक्ष के साथ बहुत खूबसूरती से प्रस्तुत करती हैं। सम्पदा स्त्री के जीवन भर चलने वाले संघर्ष और विजय की बात करती हैं। मानव को सूर्य बताते हुए एक ओर तो उसके संघर्ष की  बात करती हैं तो वहीं उसकी चमक से उसके विजय को भी रेखांकित करती हैं। उमा सहाय ने विचार व्यक्त करते हुए कहा कि इनकी कविता एक ओर देश प्रेम, राष्ट्र प्रेम की बात करते हुए ओज से परिपूर्ण है तो वहीं बेटियों की बात कहते हुए संवेदनशील भी है। भाषा सरल और सुगम होने के कारण सर्वग्राह्य है। कवियित्री में भविष्य में रचनात्मकता की प्रबल संभावनाएं हैं।  वरिष्ठ कवियत्री कविता उपाध्याय ने

विजय की गजलों में आम इंसान का दर्द: प्रभाशंकर

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विजय प्रताप सिंह की गजलें सिर्फ हुस्नो-शबाब तक सीमित नहीं है, बल्कि इनमें आमजन की समस्याओं पर जद्दोजहद करते हुए जज्बात दिखाई पड़ते हंै। शब्दों को इतने सलीके से पिरोया गया है कि सब मिलकर मोतियों की माला बन गए हैं। शब्द भाषा भाव और शिल्प सभी ने मिलकर गजलों का एक अच्छा फ्रेम तैयार किया है। एक बड़े शायर के सीने में सदी का दर्द छुपा होता है। पता नहीं क्यों आपसे आशा है कि यह दर्द आपकी क्रांतिकारी कलम से आने वाले समय में लिपिबद्ध होकर निकलेगा। यह बात गुफ्तगू द्वारा आयोजित ऑनलाइन साहित्यिक परिचर्चा में मैनपुरी जिले के बीएसए विजय प्रतापसिंह की गजलों पर प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए प्रभाशंकर शर्मा ने कही। इश्क सुल्तानपुरी ने कहा कि विजय प्रताप सिंह की रचनाएं हिंदुस्तानी गजल की रवायतों को निबाहने के साथ ही साथ वर्तमान परिवेश और मानव जीवन की परिस्थितियों और संघर्षों को समेटे हुए हैं। एक नए कलेवर में विजय सिंह गजलें कह रहे हैं, शुरुआती दौर की मशक्कतों के अलावा गजलों में पूरी रवानी और ताजगी मौजूद है। दयाशंकर प्रसाद ने कहा कि विजय की गजलों को पढ़ने के बाद ऐसा लगा जैसे यह उनके आसपास की धड़कनों की अभिव्यक्त

और आज दूरियाँ प्यार और परवाह की परिचायक है

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ना तुम घर से निकलना  ना हम कही दूर’ जाएंगे अपने अपने हिस्से की दोस्ती निभाएंगें बहुत अच्छा लगेगा जिंदगी का ये सफर आप वहाँ से याद करना  हम यहाँ से मुस्कुरायेंगे समय और हालात कभी भी  कहीं भी बदल सकते है कल तक निकटता प्रेम का प्रतीक थी और आज दूरियाँ प्यार और परवाह की परिचायक है !!ऊं सनातनाय नमः!! !!जय श्री कृष्णा!!

रूमानियत और रूहानियत से लबरेज है अना की शायरी

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अना इलाहाबादी की शायरी की संजीदगी हर ग़ज़ल में नज़र आती है। इनके कलाम रूमानियत और रूहानियत से लबरेज हैं। रूमानियत भी रूहानियत के अनुभवों से ही प्रकट होती है, वैसे भी एक साहित्यकार अपने दिल के सबसे ज्यादा करीब होता है और दिल ही तो उस परम सत्ता का निवास है जहां से शब्द रूपी मोती प्रस्फुटित होते हैं। अना की शायरी का शिल्प सौंदर्य बहुत मजबूत है। ग़ज़ल में लयात्मकता इतनी है कि शब्द जैसे फिसलते से लगते हैं, आपके कलाम का मजमुआ एक बेहतरीन कृति है जो आपकी फिक्रो-फन और प्रतिभा का परिचायक है। यह बात गुफ़्तगू द्वारा आयोजित आॅनलाइन साहित्यिक परिचर्चा के दौरान अना इलाहाबाद के ग़ज़ल संग्रह ‘दीवान-ए-अना’ पर विचार व्यक्त करते हुए मनमोहन सिंह तन्हा ने कही। नरेश महरानी ने कहा कि अनामिका पांडेय उर्फ़ अना इलाहाबादी अपनी शायरी में प्रत्येक विषय को बड़ी ही संजीदगी से चित्रण करती हैं, जिसमें उनकी सशक्त शिल्प शैली उभरकर सामने आती है। गजल की बारिकियों पर उनकी अच्छी पकड़ है। उन्होंने सरल शब्दों को विचरण कराते हुए रूमानियत और रुहानियत के संगम को परिलक्षित किया है। रचना सक्सेना ने कहा कि अना इलाहाबादी ने जीवन के विभिन्न रं

अर्चना के काव्य में है निश्छल हृदय की पवित्रता: मानव

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अर्चना जायसवाल ‘सरताज’ का काव्य, मुक्त हृदय के स्वच्छंद उद्गार हैं। जिसमें बनावटीपन लेशमात्र भी नहीं हैं। इनके काव्य में निश्छल हृदय की पवित्रता बिलकुल आईने की तरह साफ प्रतिबिम्बित होती है। इन्होंने अपने काव्य में सार्वभौमिक प्रेम की आवाज को बुलन्द किया है। जो जाति, धर्म, मजहब, लिंग, भाषा आदि सीमाओ से परे हो। साथ ही एक बड़ी बात बताने की कोशिश की है,कि मात्र ’प्रेम’ ही ऐसी शक्ति है, जो दुनिया की हर दीवार को गिराकर इंसान को इन्सान बनाये रख सकती है। यह बात गुफ्तगू द्वारा आयोजित ऑनलाइन साहित्यिक परिचर्चा में अनिल मानव ने अर्चना जायसवाल ‘सरताज’ की कविताओं पर विचार व्यक्त करने हुए कहा। जमादार धीरज ने कहा कि कवयित्री अर्चना जायसवाल प्यार और मानवता के सेतु बनाकर संसार से भेदभाव और घृणा मिटा कर सर्वत्र मैत्री भाव और भातृत्व की पवित्रत भावना के प्रसार की पवित्र कल्पना करती हैं। वह कहती हैं कि-‘ चलो एक बर फिर से एक सेतु बनाते हैं/परंपरा और संस्कृति की सीढ़ी पर पीढ़ी दर पीढ़ी पहुंचाते हैं।’ साथ ही कांटो से मित्रता कर साहस सौंदर्य और सामंजस्य के पाठ पढ़ने की तरफ भी संकेत करती हैं। भाषा और शिल्प सामान्य

लाॅकडाउन में हो रहे कई सकारात्मक काम

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प्रयागराज। कोरोना संक्रमण के कारण लाॅकडाउन लागू किए जाने के बाद से भारत समेत लगभग पूरी दुनिया में नई संस्कृति विकसित होती दिख रही है। लोग तरह-तरह के तरीके इजाद करते हुए अपने काम कर रहे हैं। लाॅकडाउन के कारण वायु और जल प्रदूषण में भी कमी आयी है, वातावरण शुद्ध हो रहा है। ये बात और है कि रोज कमाने-खाने वालों को बड़ी परेशानी का सामना करना पड़ रहा है, इसमें तो कोई शक नहीं है, तरह-तरह से इनकी मदद करने की कोशिश की जा रही है, मगर यह मदद पर्याप्त नहीं है। कुछ इलाकों में भूखमरी की समस्या भी सामने आ सकती है, इससे समाज और देश कैसे निपटेगा, यह सवाल सामने मुंह बाये खड़ा है। सरकार अपने तौर पर इसके लिए कोशिश भी करने में जुट गई है। लेकिन इन सबके बीच कई क्षेत्रों में नई संस्कृति विकसित हो रही है लोग अलग-अलग तरीकों से अपने कार्य करने का प्रयास कर रहे हंै। ऐसे कार्य सराहनीय और उल्लेखनीय हैं, जिन्हें देखने-सुनने पर प्रसन्नता हो रही है। शिक्षा के मामले में आॅनलाइन क्लासेज कारगर हो रहे हैं। जिन संस्थानों में जहां पहले से ही आॅलाइन क्लासेज चल रहे थे, उनके क्लास की प्रासंगिकता बढ़ने के साथ ही इनके छात्रों की संख्य

फिराक और चकबस्त की रवायात के शायर हैं सागर: यश मालवीय

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सागर साहब जबान के शायर हैं। वह अपनी शायरी में इस बात को भी झुठलाते हैं कि उर्दू सिर्फ मुसलमानों की और हिंदी सिर्फ हिंदुओं की भाषा है। उनकी जबान का रंग पूरी तौर से हिंदुस्तानी है, और इस अर्थ में उन्हें फिराक साहब, चकबस्त और कृष्ण बिहारी नूर की रवायत पर अमल करने वाला शायर कहा जा सकता है। यह बात मशहूर गीतकार यश मालवीय ने गुफ्तगू द्वारा आयोजि ऑनलाइन परिचर्चा में सागर होशियारपुरी की पुस्तक ‘खुश्बू का चिराग’ का विमोचन करते हुए कहा। मैनपुरी जिले के बीएसए विजय प्रताप सिंह ने कहा कि सागर साहब की सारी गजलें अच्छी लगीं। भाव, शिल्प और भाषा सभी मानकों पर। जैसा कि भाषा के संबंध में यश मालवीय ने जिक्र किया है कि सागर साहब की गजलों की भाषा हिन्दुस्तानी है। यानी जिसमें बहुत खूबसूरती से हिंदी उर्दू के आम जबान के शब्द पिरो दिए गए हैं। कई बार बहुत सादी जबान में बहुत बड़ी बात कह दी जाती है, लेकिन उसका  अर्थ दूर तक जाता है। सागर साहब की गजलें इसका प्रमाण हैं। अतिया नूर ने कहा गंगा-जमुनी तहजीब की अनमोल धरोहर सागर होशियारपुरी एक बेमिसाल, बाकमाल शायर हैं। उनके बारे में लिखना, कलम चलाना बहुत मुश्किल काम है, बेहद

समीक्षात्मक परिचर्चा में छाईं सरिता श्रीवास्तव की रचनाएं

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महिला काव्य मंच प्रयागराज इकाई के तत्वावधान में आनलाइन समीक्षात्मक परिचर्चा का आयोजन किया गया। इस कार्यक्रम में प्रयागराज के मंचों की सुपरिचित कवियत्री सरिता श्रीवास्तव के दोहा संकलन सरिता सतसई और कविताओं के विभिन्न पहलुओं पर प्रयागराज की वरिष्ठ कवयित्रियों के मध्य चर्चा की गई। वीर रस, व्यंग्यात्मक काव्य लेखन में रुचि लेने वाली सरिता श्रीवास्तव कविताओं में भाषा प्रवाह और शब्दों में ओज के मुखर भाव स्पष्ट दिखाई देते हैं। उच्च शिक्षा से जुड़ी सरिता श्रीवास्तव काव्य के हर क्षेत्र में मजबूत दखल रखती हैं। उक्त विचार व्यक्त करते हुए वरिष्ठ कवियत्री उमा सहाय ने सरिता श्रीवास्तव की कविता मे मानवीय पक्ष का खूबसूरत चित्रण महसूस किया। उनका कहना है कि क्रोध जैसे मानवीय संवेगों को कवियत्री को एकांगी न रख कर समाधान तक पहुंचाने की आवश्यकता है। वरिष्ठ कवियत्री कविता उपाध्याय के अनुसार सरिता एक समर्थ कवियत्री के रुप में अपना स्थान बना रही है। सरल भाषा और सुगम विषय वस्तु के कारण उनकी कविताएं ग्राह्य हैं। वरिष्ठ साहित्यकार प्रेमा राय को कवियत्री की कविताओं में प्रकृति, देश प्रेम मानवीय मूल्यों सहित भौतिकता

ऋतंधरा मिश्रा की रचनाओं में आशावाद के साथ-साथ जीवन के यथार्थ के स्पष्ट दर्शन होते हैं

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प्रयागराज। विभिन्न प्रतिभाओं की धनी ऋतंधरा मिश्रा की रचनाओं में आशावाद के साथ-साथ जीवन के यथार्थ के स्पष्ट दर्शन होते हैं। सामाजिक मुद्दों के साथ ही परिवार श्रृंगार को अपनी रचनाओं में शामिल करना एक संवेदनशील साहित्यकार को स्वयं में दूसरे साहित्यकार से अलग स्थापित करता है। मां के प्रति समर्पण एवं मां की छत्रछाया में संतानों का सुरक्षित महसूस करना इस का सजीव चित्रण मार्मिक है। कवि द्वारा स्पष्ट किया गया है कि जीवन में सफलता प्राप्त करने के लिए दृढ़ निश्चय होना अति आवश्यक है। यह विचार महक जौनपुरी कवयित्री ने शाश्वत साहित्यिक सामाजिक सांस्कृतिक संस्था द्वारा आयोजित ऑनलाइन साहित्यिक परिचर्चा में ऋतंधरा मिश्रा की कविताओं और काव्य संग्रह जीवन रस पर व्यक्त किया। मुनेद्र नाथ श्रीवास्तव ने कहा कि ऋतंधरा की रचनाओं में हिंदी व उर्दू साहित्य से समृद्ध होने की झलक मिलती है, वे गजल लेखन में भी दखल रखती हैं। मुखौटा शीर्षक की कविता रंगमंच की याद दिलाता है, काव्य का परिचायक होता प्रतीत होता है। कवित्री प्रतिभा  मिश्रा ने कहा कि ऋतंधरा मिश्रा जी चेहरे पर मुस्कान बेहद शांत, और, शालीन व्यक्तिव रंगमंच पर भी