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दीर्घजीवी हैं नीलिमा मिश्रा की गजलें: विजय

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डाॅ. नीलिमा मिश्रा की पंक्तियां हैं-‘धरम के ग्रंथ पढ़ने की नहीं चाहत रही कोई, सुना है होम करने से भी अपने हाथ जलते हैं।’ निश्चित तौर पर धर्म और विज्ञान का बहुत सम्हल के , सही और मानवता के हित में उपयोग करना आवश्यक होता है। कोई रचना जब अपने आप में अनेक भावों और अर्थों का समावेश करती है, जब पाठक अपने मनोभाव और मनःस्थिति के अनुसार उसकी व्याख्या कर उससे कुछ पाता है या आनंदित होता है, तो ऐसी रचना दीर्घजीवी होती हंै। विज्ञान व्रत जी का एक शेर याद आ रहा है, ‘गद्दी का वारिस लौटा था, राम कहां लौटे थे वन से।’ इन पंक्तियों को पढ़ते ही राम के वनवास तथा उसके बाद का जैसे सारा इतिहास आंखो के सामने कौंध जाता है। यह बात गुफ्तगू की ओर आयोजित ऑनलाइन परिचर्चा परिचर्चा में मैनपुरी के जिला बेसिक शिक्षा अधिकारी विजय प्रताप सिंह ने डाॅ. नीलिमा मिश्रा की गजलों पर विचार व्यक्त करते हुए कहा जमादार धीरज ने कहा कि डॉ. नीलिमा मिश्रा अपने सुगठित अशआर के माध्यम से प्यार आध्यात्म और राष्ट्रभक्ति की त्रिवेणी बहाती हुई जीवन के कठिन यथार्थ  के प्रति भी उतनी ही सजग हैं सुख और दुख के अनवरत चक्र से चिंतित होकर लिखती हैं। देश

एकता व सहयोग से करें कोरोना का मुकाबला

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सिटी मोन्टेसरी स्कूल, लखनऊ के संस्थापक व प्रख्यात शिक्षाविद् डा. जगदीश गाँधी ने समस्त प्रदेशवासियों से अपील की है कि हम सभी एकता, सहयोग व सहकार की भावना को आत्मसात कर कोरोना का मुकाबला करें एवं इस वैश्विक महामारी को परास्त करने हेतु सब मिलकर पूरी तरह से लाॅकडाउन का पालन करें। सभी प्रदेशवासियों के सामूहिक सहयोग से ही इस महामारी से निजात पाई जा सकती है क्योंकि बीमारी कभी जाति-धर्म देखकर नहीं आती, यह कभी भी और कहीं भी किसी को भी अपनी चपेट में ले जा सकती है। अतः कोरोना महामारी के कठिन दौर में जाति-धर्म की भावना को परे रखकर एकता व सहयोग से इस महामारी को जड़ से मिटाने को संकल्पित हों।  अपने संदेश में डा. गाँधी ने छात्रों का खासतौर पर आह्वान किया है कि वे घर पर रहकर सुरक्षित तरीके से ई-लर्निंग के माध्यम से अपनी शिक्षा को लगातार जारी रखें। उन्होंने छात्रों को सुझाव दिया कि लाॅकडाउन के इस दौर में व्यवस्थित दिनचर्या के माध्यम से समय का सदुपयोग सुनिश्चित करें एवं पढ़ाई के साथ ही इण्डोर गेम्स, योग एवं अपने स्वास्थ्य का खयाल रखें। इसके साथ ही, किशोर व युवा पीढ़ी अपनी समाजोपयोगी रूचियो को भी आगे बढ़ायें

कोरोना का प्रभाव व अधिवक्ता समाज

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प्रयागराज। महिला अधिवक्ता वेलफेयर एसोसिएशन द्वारा आयोजित ऑनलाइन विधि संवाद संगोष्ठी का आयोजन किया गया जिसका विषय था कोरोना का प्रभाव व अधिवक्ता समाज विषय पर हाई कोर्ट बार एसोसिएशन के नवनिर्वाचित अध्यक्ष अमरेंद्र सिंह ने अध्यक्षता की और कहां की अधिवक्ता साथी विशेष रूप से नौजवान बिना प्रचार लगातार सेवा में लगे हैं। घर में रहने की सलाह दी इसके साथ ही कहा कि सैनिटाइजर नीम और साबुन का उपयोग बराबर अधिवक्ता साथी करें हाई कोर्ट बार एसोसिएशन के पूर्व अध्यक्ष आरके चतुर्वेदी ने कहा कि सोसाइटी में अधिवक्ताओं का बड़े स्तर के कार्य हो रहा है और उनका योगदान है जो सराहनीय है एडवोकेट अनुराधा सुंदरम ने कहा कि सरकार द्वारा दिशा-निर्देश का निरंतर अधिवक्ता समाज पालन कर रहा है जिला अधिवक्ता संघ के अध्यक्ष हरिशंकर मिश्र ने कहा कि हम लोग अधिवक्ताओं के घर-घर जाकर उनका हाल-चाल पूछ रहे हैं एडवोकेट सुशील यादव ने कहा कि प्रकृति से छेड़छाड़ करने का नतीजा ही हम भुगत रहे हैं एडवोकेट दुर्गा तिवारी ने कहा कि इस बीमारी को रोकने के लिए हमें जागरूक होने की जरूरत है वरिष्ठ एडवोकेट आर.पी. सिंह ने कहा कि अधिवक्ता राष्ट्रहित में

रमोला की गजलों में है वैज्ञानिक दृष्टिकोण: कपिल

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रमोला रूथ लाल की गजलों को पढ़ने के बाद स्पष्ट रूप से कहा जा सकता है कि उसकी साफगोई और मनोवैज्ञानिक दृष्टिकोण इस समाज के लिए बेहद खास है। यह उनकी शायरी विशेषता है। उनकी गजलों को पढ़ते समय लगता है कि जिन्दगी से दोबारा साक्षात्कार हो रहा है। यह बात भुवनेश्वर के वरिष्ठ साहित्यकार शैलेंद्र कपिल ने गुफ्तगू द्वारा आयोजन ऑनलाइन साहित्यिक परिचर्चा में रमोला रुथ लाल के गजल संग्रह ‘यह दर्द ही तो बस अपना है’ पर विचार व्यक्त करते कहा। सम्पदा मिश्रा ने कहा कि रमोला रूथ लाल ‘आरजू’ की गजलों में जहाँ मानवीय संवेदनायें हैं। वही देश काल की परिस्थितियों का, घटनाक्रमों का वर्णन है। वे बहुत ही जिंदादिल और सरल व्यक्तित्व की धनी है।उनको प्रकृति से भी बहुत ज्यादा प्रेम है। मनमोहन सिंह ‘तन्हा’ ने कहा कि रमोला रूथलाल की रचनाओं में विषय का गांभीर्य बड़ी सहजता से दृष्टिगोचर होता है, भाव प्रधान काव्य मे जहां मधुरता हैं। वही शिल्प भी लाजवाब है, आपकी हर रचना साहित्य के मानकों के अनुरूप अपनी पूरी गरिमा में मौजूद है। साहित्य संसार में आपका एक सम्मानजनक स्थान स्थापित हो चुका है। नरेश महरानी के मुताबिक रमोला रुथलाल की रचनाए

प्रभाशंकर की कविताओं में स्पष्ट यथार्थ के दर्शन: शगुफ्ता

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विभिन्न प्रतिभाओं के धनी आदरणीय प्रभा शंकर शर्मा की रचनाओं में आशावाद के साथ-साथ जीवन के यथार्थ के स्पष्ट दर्शन होते हैं। सामाजिक मुद्दों के साथ राष्ट्रीय मुद्दों को अपनी रचनाओं में शामिल करना एक संवेदनशील साहित्यकार को स्वयं में दूसरे साहित्यकार से अलग स्थापित करता है। मां के प्रति समर्पण एवं मां की छत्रछाया में संतानों का सुरक्षित महसूस करना इस का सजीव चित्रण मार्मिक है। कवि द्वारा स्पष्ट किया गया है कि जीवन में सफलता प्राप्त करने के लिए दृढ़ निश्चय होना अति आवश्यक है। यह विचार उधमसिंह नगर की कवयित्री शगुफ्ता रहमान ने शुक्रवार को गुफ्तगू द्वारा आयोजित ऑनलाइन साहित्यिक परिचर्चा में प्रभाशंकर शर्मा की कविताओं पर व्यक्त किया। भुवनेश्वर के वरिष्ठ कवि शैलेंद्र कपिल ने कहा कि प्रभाकर शर्मा की रचनाओं में हिंदी व उर्दू साहित्य से समृद्ध होने की झलक मिलती है, वे गजल लेखन में भी दखल रखते हैं। परिदृश्य शीर्षक की कविता रंगमंच की याद दिलाता है, काव्य का परिचायक होता प्रतीत होता है। हास्य व्यग्ंय की कविताएं प्रभाकर की विषयवस्तु को विस्तार प्रदान करती हैं। नरेश महारानी ने कहा कि कवि प्रभाशंकर चेहरे

आपातकालीन स्थिति में कला विषय पर परिचर्चा

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शाश्वत साहित्यिक सामाजिक सांस्कृतिक संस्था द्वारा रंग संवाद ऑनलाइन परिचर्चा ‘आपातकालीन स्थिति में कला’ विषय पर परिचर्चा का आयोजन किया गया जिसमें वरिष्ठ नाट्य साहित्यकार श्री अजीत पुष्कर की अध्यक्षता में शहर के रंग कर्मियों ने उक्त विषय पर अपने अपने विचार रखें शहर की वरिष्ठ रंगकर्मी मीना उरांव ने कहा कि कला और साहित्य करो बहुत व्यापक होता है हम देखते हैं कि जब जब हमारे सामने आपातकालीन स्थिति आती है तब तक कला और साहित्य से हमें बल मिलता है इसी क्रम में शहर की युवा निर्देशक आलोक नायर ने कहा इस समय पूरी दुनिया जिस संक्रमण से जूझ रही है उसके संक्रमण होने के तीव्रता के कारण इस वायरस ने हम लोगों को बहुत दूर कर दिया है ऐसे समय में रहकर रंगमंच जो एक जीवंत कला होने के साथ सामूहिक कला भी है इससे प्रभावित हुई है रंगकर्मी ज्योतिर्मयी हिंदुस्तान अकैडमी की अभिव्यक्ति के तमाम रास्ते हैं जिनके माध्यम से अपने नीचे को समाज से जोड़ा जा सकता है इसी क्रम में समन्वय रंगमंडल की सचिव सुषमा शर्मा कहती है किसी भी देश में कला की स्थिति उस देश के लोगों की बौद्धिक क्षमता उच्चता को निर्धारित करती है आधारशिला के सचिव

काव्य का व्यापक संसार है गीता की कविताओं में: उमा सहाय

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महिला काव्य मंच प्रयागराज इकाई के तत्वावधान में आनलाइन समीक्षात्मक परिचर्चा का आयोजन किया गया। इस कार्यक्रम में प्रयागराज के मंचों की सुपरिचित कवियत्री गीता सिंह के कविताओं के विभिन्न पहलुओं पर प्रयागराज की वरिष्ठ कवयित्रियों के मध्य चर्चा की गई। वरिष्ठ साहित्यकार देवयानी जी ने एक ओर गीता सिंह की कविताओं में लयात्मकता, स्त्रीत्व का परिपूर्णता देखी तो वहीं उनके काव्य को ग्रामीण परिवेश से जुड़ा हुआ भी पाया। प्रकृति के प्रति मानव के अत्याचार के खिलाफ सचेत भी करती हैं गीता सिंह की रचनाएं। कविता, कहानी, संस्मरण हर क्षेत्र में सक्रिय मीरा सिन्हा ने इनकी कविताओं को प्रेम, त्याग और सामर्थ्य और सहित स्त्री के हर भाव से परिपूर्ण पाया तो वहीं आत्मावलंबन और मानव की जिजीविषा का भी उनकी कविताओं में समावेश स्पष्ट रुप से देखा। मधुशाला नामक कविता में अध्यात्म का आत्बोध भी स्पष्ट परिलक्षित पाती है। गीता सिंह की कविताओं में प्रकृत्ति का सम्मान और सम्पूर्ण सृष्टि को हरा भरा देखने की चाहत दिखाई देती है। यह कहना है वरिष्ठ कवियत्री कविता उपाध्याय का। उन्होंने कहा कि बांस के विकास क्रम को स्त्री के जीवन चक्र स

बेबाकी से अपनी बात कहती हैं सम्पदा: प्रिया

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सम्पदा मिश्रा कविताओं के माध्यम से अपनी बात बेबाकी से कहती हैं। इनके काव्य संग्रह ‘बस हमारी जीत हो’ की कविताओं में देश में समभाव और सामंजस्य स्थापित करने की भावना, मानवतावादी विचार, वृक्षारोपण जैसे आवश्यक मुद्दे पर अपनी बात कहना और अपने सपनों के भारत वर्ष में इंसानियत जिंदा रखना आदि तथ्य विद्यमान हैं, जो उनके कवि धर्म को पूर्ण कर रहे हैं। यह बात उरई की वरिष्ठ कवयित्री प्रिया श्रीवास्तव ‘दिव्यम’ ने गुफ्तगू द्वारा आयोजित ऑनलाइन साहित्यिक परिचर्चा में गुरुवार को कहा। मैनपुरी जिले के बेसिक जिला शिक्षा अधिकारी विजय प्रताप सिंह ने कहा कि इस पुस्तक में कविता के माध्यम से राष्ट्र और राष्ट्रीयता जैसे सामान्य विषयों पर सामान्य तरीके से अपनी बात कही गई है। कथ्य और शैली दोनों ही संदर्भों में दृष्टिकोण परंपरागत है। शैलेंद्र जय ने कहा कि संपदा मिश्रा एक भाव- प्रवण कवयित्री हैं, जिनमें मानवता, देश प्रेम की भावना और सामाजिक सरोकारों के प्रति सजगता कूट-कूट कर भरी है। ये कविताएं इन्हीं भावनाओं से ओतप्रोत, सीधे उनके हृदय से निसृत हुई लगती हैं जो न छंद-बद्ध रचनाओं के सोपानों को चढ़ लेने की प्रतीक्षा करती ह

पाखंड पर करारा प्रहार करते हैं महरानी: धीरज

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सात्विक विचारों के धनी कवि नरेश जी मानव जीवन मे व्याप्त पाखंड और आडंबरों पर प्रहार करते हुए नैतिक मूल्यों की अवमूल्यन पर चिंतित हैं। लोग सच कहने से कतरा रहें हैं और अन्याय को सह रहें हैं। एक दोहे में कवि ऐसो को आईना दिखाते हुए कहता है- ‘चुप चुप बैठे लोग हैं, नहीं कोई आवाज/सच की भाषा बोल के, किसे करूं नाराज।’ कवि महारानी जी साहित्यिक ऊर्जा से भरे हूए पवित्र भाव से ओत प्रोत युवा कवि हैं। इन्होने अन्य विषयों पर भी बहुत ही अच्छे दोहो की रचना की है। यह बात वरिष्ठ कवि जमादार धीरज ने गुफ्तगू आयोजित ऑनलाइन साहित्यिक परिचर्चा में नरेश महरानी के दोहे विचार व्यक्त करते कहा। मनमोहन सिंह तन्हा ने कहा कि नरेश महारानी एक बेहतरीन शब्द शिल्पी हैं जिनकी शब्द रचना उनके दोहों में बहुत खूबसूरती से नजर आती है, वैसे भी दोहा एक ऐसी विधा है जो साहित्य जगत की सबसे कम शब्दों में सबसे मारक क्षमता रखती है। नरेश के दोहे समाज, देश, राजनीति, अध्यात्म या यूं कह लें कि सभी विषयों पर अपनी पूरी पकड़ रखते हैं। कवयित्री सुमन ढींगरा दुग्गल के मुताबिक हिंदी के प्राचीन छंद ‘दोहे’ में कवि नरेश महारानी ने अपार भाव सम्पदा का समाव

सूर्य का प्रतिबिंब है ‘स्याही की लकीरें’: डाॅ. नीलिमा मिश्रा

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शैलेंद्र जय एक ऐसा इतना संवेदनशील कवि है जो आस-पास घट रही घटनाओं से मर्माहत होकर मौन ही रहकर सब कुछ सह लेना चाहता है लेकिन उसी क्षण उसके अंदर का बुद्ध जागृत होकर उसे उस सत्य को उद्घाटित करने के लिए प्रेरित करता है जिससे वह समाज को एक नयी राह दिखा सके और उसके मौन तोड़ते सृजन होता है। ‘स्याही की लकीरें’ नामक काव्य संग्रह में सूर्य का प्रतिबिम्ब है, जो कुहासे का काजल मिटाने की चाहत रखता है। अनुभव के शिलालेख पर गढ़े गये यथार्थ के खूँटे को उखाड़ कर मुक्त हो जाने की कोशिश करता है जो उसे एक नयी ऊर्जा से उसे भर देती है। यह विचार डाॅ. नीलिमा मिश्रा ने मंगलवार को गुफ्तगू के ऑनलाइन साहित्यिक परिचर्चा में शैलेंद्र के काव्य संग्रह ‘स्याही की लकीरें’ पर व्यक्त करते कहा। मनमोहन सिंह तन्हा ने कहा कि शैलेंद्र जय एक संवेदनशील और गंभीर साहित्यकार हैं, जो बड़ी ही नम्रता और  सहजता से समाज की विसंगतियों पर अपनी कलम चलाते हैं। अंदाज और शब्द रचना इतनी अद्भुत की बहुत देर तक तो सुनने वाला वही रुका रह जाता है और सोचने पर विवश होता है कि हमारे दौर की प्राथमिकताएं क्या है। केंद्रीय विद्यालय की शिक्षिका अर्चना जायसवाल

कठिन नौकरी में भी गजल की दीवानगी: मुनव्वर राना

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गुफ्तगू के आनलाइन साहित्यिक परिचर्चा में केके मिश्र उर्फ इश्क सुल्तानपुरी की शायरी पर लोगों ने अपने विचार व्यक्त किए। मशहूर शायर मुनव्वर राना ने कहा कि पुलिस की मुश्किल नौकरी, घर आंगन की देखभाल, आए दिन घर से दूर रहने की सजाएं काटने वाला ये इश्क सुल्तानपुरी अपनी आंखों में दो इंतजार करने वाली आंखों को बसाए, अपने बच्चों के लिए सुनहरे दिनों की दुनिया सजाने के लिए दिन रात जिन्दगी को हादिसात की हथेली पर सजाए मारा फिरता है। शायद गजल ऐसे ही दीवानों को अपना दीवाना बनाने के लिए बेताब रहती है। फिर रफ्ता-रफ्ता ऐसे नौजवानों की खुद की दीवानी हो जाती है और उन्हें शोहरत, इज्जत, नामवरी सम्मान का वो मुकाम अता कर देती है कि दुनिया में जब तक कागज और कलम में दोस्ती रहेगी गजल के आशिकों को अदब और साहित्य से मुहब्बत करने वाले कभी फरामोश न सकेगा। प्रभाशंकर शर्मा के मुताबिक महबूब की आंखों में चाहत से लेकर सामाजिक यथार्थ पर पैनी नजर रखने वाले इश्क सुल्तानपुरी की गजलों में पूरा कसाव है साथ ही यह व्याकरण सम्मत भी हैं। शब्दों को अनुभव की गहराई से निकाल कर के गजलों में पिरोने का बहुत ही सफल प्रयास किया गया है। कवयित

गहरे अनुभूति के शायर हैं तन्हा: रमोला

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गलती को गलती समझ कर माफ करने वाले, नफरत के बीज को दिल में पनपने का अवसर न देकर दूसरों के दिल में घर बना लेने वाले, बेटियों के आमद का स्वागत-सम्मान करने वाले, दूसरों के आंसू चुरा कर दिल मिलाने का जज्बा रखने वाले, और अपनी सहज मुस्कान से सबके सुख-दुख में साथ खड़े रहकर सबका हृदय जीत लेने वाले, कुशल संचालक, काव्य व्यवस्था से पूर्ण परिचित सुधी रचनाकार मनमोहन सिंह ‘तन्हा’ की अनुभूति का धरातल बहत गहरा है। बहुत ही सधी और सहज भाषा में अभिव्यक्त उनके कहने का अंदाज बांधता है। यह बात गुफ्तगू आॅनलाइन साहित्यिक परिचर्चा में रमोला रूथ लाल ‘आरजू’ ने मनमोहन सिंह तन्हा की पुस्तक ‘तन्हा नहीं रहा तन्हा’ पर विचार व्यक्त करते हुए कहा। रचना सक्सेना ने कहा कि मानवीय आदर्शो और मूल्यों कों परिभाषित करते हुऐ तन्हा जी के अशआर इतने अद्भुत है कि जब हम उनको पढ़ते है तो वे सीधे दिल में उतरकर आत्मा झकझोर देते हैं। अना इलाहाबाद ने कहा कि मनमोहन सिंह तन्हा एक जिन्दादिल इंसान होने के साथ-साथ संवेदनशील शायर  भी हैं। उनकी सहृदयता, सहजता, मानवता उनके मुक्तकों में स्पष्ट दिखाई देती है। ममता देवी के मुताबिक जहां एक तरफ साहित्य स

आशावादी विचारों को पूरा होते हुए देखती हैं नीना श्रीवास्तवः सागर

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नीना मोहन श्रीवास्तव आशावादी हैं और अपने गीतों से आशा की उन्नति का द्वार खोलती हैं। वो अपने आशावादी विचारों को पूरा होते हुए देखती हैं, जब वो कहती हैं, ‘निशा की हार होती है और उषा की जीत होती है।’ यह बात वरिष्ठ सागर होशियापुरी ने शनिवार को साहित्यिक संस्था गुफ़्तगू के ऑनलाइन साहित्यिक परिचर्चा में नीना श्रीवास्तव की कविताओं पर विचार व्यक्त करते हुए कहा। कवि संजय सक्सेना के मुताबिक नीना मोहन श्रीवास्तव जी ने अपनी कविताओं में माध्यम से, समाज के लिये प्रकृति में छुपे हुए बिभिन्न संदेशो को बहुत सुंदर ढंग से उजागर किया है। जो समाज के लिये प्रेरणाश्रोत का काम करते है। उन्होंने अपनी कविताओं में जीवन दर्शन को भी स्पष्ट रूप से रेखांकित किया है। जमादार धीरज ने कहा कि मीना मोहन श्रीवास्तव भावुक रचनाकार हैं। सहज, सरल शब्दों मे कल्पना के पंख पर आसीन जीवन के विशेष कर नारी जीवन के ममतामय पक्ष को बड़े ही लालित्यपूर्ण ढंग से स्पर्श करतीं हैं।  नोएडा की कवयित्री डाॅ. ममता सरूनाथ ने कहा कि नीना की कविताओं में आगे बढने का संदेश मिलता है। ‘मर्म यही है जीवन का बस  चलते जाना है’, ’करो मन न व्याकुल कभी प्रतिकू

खड़ी बोली और लोक भाषा के महारथी हैं धीरजः सोम ठाकुर

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साहित्यिक संस्था गुफ्तगू के ऑनलाइन साहित्यक परिचर्चा में वरिष्ठ कवि जमादार धीरज के काव्य संग्रह ‘भावांजलि’ पर साहित्यकारों ने अपने विचार व्यक्त किए। सुप्रसिद्ध गीतकार सोम ठाकुर ने कहा कि हिन्दी में ऐसे कवि बहुत कम हैं, जिनको खड़ी बोेली के साथ-साथ लोक भाषा में भी महारत हासिल हो। जमादार धीरज ने अवधी में अनेक रस-सिक्त गीतों की रचना की है, इन्होंने गीत, गजल और दोहों में भी अपनी रचनाशीलता का परिचय दिया है। ‘भावाजंलि की भाषा न सरल और न कठिन है, वरन् वह भाव के साथ जन्मी सहज भाषा है। वरिष्ठ शायर सागर होशियारपुरी ने कहा कि धीरज के गीतों में दर्द और प्यार का मिश्रण है, अपनों जुदाई ने मानो ज्वालामुखी बना दिया है। प्रसिद्ध कवि नरेश महरानी ने कहा कि जमादार धीरज के गीत अनुभव पुंज हैं। उनके गीतों में दार्शनिकता एवं चिन्तन की झलक स्पष्ट दिखाई देती है और समाज में नारी की स्थिति को उसके श्रम से साझा कर उसकी विरह वेदना को दर्शाती है। प्रभाशंकर शर्मा के मुताबिक धीरज के गीतों में मुख्यतः विरह वेदना की गहराई एवं माटी की सोंधी महक दिखाई देती है। कविता नारी श्रम के माध्यम से स्त्री की दशा पर चिंता प्रदर्शित की

महामारी से जूझने की प्रेरणा देती हैं अनिल की गजलें

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अनिल मानव की गजलें गर्दिश में डूबे सितारों को चमकने की आशा हैं और आज के वैश्विक संकट और महामारी से हौसले के साथ जूझने की प्रेरणा देती हैं। किसानों, एवं मजलूमों के दर्द को बयां करते हुए अपनी रचनात्मकता भी व्यक्त करतें है। यह बात सीपीएम डिग्री की अध्यापिका और मशहूर आलोचक डाॅ. सरोज सिंह ने गुरुवार को ‘गुफ्तगू’ द्वारा आयोजित ऑनलाइन साहित्यिक परिचर्चा में अनिल मानव की गजलों पर विचार व्यक्त करते कहा। फरीदाबाद की वरिष्ठ साहित्यकार नमिता राकेश ने कहा कि अनिल मानव एक सुलझे हुए गजलकार हैं। उनकी गजलों में आम आदमी की पीड़ा के साथ-साथ सामाजिक विडम्बनाओं पर सीधा कटाक्ष साफ दिखाई पड़ता है। वरिष्ठ कवयित्री डाॅ. नीलिमा मिश्रा के मुताबिक हौसलों से लबरेज एक ऐसा शायर हैं अनिल मानव, जो हर मुश्किलों से टकराना और खिजां को बहारों के मौसम में बदल देने का हुनर बखूबी जानता है। इश्क सुल्तानपुरी ने कहा कि अनिल की शायरी में नए कलेवर नए प्रतीक और नए अंदाज के दर्शन होते हैं। कम उम्र में इनके अंदर अनुभूतियों का जो गाम्भीर्य है, वह संकेत करता है कि आने वाले समय में साहित्य के संसार को अनिल मानव अपनी शायरी से रोशन करेंगे।

रचना सक्सेना की पुस्तक ‘किसकी रचना’ पर ऑनलाइन परिचर्चा

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रचना सक्सेना की कविताओं में सघन संवेदना की परतें हैं, समय की सुनी अनसुनी आहटें हैं, युगबोध की गूंजें हैं, कथ्य के आसमान के साथ, शिल्प का सम्यक संयोजन भी है। यह विचार मशहूर गीतकार यश मालवीय ने बुधवार को कवयित्री रचना सक्सेना की पुस्तक ‘किसकी रचना’ पर गुफ्तगू की तरफ से हुए ऑनलाइन परिचर्चा पर व्यक्त किया। फतेहरपुर के कवि डाॅ. शैलेष गुप्त वीर ने कहा कि रचना सक्सेना जी की काव्य-कृति ‘किसकी रचना’ की कविताए विविध विषयों में पिरोयी मानव मन की सहज अभिव्यक्ति है। इन कविताओं में भाव-बोध का अंकन प्रभावी है। वह अपनी बात कहने के लिए अधिक ताना-बाना नहीं बुनती हैं। सुमन ढींगरा दुग्गल ने कहा कि नारी मन को छूने में सक्षम हैं रचना की कविताएं। अंधविश्वास और नारी के प्रति हो रहे अपराधों पर भी इनकी सजग कलम ‘रीति रिवाज’ नामक कविता में दृष्टिगोचर होती है। युवा अनिल मानव के मुताबिक रचना सक्सेना के लेखन में परंपरागत संबंधों, प्रेम, नैतिकता, मानवीयता और नारी-मन का कोमलतम रूप उभर कर सामने आया है। कुछ भी हो आधुनिकता की अंधी दौड़ में टूटते हुए रिश्ते, हास होती नैतिकता, विखंडित होते परिवारों के बीच ऐसे काव्य सृजन की

देश के अनूठे गीताकार:यश मालवीय

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ऐसी अनेक विशिष्टताएं हैं जो यश मालवीय को देश के सैकड़ों गीतकारों में एक अनूठा गीतकार बनाती हैं, जबकि नयी कविता की आंधी में छंदबद्ध कविता को आलोचकों, संपादकों ने हीन मानकर ‘मुख्यधारा’ की कविता से बाहर कर दिया। यश मालवीय उन गिने चुने गीतकारों में हैं, जिन्हें हर साहित्यिक पत्रिका ने ससम्मान छापा है। यश ने आलोचकों के इस आरोप को भी झुठलाया है कि गीत विधा मे समकालीन जटिल यथार्थ की अभिव्यक्ति नहीं की जा सकती। जबकि अधिकांश गीतकारों ने गजल को अपनाकर गीत से दूरी बना ली, यश गीतों की डोर मजबूती से थामे रहे।  यह विचार आकाशवाणी के पूर्व प्रबंध निदेशक लक्ष्मी शंकर वाजपेयी ने मंगलवार को साहित्यिक संस्था गुफ्तगू द्वारा आयोजित ऑनलाइन साहित्यिक परिचर्चा में यश मालवीय के गीतों पर व्यक्त किया। उन्होंने कहा कि यश ने अपने गीतों में वर्तमान समय की धड़कनों को जितनी कुशलता से संजोया है, व्यस्था की अव्यवस्था को चुनौती दी है वह भी उल्लेखनीय है। नोएडा के मशहूर साहित्याकर विज्ञान व्रत का कहना है कि अपने नवगीतों में प्रयुक्त बिम्बों में जो टटकापन यश के यहां मिलता है वह उनकी पहचान है। साधारण से कथ्य को भी  नवगीत में ए

आखिर मैं हूं कौन’ पर परिचर्चा

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ऋतंधरा मिश्रा की कविताएं महज कविताएं भर नहीं हैं, इनमें जीवन के तमाम मोर्चो पर लड़ रही एक स्त्री की संघर्ष कथा भी हैं, जो कभी-कभी आत्मकथा जैसी भी लगती है। ‘आखिर मैं हूं कौन’ की कविताओं में कोमलतम एहसास से लेकर कटुतम या कठोतम एहसास का भी दस्तावेजीकरण कवयित्री ने अत्यंत सघनता के साथ रूपायित किया है। उसके कथ्य में ही उसका शिल्प अन्तर्निहित है। ‘भाषा बहता नीर’ के मुहावरे को चरितार्थ करती उसकी आत्मभिव्यक्ति हमारी बहुत अपनी सी लगती है। यह विचार मशहूर गीतकार यश मालवीय ने गुफ्तगू द्वारा आयोजित ‘ऑनलाइन काव्य परिचर्चा’ में व्यक्त किया। उधमसिंह नगर की कवयित्री शगुफ्ता रहमान ने कहा कि ऋतंभरा मिश्रा की कविताओं को पढ़कर एहसास होता है कि यह रचनाएं केवल कविता नहीं बल्कि विभिन्न मोर्चों पर लड़ रही एक नारी की संघर्ष कहानी है। कानपुर की कवयित्री ममता देवी ने कहा कि ऋतंधरा ने अपनी कल्पना के सेतु में खोजती हुई खुद को ‘आखिर मै हूं कौन’ के पन्नों को भर डाला। उनकी ‘तलाश’ कविता स्पष्ट शब्दों में उनके पंछी मन की छटपटाहट को व्यक्त करने में सक्षम है कि उनकी निगाहे अभी भी वह तलाश कर रही है जिसे वह अभी तक खोज रही थी।

रो मैं सकता नहीं

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मैं पुरुष हूँ विधाता की हूँ रचना मैं नारी का अभिमान हूँ, हाँ मैं एक पुरुष हूँ! मन की बात मन में रख ऊपर से हरदम खुशमिजाज हूँ माँ की ममता पिता का स्वाभिमान हूँ, हाँ मैं एक पुरुष हूँ! मैं जीवन में आया जबसे अपेक्षा के बोझ से लदा हरदम पिता के फटे जूते से लेकर बहन की शादी के सपनों का आधार हूँ मैं उम्मीदों का पहाड़ हूँ हाँ मैं पुरुष हूँ! थकान हो गई तो क्या पाँव रुक गए तो क्या मुझको चलना है हरदम, मैं बिटिया की गुड़ियों का खरीदार हूँ मैं आशाओं का मीनार हूँ हाँ मैं पुरूष हूँ! रो मैं सकता नहीं कह मैं सकता नहीं डर अपना यह मैं सह सकता नहीं ऊपर से बहुत अभिमानी पर अंदर से निपट असहाय हूँ मैं परिवार का एतबार हूँ, हाँ मैं पुरुष हूँ! पत्नी की इच्छा माँ के सपने बच्चों की ख्वाहिशें पिता के गुस्से का शिकार हूँ, हाँ मैं पुरुष हूँ! आदर देता मैं हरदम प्यार लुटाता हूँ हर इक कदम फिर भी कुछ हैवानों के कारण मैं नफरत का शिकार हूँ, हाँ मैं पुरुष हूँ हाँ मैं पुरुष हूँ हाँ मैं पुरुष हूँ

पॉजिटिव सोच व्यक्ति को विपरीत परिस्थितियों में भी जिंदा रख सकती है

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कई दशकों पहले टीबी जानलेवा बीमारी थी। जिसको टीबी हुई उसका मरना तय था, कोई छह महीनें में मर जाता तो कोई 12 महीनें में मरना तय था। 1949 में टीबी की दवाई खोजी गयी लेकिन दुनिया के हर आम आदमी तक इस दवाई को पहुँचने में लगभग तीस साल लगे। पचास, साठ और सत्तर के दशक तक भारत में भी किसी को टीबी हो जाना मतलब मृत्यु का आगमन ही था। टीबी कन्फर्म की रिपोर्ट आते ही मरीज आधा तो डर से ही मर जाता था। टीबी की इसी दहशत के माहौल में साठ के दशक की एक घटना है।  फ्राँस के टीबी हॉस्पिटल की। हॉस्पिटल में चालीस रूम थे। वहाँ टीबी के जितने मरीज भर्ती होते थे उनमें से से तीस प्रतिशत मरीज ही ठीक होकर घर जा पाते थे बाकि सत्तर प्रतिशत मरीज उन्ही दवाईयों को खाने के बाद भी नही बच पाते थे। डाक्टरों के लिये भी ये मृत्यु का ये प्रतिशत एक चुनौती बन गया था। किसी को समझ नही आ रहा था कि वही दवाइयाँ देने पर कुछ लोग बिल्कुल ठीक हो जाते है और बाकि नही बच पाते। एक बार जब इसी विषय पर एक गंभीर मीटिंग हुई तब एक नर्स ने बोली, क्या आप सबने एक बात नोट की है? पीछे की तरफ जो बारह कमरे बने है उन कमरों में आजतक कोई मौत नही हुई! वहाँ जितने भी