दीर्घजीवी हैं नीलिमा मिश्रा की गजलें: विजय
डाॅ. नीलिमा मिश्रा की पंक्तियां हैं-‘धरम के ग्रंथ पढ़ने की नहीं चाहत रही कोई, सुना है होम करने से भी अपने हाथ जलते हैं।’ निश्चित तौर पर धर्म और विज्ञान का बहुत सम्हल के , सही और मानवता के हित में उपयोग करना आवश्यक होता है। कोई रचना जब अपने आप में अनेक भावों और अर्थों का समावेश करती है, जब पाठक अपने मनोभाव और मनःस्थिति के अनुसार उसकी व्याख्या कर उससे कुछ पाता है या आनंदित होता है, तो ऐसी रचना दीर्घजीवी होती हंै। विज्ञान व्रत जी का एक शेर याद आ रहा है, ‘गद्दी का वारिस लौटा था, राम कहां लौटे थे वन से।’ इन पंक्तियों को पढ़ते ही राम के वनवास तथा उसके बाद का जैसे सारा इतिहास आंखो के सामने कौंध जाता है। यह बात गुफ्तगू की ओर आयोजित ऑनलाइन परिचर्चा परिचर्चा में मैनपुरी के जिला बेसिक शिक्षा अधिकारी विजय प्रताप सिंह ने डाॅ. नीलिमा मिश्रा की गजलों पर विचार व्यक्त करते हुए कहा जमादार धीरज ने कहा कि डॉ. नीलिमा मिश्रा अपने सुगठित अशआर के माध्यम से प्यार आध्यात्म और राष्ट्रभक्ति की त्रिवेणी बहाती हुई जीवन के कठिन यथार्थ के प्रति भी उतनी ही सजग हैं सुख और दुख के अनवरत चक्र से चिंतित होकर लिखती हैं। देश